News India Live, Digital Desk: Masala Chai Origin : सुबह की नींद खोलनी हो, दोस्तों के साथ गपशप करनी हो या बारिश का मज़ा लेना हो... हमारे लिए हर मौके का एक ही जवाब है -'एक कप चाय'. आज चाय हमारे कल्चर का, हमारी पहचान का एक ऐसा हिस्सा बन चुकी है कि इसके बिना दिन अधूरा लगता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस देश में हज़ारों सालों से दूध, लस्सी और ठंडाई पीने का रिवाज़ रहा हो, वहाँ यह अंग्रेज़ों की लाई हुई चाय इतनी पॉपुलर कैसे हो गई?और सबसे बड़ा सवाल - जब पूरी दुनिया में लोग ब्लैक टी या ग्रीन टी पी रहे थे, तो हम भारतीयों ने इसमें दूध, चीनी और मसाले डालकर इसका पूरा रूप ही क्यों बदल दिया?इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है और यह गुलामी के दौर में भारतीयों के एक 'देसी जुगाड़' से जुड़ी है.यह अंग्रेज़ों की एक व्यापारिक चाल थीकहानी शुरू होती है 19वीं सदी में. उस समय चाय के व्यापार पर चीन का एकाधिकार था और अंग्रेज़ इससे बहुत परेशान थे. चीन से अपनी निर्भरता खत्म करने के लिए उन्होंने भारत के असम और दार्जिलिंग के पहाड़ों पर चाय के बागान लगाने शुरू कर दिए. चाय तो उग गई, लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती थी इसे भारतीयों को पिलाना.किसी को पसंद नहीं आया 'कड़वा-कसैला' स्वादशुरुआत में जब अंग्रेज़ों ने भारतीयों को चाय पिलाई, तो किसी को इसका स्वाद पसंद नहीं आया. भला, उबलते पानी में डली कड़वी पत्तियां किसे अच्छी लगतीं? अंग्रेज़ों ने इसे एक 'हेल्दी ड्रिंक' बताकर बहुत प्रमोट किया, मिलों और फैक्ट्रियों में 'टी-ब्रेक' शुरू करवाए ताकि मज़दूर फ्रेश महसूस करें. लेकिन बात फिर भी नहीं बनी.फिर आया असली 'इंडियन जुगाड़'जब अंग्रेज़ अपनी कोशिशों में नाकाम हो रहे थे, तब सड़क किनारे चाय बेचने वाले आम दुकानदारों ने एक ऐसा जुगाड़ निकाला जिसने चाय की किस्मत ही बदल दी. उन्होंने देखा कि भारतीय लोगों को दूध पीने की आदत है और वे मीठे के भी शौकीन हैं. बस, उन्होंने अंग्रेज़ों की उस कड़वी चाय में ये दो चीज़ें मिला दीं -दूध और चीनी.दूध मिलाते ही चाय का कड़वापन कम हो गया और उसमें एक मलाईदार स्वाद आ गया. चीनी ने उसकी कड़वाहट को पूरी तरह ढक दिया. यह चाय अब सिर्फ एक पेय नहीं रही, बल्कि मज़दूर वर्ग के लिए एक सस्ता, पेट भरने वाला नाश्ता बन गई. दूध और चीनी से मिली कैलोरी उन्हें दिन भर काम करने की ऊर्जा देती थी.और फिर मिला मसालों का तड़कायह नया स्वाद भारतीयों को खूब पसंद आया. अब जब दूध और चीनी घुल ही गए थे, तो भारतीयों ने इसमें अपना पारंपरिक तड़का भी लगा दिया. अदरक, इलायची, लौंग और काली मिर्च जैसे मसाले डालकर इसे 'मसाला चाय' का रूप दे दिया. यह वो चाय थी जिसे हर भारतीय ने तुरंत अपना लिया. यह अब अंग्रेज़ों की चाय नहीं, बल्कि हमारी, आपकी 'देसी चाय' बन चुकी थी.तो अगली बार जब आप चाय की चुस्की लें, तो याद रखिएगा कि यह सिर्फ एक ड्रिंक नहीं, बल्कि उस देसी जुगाड़ और स्वाद की कहानी है जिसने एक विदेशी पेय को हमेशा-हमेशा के लिए हिंदुस्तानी बना दिया.
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