प्रयागराज, 16 अगस्त (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि सरफेसी एक्ट की धारा 14 के तहत आदेश होने के बाद उधारकर्ता अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए किरायेदार के माध्यम से दीवानी मुकदमा नहीं कर सकता।
न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ एवं न्यायमूर्ति पीके गिरि की खंडपीठ ने कहा कि संपत्ति बंधक रहने के दौरान सुरक्षित ऋणदाता यानी बैंक की अनुमति के बिना बनाई गई किरायेदारी संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम की धारा 65ए की शर्तों के अधीन होगी और ये शर्तें पूरी होती हैं या नहीं, इसका निर्णय केवल ऋण वसूली न्यायाधिकरण (डीआरटी) द्वारा ही किया जाएगा। ऐसे पंजीकृत दस्तावेज़ के तहत अपने अधिकारों का दावा करने के लिए किरायेदार को धारा 17 के तहत डीआरटी के समक्ष आवेदन करना होगा।
मुकदमे के तथ्यों के अनुसार याची एक्सिस बैंक ने गिरवी रखी गई संपत्ति पर कब्ज़ा लेने के लिए हापुड़ के एसडीएम धौलाना को परमादेश रिट जारी करने की मांग की थी। याची के अधिवक्ता ने कहा कि धारा 14 के तहत डीआरटी के आदेश के बावजूद, बैंक को कब्ज़ा हस्तांतरित नहीं किया जा रहा है क्योंकि उधारकर्ता के किरायेदार ने दीवानी न्यायालय से स्थगन प्राप्त कर लिया है। इस तथ्य से अवगत होने पर कि किरायेदार ने भी धारा 17 के तहत डीआरटी के समक्ष आवेदन किया है, कोर्ट ने माना कि सिविल न्यायालय से प्राप्त स्थगन आदेश विधि सम्मत नहीं है। खंडपीठ ने याचिका निस्तारित करते हुए निर्देश दिया है कि यदि डीआरटी स्थगन आदेश देता है तो उसका पालन किया जाए। साथ ही यदि कोई अन्य कानूनी बाधा न हो तो सम्बंधित अधिकारी याची बैंक को आठ सप्ताह के भीतर कब्जा दिलाए।
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(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे
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