जौनपुर, 14 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) प्रमोशन आफ एग्रीकल्चरल मैकेनाइजेशन फार इंनसीटू मैनेजमेंट ऑफ क्रॉप रेसिड्यू योजनान्तर्गत मंगलवार को कृषि विभाग द्वारा बीआरपी इण्टर कालेज परिसर में जनपद स्तरीय फसल अवशेष प्रबंधन गोष्ठी/मेला का आयोजन किया गया. इसमें किसानों को खेतों में पराली न जलाने का सुझाव दिया गया. गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आरके सिंह ने कहा कि किसान खेतों में पराली कदापि न जलाए, बल्कि बायो डी कम्पोजर से खाद बनाने एवं उन्नति शील कृषि यंत्रों से पराली प्रबंधन का सुझाव दिया तथा बताया कि सैटेलाइट से पकड़ें जाने पर दो एकड़ तक के कृषको पर रुपये 2500, पाच एकड़ तक पाच हजार रुपये तथा पाच एकड़ क्षेत्रफल से अधिक पराली जलाने पर रुपये 15 हजार जुर्माना के साथ सारी सरकारी योजनाओं से बंचित कर दिए जाएंगे. उन्होंने बताया कि खेतों में पराली जलाने पर मनुष्य एवं जीव जन्तुओ के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, पराली को यथा स्थान मिट्टी में सड़ाने से मृदा का तापमान नियंत्रित रहता है, पीएच मान एवं मृदा की संरचना में सुधार होता है. मृदा की जल धारण क्षमता एवं वायु संचार बढ़ता है जिससे उत्पादन लागत में कमी एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है. वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा० सुरेश कुमार कन्नौजिया ने कम लागत में अधिक उत्पादन वाली प्राकृतिक खेती की जानकारी दिया. उन्होंने बताया कि खेतों में 1 टन पराली जलाने से 60 किग्रा कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किग्रा कार्बनडाइऑक्साइड, 200 किग्रा राख एवं 2 किग्रा सल्फर ऑक्साईड उत्पन्न होती है जिससे मृदा संरचना खराब होती है तथा 1 टन पराली खेतों में सड़ाने से 5.50 किग्रा नाइट्रोजन 2.5 किग्रा फास्फोरस, 23 किग्रा पोटाश और 400 किग्रा जैविक कार्बन प्राप्त होते हैं, जिससे मृदा की उर्वरता में सुधार होता है, पर्यावरण का संरक्षण होता है, मृदा का तापमान नियंत्रित रहता फलस्वरूप उत्पादन बढ़ता है.अध्यक्षता उप कृषि निदेशक हिमांशु पांडेय तथा संचालन उप परियोजना निदेशक आत्मा डा. रमेश चन्द्र यादव ने किया गया.
(Udaipur Kiran) / विश्व प्रकाश श्रीवास्तव
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