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मक्का तीसरी सबसे बड़ी फसल, उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई तरह के शोध की आवश्यकता : शिवराज सिंह

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नई दिल्ली, 7 जुलाई (Udaipur Kiran) ।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को दिल्ली में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (फिक्की) द्वारा आयोजित 11वें भारत मक्का समिट-2025 का शुभारंभ किया। इस अवसर पर शिवराज सिंह ने मक्का उत्पादन के क्षेत्र में नवाचार एवं उत्कृष्ट योगदान देने वाले किसानों को सम्मानित किया।

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह ने यहां कहा कि कृषि आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और किसान उसकी आत्मा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी नीति है- देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, किसानों की आमदनी बढ़ाना, खेती को लाभ का धंधा बनाना, पोषणयुक्त आहार कैसे हमारी जनता को मिले, उसकी कोशिश करना है। शिवराज सिंह ने कहा कि मक्का में अभी कई चीजों की ज़रूरत है। मक्का तीसरी सबसे बड़ी क्रॉप हो गई है, पर प्रोडक्टिविटी बढ़ाना है। स्टार्च कम है, कई तरह के शोध की ज़रूरत है। अमेरिका, ब्राज़ील में कितना मक्का उत्पादन होता है। हम जेनिटिक्ली मॉडीफाइड (जीएम) बीज का इस्तेमाल नहीं करते, इसके बावजूद उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। हमने वैज्ञानिकों को निर्देश दिए हैं कि मक्का में उत्पादन कैसे बढ़े, क्योंकि 1990 के दशक में केवल 10 मिलियन टन उत्पादन था, अब ये बढ़कर लगभग 42.3 मिलियन टन तक पहुंच गया है और 2047 तक यह 86 मिलियन टन पहुंच सकता है।

चौहान ने कहा कि हमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद को भी धन्यवाद देना चाहिए कि मक्का की कई नई किस्में-265 वैरायटी विकसित की हैं, जिनमें से 77 हाइब्रिड किस्में भी हैं, जिसमें स्पेशलिटी कॉर्न शामिल है और करीब 30 बायोफॉर्टिफाइड भी हैं, यानी काम हुआ है, लेकिन मुझे लगता है काम और करने की ज़रूरत है। शिवराज सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में सरकार ने भी कसर नहीं छोड़ी है। बीच में मक्का के रेट काफ़ी गिर गए थे, लेकिन एमएसपी, एथनॉल लक्ष्य सहित सरकार की नीतियों से दाम फिर बढ़े हैं। मक्का के किसानों को ठीक दाम मिले, इसकी हम कोशिश करते रहेंगे। उत्पादन लागत कैसे घटे, इसके भी निर्देश दिए हैं। रिसर्च करके प्रति हेक्टेयर हम कैसे लागत घटा सकते हैं, इस दिशा में भी काम करना पड़ेगा।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि ग्लोबल वॉर्मिंग, जलवायु परिवर्तन आज के बड़े मुद्दे हैं। इन खतरों से निपटने वाली फसलें भी हमें चाहिए। हमारे रेनफेड इलाक़े में मक्के का उत्पादन कैसे बढ़े, जहां ज़्यादा पानी गिरता है, वहां फसल कैसे टिकी रहे और इसलिए उस तरह की किस्मों के लिए भी हम लोग लगातार काम करते रहेंगे। पंजाब, हरियाणा में फसल विविधीकरण जरूरी है, इसलिए धान की जगह कुछ किसान मक्का में शिफ्ट हो जाएं, इसका हम प्रयत्न कर रहे हैं, वैसे मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में मक्का का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। चौहान ने कहा कि देश को तिलहन-तेल की भी जरूरत है, लेकिन कुछ चीजें हमें और करना पड़ेगी, डीडीजीएस जो एक सहायक उत्पाद है उसमें प्रोटीन काफी होता है लेकिन मक्के से ज्यादा चावल में होता है, मक्के में अगर 25 प्रतिशत से 30 प्रतिशत है तो चावल में 40 प्रतिशत से 45 प्रतिशत है, ये प्रोटीन मक्का में कैसे बढ़े, इसकी हम चिंता कर रहे हैं। स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न ये ऐसी फसलें हैं, जिससे किसान को तत्काल लाभ मिलता है और तीन-तीन, चार-चार बार हम ये फसल पैदा कर सकते हैं। उनकी भी और अच्छी किस्में कैसे आएं, इस बात की हम कोशिश करते रहेंगे।

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(Udaipur Kiran) / विजयालक्ष्मी

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