कल्पना कीजिए, आप एक अनजान देश में हिंसक दंगों के बीच फंसे हैं। जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर आप एयरपोर्ट पहुंचते हैं, घर वापस आने की उम्मीद लिए। लेकिन तभी पता चलता है कि घर जाने का एकमात्र हवाई रास्ता ही बंद हो गया है। ऐसा ही डरावना अनुभव किर्गिस्तान में फंसे 180 कश्मीरी छात्रों को हुआ, जिनकी घर वापसी एक बेहद तनावपूर्ण কূটনৈতিক مشن के बाद ही ممکن हो सकी।
डर और बेबसी के वो पलकिर्गिस्तान में विदेशियों के खिलाफ अचानक दंगे भड़क उठे थे। कश्मीरी छात्र डरे हुए थे और किसी भी तरह वहां से निकलना चाहते थे। भारत सरकार और कश्मीरी एक्टिविस्ट नासिर खुएहामी की मदद से उनके लिए एक स्पेशल फ्लाइट का इंतजाम तो हो गया, लेकिन असली चुनौती अब सामने आई। भारत आने के लिए विमान को ईरान के हवाई क्षेत्र से गुजरना था। ठीक उसी वक्त, ईरान के राष्ट्रपति की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई और ईरान ने अपना पूरा एयरस्पेस बंद कर दिया।
अब छात्र एयरपोर्ट पर फंसे थे, एक ऐसी स्थिति में जहाँ आगे कुआँ और पीछे खाई थी। उनकी उम्मीदें टूटने लगी थीं।
पर्दे के पीछे शुरू हुआ ‘ऑपरेशन सिंधु’जैसे ही यह खबर दिल्ली पहुंची, विदेश मंत्रालय हरकत में आ गया। तेहरान (ईरान) में भारतीय दूतावास के लिए यह एक बड़ी परीक्षा की घड़ी थी। राजदूत रुद्र गौरव श्रेष्ठ और उनकी टीम ने इस मिशन को “ऑपरेशन सिंधु” नाम दिया और फौरन ईरानी अधिकारियों से बातचीत शुरू की। यह कोई आम बातचीत नहीं थी। एक तरफ ईरान राष्ट्रीय शोक में था और सुरक्षा कारणों से किसी भी विमान को इजाजत नहीं दे रहा था, दूसरी तरफ 180 भारतीय नागरिकों की सुरक्षा दांव पर थी।
अगले 36 घंटे फोन की घंटियां लगातार बजती रहीं। भारतीय राजनयिकों ने मानवीय आधार पर और भारत-ईरान के मजबूत रिश्तों का हवाला देते हुए ईरानी अधिकारियों को यह समझाने की कोशिश की कि इन छात्रों को निकालना कितना ज़रूरी है।
आखिरकार मिली कामयाबीआखिरकार, 36 घंटों के लगातार तनाव और अथक प्रयासों के बाद भारतीय कूटनीति की जीत हुई। ईरान सिर्फ उस एक भारतीय विमान को अपने एयरस्पेस से गुजरने के लिए एक छोटा सा “विशेष विंडो” (कुछ समय के लिए रास्ता) देने पर राजी हो गया। जैसे ही हरी झंडी मिली, स्पाइसजेट का विमान छात्रों को लेकर उड़ा और कुछ ही घंटों में दिल्ली में सुरक्षित उतर गया।
विमान से उतरते ही छात्रों के चेहरों पर जो राहत और खुशी थी, वह इस सफल ऑपरेशन की सबसे बड़ी कहानी कहती है। यह मिशन भारतीय दूतावास के साहस और पर्दे के पीछे चुपचाप काम करने वाले नायकों की जीत की मिसाल है।
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