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वक्फ बोर्ड की 5000 संपत्तियों पर कब्ज़ा? मदरसा बोर्ड अध्यक्ष का सनसनीखेज आरोप

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उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर अवैध कब्जों का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। यह मुद्दा न केवल सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से संवेदनशील है, बल्कि यह राज्य में प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी सवाल उठाता है। उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून कासमी ने हाल ही में इस मामले को लेकर गंभीर आरोप लगाए हैं।

उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड की हजारों संपत्तियों पर अवैध कब्जे किए गए हैं, और इसकी जड़ में बोर्ड की मिलीभगत हो सकती है। आइए, इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि यह मामला क्यों इतना महत्वपूर्ण है।

संपत्तियों पर अवैध कब्जे का सच

उत्तराखंड में वक्फ बोर्ड के पास पांच हजार से अधिक संपत्तियां हैं, जो मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए बनाई गई थीं। इनमें स्कूल, कॉलेज, अस्पताल और अन्य सामुदायिक सुविधाओं के लिए जमीनें शामिल हैं। लेकिन मुफ्ती शमून कासमी का दावा है कि इनमें से कई संपत्तियों पर पिछले कई सालों से अवैध कब्जे हो रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों को इन संपत्तियों का प्रबंधन करने के लिए मुतवल्ली नियुक्त किया गया, उनकी पृष्ठभूमि की जांच भी जरूरी है। कई मामलों में इन मुतवल्लियों का आपराधिक इतिहास सामने आ सकता है, जो इस समस्या को और गंभीर बनाता है।

वक्फ बोर्ड की लूट का इतिहास

मुफ्ती शमून कासमी ने अपने एक बयान में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की जमकर लूट हुई। जहां इन संपत्तियों का इस्तेमाल जरूरतमंदों के लिए स्कूल, अस्पताल और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लिए होना चाहिए था, वहां ऐसा कुछ नहीं हुआ।

इसके बजाय, इन जमीनों पर अवैध कब्जे हुए और मुस्लिम समुदाय को इसका भारी नुकसान उठाना पड़ा। कासमी ने यह बातें देहरादून के कावली में मदरसा फैजुल उलूम में अपने अभिनंदन समारोह के दौरान कही थीं।

जांच की मांग और पारदर्शिता का सवाल

इस मामले में उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने भी सख्त रुख अपनाया है। उनका कहना है कि वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर हो रहे अवैध कब्जों की जांच सीबीआई या विजिलेंस जैसी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपी जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि चाहे उनका कार्यकाल हो या इससे पहले का, सभी की जांच होनी चाहिए। शम्स का मानना है कि बोर्ड के कुछ अध्यक्षों, मुतवल्लियों और कर्मचारियों ने सरकारी संरक्षण में संपत्तियों का दुरुपयोग किया है। यह बयान न केवल बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि इस मामले में पारदर्शिता और जवाबदेही की कितनी कमी है।

वक्फ संशोधन कानून पर क्या है राय?

मुफ्ती शमून कासमी ने वक्फ संशोधन कानून को लेकर भी अपनी राय रखी। उनका कहना है कि इस कानून से मुस्लिम समुदाय का कोई नुकसान नहीं होगा। यह बयान उस समय महत्वपूर्ण हो जाता है, जब देश भर में इस कानून को लेकर बहस चल रही है। कासमी का मानना है कि अगर इस कानून को सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह वक्फ बोर्ड की संपत्तियों के संरक्षण और उनके सही उपयोग में मदद कर सकता है।

यह मामला उत्तराखंड में सामुदायिक संपत्तियों के प्रबंधन और उनके दुरुपयोग को लेकर कई सवाल खड़े करता है। वक्फ बोर्ड की संपत्तियां मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए हैं, लेकिन अगर इनका सही उपयोग न हो, तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान समाज के कमजोर वर्गों को ही होता है। इस मामले में स्वतंत्र जांच और सख्त कार्रवाई जरूरी है, ताकि दोषियों को सजा मिले और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

उत्तराखंड के लोग अब इस मामले में सरकार से जवाब मांग रहे हैं। क्या वक्फ बोर्ड की संपत्तियों को बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे? क्या इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी? ये सवाल अब हर किसी के मन में हैं। इस मुद्दे पर समाज के सभी वर्गों को एकजुट होकर आवाज उठानी होगी, ताकि सामुदायिक संपत्तियों का सही उपयोग हो और जरूरतमंदों तक इसका लाभ पहुंचे।

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