अजमेर, भीलवाड़ा और उदयपुर के मूक-बधिर बच्चों ने इस दिवाली पर कुछ खास और अनूठा किया है. हिन्दुस्तान जिं़क के सीएसआर कार्यक्रम ‘जीवन तरंग’ के तहत, इन बच्चों ने अपने मन की भावनाओं और सांकेतिक भाषा के जरिये मिट्टी के दियों और कपड़ों के थैलों को खूबसूरत रंगों से सजाया है. इनके द्वारा निर्मित ये रंग-बिरंगे दीये और थैले न केवल दिवाली की रौनक बढ़ाएँगे, बल्कि इस पहल से इन बच्चों के चेहरे पर मुस्कान और आत्मनिर्भरता का भाव भी उजागर होगा.
इन बच्चों के बनाए दिये और थैले अब दिवाली स्टॉल्स पर हार्ट्सविथफिंगर्स के तहत उपलब्ध हैं, जहाँ लोग इन्हें खरीदकर बच्चों के इस अनमोल हुनर को सराह सकते हैं. इस पहल में 150 मूक-बधिर बच्चे शामिल हैं जो अजमेर मूक-बधिर विद्यालय, अभिलाषा विशेष विद्यालय उदयपुर और मूक-बधिर विद्यालय भीलवाड़ा से हैं.
संकेतों से सीखी रचना की कला
जीवन तरंग कार्यक्रम के अंतर्गत प्रशिक्षकों और हिन्दुस्तान जिं़क के कर्मचारियों ने बच्चों को संकेतों की भाषा में रंगों और कलाओं की शिक्षा दी. मूक-बधिर बच्चों ने इस प्रशिक्षण के बाद अपने मन की भावनाओं को इन दियों और थैलों पर उकेर कर सुंदर रंगों में ढाल दिया. इस प्रयास में हिन्दुस्तान जिं़क के 28 कर्मचारियों ने भी भरपूर साथ दिया और बच्चों के साथ मिलकर उनकी रचनात्मकता को उभारने का काम किया.
उद्यमशीलता को बढ़ावा देने की कोशिश
जीवन तरंग कार्यक्रम के माध्यम से हिन्दुस्तान जिं़क का उद्देश्य न केवल इन बच्चों को रचनात्मक शिक्षा देना है, बल्कि उनमें उद्यमशीलता का बीज भी बोना है ताकि वे अपने हुनर से आत्मनिर्भर बन सकें. मिट्टी के दीयों और कपड़े के थैलों पर की गई उनकी यह मेहनत ना केवल उनकी कला को एक पहचान देगी बल्कि उनके जीवन को एक नई दिशा भी देगी.
शिक्षा और तकनीक के जरिये सशक्तीकरण की राह
वर्ष 2017 में शुरू किया गया जीवन तरंग कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य विशेष योग्यता वाले बच्चों को बेहतर शैक्षिक अवसर प्रदान करना और उन्हें उनके परिवार के एक आत्मनिर्भर सदस्य के रूप में सशक्त बनाना है. इस कार्यक्रम से जुड़कर अब तक 700 से अधिक दृष्टिहीन और मूक-बधिर बच्चे उच्च शिक्षा से जुड़े हैं. इनमें से लगभग 600 बच्चों ने भारतीय सांकेतिक भाषा सीखी है. साथ ही, 100 से अधिक दृष्टिबाधित बच्चों को स्मार्टफोन, कंप्यूटर, एमएस-ऑफिस जैसी तकनीकी सहायता दी गई है ताकि वे डिजिटल ज्ञान से सशक्त हो सकें.
समानता की ओर कदम
जीवन तरंग ‘जिं़क के संग’ का यह प्रयास विशेष बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. हिन्दुस्तान जिं़क ने न केवल इन बच्चों के लिये साइन लैंग्वेज ट्रेनिंग शुरू की है, बल्कि दृष्टिबाधित बच्चों के लिए टेक्नोलॉजी आधारित शिक्षा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इस दिवाली पर इन बच्चों द्वारा बनाए गए दियों और थैलों को खरीदना इनकी रचनात्मकता और आत्मनिर्भरता को समर्थन देना है.
हर खरीदी हुई वस्तु इन बच्चों के मन की लगन और कला की झलक देती है, जो इनकी इच्छाशक्ति को प्रेरित करने के साथ-साथ समाज को एक सशक्त संदेश देती है: सीमाओं में सिमटे रहने का कोई कारण नहीं, अगर जज्बा और हुनर हो तो हर दीया उजाला कर सकता है.
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