नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के मामले में आरोपी निखिल जैन को सुप्रीम कोर्ट तक से राहत न दिए जाने के बावजूद न्यायिक मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सेशन जज की ओर से उसकी गिरफ्तारी पर रोक को गंभीरता से लिया है। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस गिरीश कठपालिया की बेंच ने अचरज जताया कि मजिस्ट्रेट और सेशन जज ने हाईकोर्ट से निखिल को अग्रिम जमानत और सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी खारिज होने के बाद भी गिरफ्तार न करने का आदेश दिया। इसे न्यायिक अनुशासनहीनता मानते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने दोनों जजों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। साथ ही तथ्यों को छिपाने में अभियोजन पक्ष और जांच एजेंसी की भूमिका की भी जांच के लिए कहा है।
जस्टिस कठपालिया ने निखिल जैन की अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए कहा कि ऐसा लगता है रोहिणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम और अतिरिक्त सेशन जज ने जानबूझकर आरोपी की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। इस बारे में दाखिल याचिका में कहा गया था कि उसकी दो अग्रिम जमानत अर्जी सेशन कोर्ट से खारिज हो गई। फिर दिल्ली हाईकोर्ट ने भी फरवरी और मार्च 2024 में दो बार अग्रिम जमानत नहीं दी। जिसके बाद निखिल जैन ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दी और वो भी खारिज हो गई। इसके बाद भी आरोपी को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच ने पाया कि आरोपी को गिरफ्तारी से बचाने के आदेश जारी किए गए। जबकि, जांच अधिकारी ने भी निखिल को गिरफ्तार नहीं किया।
न्यायिक मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सेशन जज ने हाईकोर्ट को जवाब दिया कि जांच अधिकारी या अभियोजन पक्ष ने आरोपी की अग्रिम जमानत या एसएलपी खारिज होने की जानकारी उनको नहीं दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस पर ध्यान नहीं दिया कि एसएलपी का निपटारा किस तरह किया गया। दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ये नहीं माना जा सकता कि न्यायिक मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सेशन जज को आरोपी की पहले की अग्रिम जमानत अर्जी या एसएलपी खारिज होने की जानकारी नहीं थी।
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