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भारत की शौर्यगाथा का प्रतीक है विजय स्तम्भ, 3 मिनट की डॉक्यूमेंट्री में जानिए इसके निर्माण, वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व की पूरी कहानी

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राजस्थान की वीरभूमि चित्तौड़गढ़ केवल युद्धगाथाओं और महारानी पद्मावती की विरासत के लिए ही नहीं जानी जाती, बल्कि यहां खड़ा एक अमिट प्रतीक है पराक्रम का — विजय स्तम्भ। यह स्तम्भ न केवल स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है, जो मेवाड़ की वीरता, समर्पण और धर्मरक्षा की गाथा को पत्थरों पर उकेरता है।चित्तौड़ दुर्ग के भीतर स्थित यह भव्य स्तम्भ भारतीय इतिहास और सांस्कृतिक पहचान का गौरव है। इसे देखने हर वर्ष हजारों देसी-विदेशी पर्यटक आते हैं, जो इसकी भव्यता और कथा से अभिभूत हुए बिना नहीं रह पाते।


कब और किसने बनवाया विजय स्तम्भ?

विजय स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा 1448 ईस्वी में करवाया गया था। यह स्मारक एक ऐतिहासिक विजय को चिन्हित करता है — जब महाराणा कुम्भा ने मालवा के मुस्लिम शासक मोहम्मद खिलजी को हराकर धर्म और राज्य की रक्षा की।यह स्तम्भ न केवल युद्ध की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह मेवाड़ की संस्कृति, सनातन धर्म की रक्षा और हिन्दू गौरव का भी प्रतीक बन गया।

विजय स्तम्भ की स्थापत्य विशेषताएं और संरचना
1. ऊँचाई और निर्माण शैली

विजय स्तम्भ की कुल ऊँचाई लगभग 122 फीट (37.19 मीटर) है और इसे राजस्थानी शैली में पूरी तरह से बलुआ पत्थर से बनाया गया है। यह एक नौ-मंजिला (9 तल्लों वाला) स्तम्भ है, जिसके हर तल पर अलग-अलग देवताओं की मूर्तियाँ, स्थापत्य सजावट और शिलालेख हैं।

2. सीढ़ियाँ और आंतरिक रचना
स्तम्भ के अंदर कुल 157 घुमावदार सीढ़ियाँ हैं जो शीर्ष तल तक जाती हैं। ऊपर से चित्तौड़गढ़ का मनोरम दृश्य नजर आता है, जो पर्यटकों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव बन जाता है।

3. मूर्तिकला और नक्काशी
विजय स्तम्भ की दीवारों पर हिन्दू देवी-देवताओं, साधु-संतों, हाथी-घोड़े, युद्ध के दृश्य, और आम जीवन से जुड़े चित्रों की महीन नक्काशी की गई है। इसकी सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि भगवद्गीता, रामायण और महाभारत की कथाएं भी मूर्तियों में उकेरी गई हैं।यह स्तम्भ सिर्फ पत्थरों का ढांचा नहीं बल्कि एक दृश्य-पुराण (visual scripture) है।

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
विजय स्तम्भ एक धार्मिक चेतना और सांस्कृतिक आत्मबल का प्रतीक है। यह उस काल में निर्मित हुआ जब भारत पर विदेशी आक्रमण हो रहे थे और हिन्दू सभ्यता संकट में थी। ऐसे में महाराणा कुम्भा जैसे शासकों ने धर्मरक्षा के लिए न केवल तलवार उठाई बल्कि स्मारक भी बनाए जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा दे सकें।इस स्तम्भ में ऊपर एक छोटा सा मंदिरनुमा मंडप भी है जो यह दर्शाता है कि विजय को भी भगवान की कृपा और धर्म के अधिष्ठान से जोड़ा गया।

विजय स्तम्भ और इतिहास के पन्ने
महाराणा कुम्भा के शासन काल (1433–1468 ई.) को मेवाड़ का स्वर्ण युग माना जाता है।
विजय स्तम्भ के निर्माण में लगभग 10 वर्षों का समय लगा था।
स्तम्भ पर शिलालेखों में कवि आचार्य श्रवण द्वारा रचित संस्कृत श्लोकों के माध्यम से मेवाड़ के राजाओं की वंशावली भी अंकित है।
यह स्मारक इतिहासकारों के लिए एक जीवित ग्रंथ की तरह है।

पर्यटन और संरक्षण
आज विजय स्तम्भ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित है और यह पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। चित्तौड़गढ़ घूमने आने वाले पर्यटक इसके बिना यात्रा को अधूरा मानते हैं।
प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए ₹40, विदेशी पर्यटकों के लिए ₹600 (चित्तौड़ दुर्ग के कुल टिकट में शामिल)
समय: प्रातः 9:00 बजे से सायं 5:00 बजे तक
स्तम्भ को रात्रि में रोशन किया जाता है, जिससे यह और भी भव्य दिखाई देता है।

निष्कर्ष: क्यों देखें विजय स्तम्भ?
विजय स्तम्भ केवल एक ऐतिहासिक स्मारक नहीं, बल्कि यह एक भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रतीक है — जो बताता है कि कैसे एक राजा ने न केवल अपनी भूमि बल्कि अपने धर्म और सभ्यता की रक्षा की।यह स्तम्भ हमें हमारी प्राचीन वास्तुकला, संस्कृति, और वीरता की याद दिलाता है। जो पर्यटक इतिहास, कला और आध्यात्मिकता को साथ महसूस करना चाहते हैं, उनके लिए विजय स्तम्भ एक अनिवार्य गंतव्य है।

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