श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाने वाला दही हांडी का उत्सव सिर्फ एक पारंपरिक खेल नहीं,बल्कि भगवान कृष्ण के बाल रूप की नटखट लीलाओं को याद करने का एक जीवंत और जोशीला तरीका है। यह पर्व भारत की सांस्कृतिक विविधता और सामुदायिक भावना का एक शानदार प्रतीक है,जिसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। आसमान में बंधी मटकी,उसे फोड़ने के लिए एक दूसरे पर चढ़ते गोविंदाओं का जोश और "गोविंदा आला रे आला" का शोर... यह नज़ारा हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है।खासतौर पर महाराष्ट्र और मुंबई में तो इस उत्सव की धूम देखने लायक होती है,जहां इसे किसी बड़े खेल आयोजन की तरह मनाया जाता है। तो चलिए,साल2025में आने वाले इस रोमांचक त्योहार के बारे में विस्तार से जानते हैं - इसकी सही तारीख क्या है,इसका शुभ मुहूर्त क्या है,और इस मटकी फोड़ परंपरा के पीछे की कहानी और गहरा महत्व क्या है।दही हांडी2025:तिथि और शुभ मुहूर्त (Date and Auspicious Time)हिन्दू पंचांग के अनुसार,दही हांडी का उत्सव भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को,यानी श्री कृष्ण जन्माष्टमी के ठीक अगले दिन मनाया जाता है।जन्माष्टमी 2025तिथि:सोमवार, 18अगस्त2025दही हांडी2025तिथि:मंगलवार, 19अगस्त2025दही हांडी का उत्सव पूरे दिन चलता है,इसलिए इसके लिए कोई विशेष पूजा मुहूर्त नहीं होता है। हालांकि,गोविंदा टोलियां सुबह से ही निकल पड़ती हैं और देर शाम तक अलग-अलग जगहों पर मटकी फोड़ने की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती हैं। फिर भी,अगर आप दिन के शुभ चौघड़िया मुहूर्त को देखें,तो ये समय विशेष रूप से उत्तम माने जाते हैं।क्यों मनाई जाती है दही हांडी?क्या है'माखन चोर'की कहानी?दही हांडी का सीधा संबंध भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से है। अपने बचपन में कान्हा बेहद नटखट और शरारती थे। उन्हें माखन (मक्खन),दही और दूध बहुत प्रिय था। वह अक्सर अपने दोस्तों (ग्वालों) के साथ मिलकर आस-पड़ोस के घरों में चोरी से माखन चुराकर खाया करते थे।उनकी इस आदत से परेशान होकर गोपियों ने माखन की मटकियों को ऊंचे छज्जों या छत से लटकाना शुरू कर दिया ताकि कान्हा का हाथ वहां तक न पहुंच सके। लेकिन कान्हा भी अपनी धुन के पक्के थे। उन्होंने इस समस्या का भी तोड़ निकाल लिया। वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक के ऊपर एक चढ़कर एकमानव पिरामिड (Human Pyramid)बनाते और सबसे ऊपर चढ़कर मटकी फोड़ देते और सब मिलकर माखन का आनंद लेते।भगवान कृष्ण की इसी मनमोहक बाल लीला को याद करने और उसका जश्न मनाने के लिए हर साल दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है।क्या है दही हांडी का गहराsymbolicमहत्व?यह उत्सव सिर्फ एक नकल नहीं है,इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक संदेश भी छिपे हैं:टीम वर्क और एकता:मानव पिरामिड बनाना एकता,सहयोग और टीम वर्क का सबसे बड़ा उदाहरण है। यह सिखाता है कि मिलकर काम करने से किसी भी मुश्किल लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना:गोविंदाओं का एकमात्र लक्ष्य ऊंचाई पर बंधी मटकी होती है। यह जीवन में अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने और उसे पाने के लिए निरंतर प्रयास करने की प्रेरणा देता है।अहंकार का नाश:ऊपर बंधी मटकी को अक्सर अहंकार का प्रतीक भी माना जाता है,और उसे फोड़ना अपने अंदर के अहंकार को नष्ट करने का प्रतीक है। मटकी से गिरने वाला दही और माखन ईश्वर के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है।कैसे मनाया जाता है यह उत्सव? (खासकर महाराष्ट्र में)दही हांडी में भाग लेने वाले युवाओं के समूह को'गोविंदा पाठक'या'गोविंदा टोली'कहा जाता है। ये टोलियां सुबह से ही ट्रकों और बसों में भरकर पूरे शहर में घूमती हैं और जगह-जगह आयोजित प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती हैं।ऊंचे बंधे इनाम:कई आयोजक लाखों-करोड़ों रुपये के इनाम की घोषणा करते हैं,जिससे यह प्रतियोगिता और भी रोमांचक हो जाती है।जोखिम और सुरक्षा:मानव पिरामिड बनाना एक जोखिम भरा काम भी है,और इसमें कई बार गोविंदा घायल भी हो जाते हैं। इसी कारण अब सुरक्षा नियमों पर भी जोर दिया जाता है,जैसे गोविंदाओं की आयु सीमा निर्धारित करना और सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना।संगीत और नृत्य:दही हांडी का उत्सव बिना संगीत और नृत्य के अधूरा है। चारों ओर बॉलीवुड केénergiqueगाने बजते रहते हैं और लोग सड़कों पर नाचते-गाते इस उत्सव का आनंद लेते हैं।संक्षेप में,दही हांडी सिर्फ एक परंपरा नहीं,बल्कि जोश,जुनून,आस्था,एकता और भगवान कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम का उत्सव है,जो हमें जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक भी सिखाता है।
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