नई दिल्ली, 27 मई . केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी पर ‘झूठ और फरेब’ की राजनीति करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आज एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को अपना अधिकार मिल रहा है. वहीं कांग्रेस काल में उन्हें इससे वंचित रखा गया था.
धर्मेन्द्र प्रधान कांग्रेस नेता राहुल गांधी के एक आरोप का जवाब दे रहे थे. इसमें राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि योग्य उम्मीदवार न मिलने का बहाना कर सरकार जानबूझकर एससी, एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों को शिक्षा और नेतृत्व से दूर रख रही है. इसके जवाब में आंकड़ों के साथ शिक्षा मंत्री ने कहा, “कांग्रेस पार्टी को पीलिया हुआ है इसीलिए उनको सबकुछ पीले रंग का ही दिखाई पड़ता है. या यूं कहें कि हर अच्छे में भी उन्हें बुरा ही दिखाई पड़ता है.”
शिक्षा मंत्री ने राहुल गांधी के इन आरोपों का एक्स पर जवाब दिया. प्रधान ने राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘नॉट फाउंड सूटेबल’ (योग्य उम्मीदवार नहीं मिला) जैसी व्यवस्था कांग्रेस की दलित-विरोधी नीति की देन थी. प्रधानमंत्री मोदी की सरकार ने 2019 में ऐतिहासिक कानून लाकर इस अन्याय का अंत किया. उन्होंने कहा कि देश का युवा अब कांग्रेस की इस राजनीति की सच्चाई समझ चुका है.
इस संदर्भ में शिक्षा मंत्री ने केन्द्र सरकार की दो उपलब्धियों का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019 लाया गया, जिसके बाद एनएफएस अब इतिहास है. पिछड़े वर्गों के आरक्षण में आ रही ‘बॉटलनेक’ (अनिवार्यता संबंधित बाधाओं) को भी समाप्त किया है, जो कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकारें कभी नहीं कर सकीं. उन्होंने अपनी बातों की पुष्टि के लिए आंकड़े भी दिए. बताया कि जब 2014 में संप्रग सरकार का कार्यकाल समाप्त हुआ, उस समय केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 57 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 63 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 60 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग के शिक्षकों के पद रिक्त थे.
धर्मेन्द्र प्रधान के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने सत्ता में आने के बाद इन रिक्त पदों को भरने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए. वर्ष 2014 में जहाँ शिक्षकों के कुल 16,217 पद थे, वहीं इन्हें बढ़ाकर 18,940 कर दिया गया. उसी वर्ष रिक्तियों की दर 37 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 25.95 प्रतिशत हो चुकी है. यह प्रक्रिया अब भी निरंतर जारी है. कांग्रेस के 2004 से 2014 के कार्यकाल के दौरान आईआईटी संस्थानों में केवल 83 अनुसूचित जाति, 14 अनुसूचित जनजाति और 166 अन्य पिछड़ा वर्ग के शिक्षक नियुक्त किए गए, जबकि एनआईटी में 261 अनुसूचित जाति, 72 अनुसूचित जनजाति और 334 अन्य पिछड़ा वर्ग के शिक्षक नियुक्त हुए.
इसके विपरीत, मोदी सरकार के 2014 से 2024 के बीच के कार्यकाल में आईआईटी में 398 अनुसूचित जाति, 99 अनुसूचित जनजाति और 746 अन्य पिछड़ा वर्ग के शिक्षकों की नियुक्ति हुई. वहीं एनआईटी में 929 अनुसूचित जाति, 265 अनुसूचित जनजाति और 1510 अन्य पिछड़ा वर्ग के शिक्षक नियुक्त किए गए. इसके अतिरिक्त, मोदी सरकार ने सहायक प्रोफेसर के पद के लिए पीएचडी की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया, जिससे और अधिक योग्य उम्मीदवारों को अवसर मिल सका.
उल्लेखनीय है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत में राहुल गांधी ने उक्त आरोप लगाये थे. उन्होंने कहा कि बाबासाहेब ने शिक्षा को बराबरी के लिए सबसे बड़ा हथियार बताया है. लेकिन मोदी सरकार उस हथियार को कुंद करने में जुटी है. दिल्ली विश्वविद्यालय में 60 प्रतिशत से ज़्यादा प्रोफ़ेसर और 30 प्रतिशत से ज़्यादा एसोसिएट प्रोफ़ेसर के आरक्षित पदों को नॉट फाउंड सूटेबल (एनएफएस) बताकर खाली रखा गया है.
—————
/ अनूप शर्मा
You may also like
इस IPO का GMP हुआ धड़ाम, क्या पूरी तरह सब्सक्राइब हो पाएगा ये इश्यू, चेक करें सब्सक्रिप्शन स्टेटस और अन्य डिटेल्स
महाकुंभ में भगदड़: जौनपुर की चंद्रावती की मौत और शवों की संख्या पर चौंकाने वाले खुलासे
Aaj Ka Panchang, 28 May 2025: आज ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया तिथि, जानें शुभ मुहूर्त और राहुकाल का समय
लौंग का पानी: स्वास्थ्य, त्वचा और बालों के लिए अद्भुत लाभ
भारत में सस्ते दामों पर काजू खरीदने का अनोखा स्थान