शरद पवार और अजित पवार की राजनीतिक पार्टियों के विलय की संभावनाएं चर्चा में हैं। यदि दोनों दल एकजुट होते हैं, तो इसका सबसे बड़ा लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। शरद पवार ने कांग्रेस के वोटों पर अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। उन्होंने 1999 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाई और इस दौरान कांग्रेस के वोटों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपने साथ ले गए। मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र में, जहां कांग्रेस का मजबूत आधार था, वहीं शरद पवार की एनसीपी ने भी अपनी पहचान बनाई। 1999 के पहले चुनाव में वे कांग्रेस से पीछे रहे, लेकिन 2004 में उन्हें कांग्रेस से अधिक सीटें मिलीं। हालांकि, उस समय भी उन्होंने अपने भतीजे को मुख्यमंत्री नहीं बनाया और कांग्रेस को यह अवसर दिया, जबकि अजित पवार को उप मुख्यमंत्री बनाया। इस बात की कसक अजित पवार के मन में आज भी है, जिसका उन्होंने हाल ही में उल्लेख किया।
अजित पवार का राजनीतिक सफर
जब अजित पवार ने शरद पवार की पार्टी को तोड़ा, तो उन्होंने कुछ वोट अपने साथ ले लिए और भाजपा का समर्थन भी प्राप्त किया, जिससे उनकी पार्टी ने 41 सीटें जीतकर उप मुख्यमंत्री बनने में सफलता पाई। यदि शरद पवार की पार्टी का विलय होता है, तो उनके साथ ज्यादा वोट नहीं जुड़ेंगे। फिर भी, भाजपा के साथ रहते हुए भी अजित पवार मुस्लिम राजनीति में सक्रिय हैं। इस कारण यह संभावना जताई जा रही है कि वे विलय के बाद शरद पवार की विरासत को अपने कब्जे में लेने के बाद अगले चुनाव से पहले कांग्रेस में लौट सकते हैं। ध्यान देने योग्य है कि उनके खिलाफ चल रहे कई मुकदमे या तो समाप्त हो चुके हैं या उन्हें क्लीन चिट मिल गई है। फिर भी, वे तुरंत तालमेल तोड़ने का जोखिम नहीं उठाएंगे। शरद पवार भी शायद नहीं चाहेंगे कि केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह सत्तारूढ़ गठबंधन से दूर रहें। अपने पूरे राजनीतिक करियर में, शरद पवार कभी भी सत्ता से दूर नहीं रहे हैं।
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