माले: मालदीव की स्थानीय मीडिया ने बताया है कि राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के प्रशासन ने तुर्की से ड्रोन की दो और खेपें आयात की हैं। मुइज्जू की टीम ने पहले भी ऐसा किया था, जो भारत के साथ संबंधों में तनाव की वजह बने थे। मुइज्जू ने समुद्री निगरानी के लिए भारत से मिले डोर्नियर विमानों की जगह तुर्की के ड्रोन लाना चाहते थे। चीन, पाकिस्तान के साथ संबंध और अब तुर्की के साथ मालदीव का नया ड्रोन समझौता भारत की अपने पड़ोस को लेकर चिंता बढ़ा सकता है।
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, मालदीव के विपक्ष समर्थक अधाधु दैनिक ने खबर दी है कि तुर्की से तीन बायरकटार टीबी2 ड्रोनों से भरी दो खेपें हाल ही में दक्षिण के गण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तीन दिनों के भीतर पहुंची हैं। अखबार ने उस मालवाहक उड़ान का विवरण भी दिया है, जिससे ये दोनों खेपें आई थीं और उन्होंने किस रास्ते का इस्तेमाल किया।
ड्रोन बेस बना रहा मालदीवमालदीवियन राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) एक ड्रोन बेस स्थापित कर रहा है। ऐतिहासिक रूप से गण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इंग्लैंड की रॉयल एयर फोर्स (आरएएफ) का बेस रहा है। 1965 में ब्रिटेन की ओर से इसे खाली करने के बाद मालदीव की स्वतंत्रता का प्रतीक था। अधाधु ने दावा किया है कि एमएनडीएफ के अधिकारियों ने ड्रोनों का विवरण साझा करने से इनकार कर दिया लेकिन उसने ड्रोनों का परीक्षण शुरू कर दिया है।
मुइज्जू सरकार ने ड्रोन की लागत साझा करने से इनकार कर दिया है। हालांकि अधाधु ने इसकी लागत 3.7 करोड़ डॉलर बताई है। एक विपक्षी नेता ने इसकी लागतर 9 करोड़ डॉलर होने का दावा किया है। ये सौदे ऐसे समय हो रहे हैं, जब मालदीव की अर्थव्यवस्था लगभग चरमरा रही है। ऐसे में विपक्ष ने ड्रोन पर खर्च को लेकर चिंता जताई है।
भारत की चिंताएक्सपर्ट का कहना है कि भारत को अपने पड़ोस पर पहले से ज्यादा कड़ी नजर रखने की जरूरत है। चीन, पाकिस्तान, तुर्की मिलकर पश्चिमी हिंद महासागर में भारत से सटे क्षेत्र में जो नया स्वरूप बनाना चाहते हैं, वह चिंता का विषय होना चाहिए। भारत को मालदीव जैसे छोटे देश को तुर्की से ड्रोन की निरंतर आपूर्ति और मिसाइल-सक्षम नौसैनिक पोत के उपहार को गंभीरता से लेना चाहिए।
भारत के सामने सवाल यह है कि मालदीव ड्रोन लेने के साथ-साथ मिसाइल-सक्षम नौसैनिक पोत को हथियार बनाने का इरादा भी दिखा रहा है। ऐसे में सवाल है कि वह ऐसा क्यों चाहता है। तात्कालिक परिस्थितियों में उसके पास केवल भारत, श्रीलंका और मॉरीशस हैं। मालदीव का तुर्की जैसे देश के साथ रणनीतिक सहयोग चिंता बढ़ाता है, जिसमें भारत के पड़ोस के जलक्षेत्र को ज्यादा प्रभावित करने की योग्यता है।
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, मालदीव के विपक्ष समर्थक अधाधु दैनिक ने खबर दी है कि तुर्की से तीन बायरकटार टीबी2 ड्रोनों से भरी दो खेपें हाल ही में दक्षिण के गण अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर तीन दिनों के भीतर पहुंची हैं। अखबार ने उस मालवाहक उड़ान का विवरण भी दिया है, जिससे ये दोनों खेपें आई थीं और उन्होंने किस रास्ते का इस्तेमाल किया।
ड्रोन बेस बना रहा मालदीवमालदीवियन राष्ट्रीय रक्षा बल (एमएनडीएफ) एक ड्रोन बेस स्थापित कर रहा है। ऐतिहासिक रूप से गण द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इंग्लैंड की रॉयल एयर फोर्स (आरएएफ) का बेस रहा है। 1965 में ब्रिटेन की ओर से इसे खाली करने के बाद मालदीव की स्वतंत्रता का प्रतीक था। अधाधु ने दावा किया है कि एमएनडीएफ के अधिकारियों ने ड्रोनों का विवरण साझा करने से इनकार कर दिया लेकिन उसने ड्रोनों का परीक्षण शुरू कर दिया है।
मुइज्जू सरकार ने ड्रोन की लागत साझा करने से इनकार कर दिया है। हालांकि अधाधु ने इसकी लागत 3.7 करोड़ डॉलर बताई है। एक विपक्षी नेता ने इसकी लागतर 9 करोड़ डॉलर होने का दावा किया है। ये सौदे ऐसे समय हो रहे हैं, जब मालदीव की अर्थव्यवस्था लगभग चरमरा रही है। ऐसे में विपक्ष ने ड्रोन पर खर्च को लेकर चिंता जताई है।
भारत की चिंताएक्सपर्ट का कहना है कि भारत को अपने पड़ोस पर पहले से ज्यादा कड़ी नजर रखने की जरूरत है। चीन, पाकिस्तान, तुर्की मिलकर पश्चिमी हिंद महासागर में भारत से सटे क्षेत्र में जो नया स्वरूप बनाना चाहते हैं, वह चिंता का विषय होना चाहिए। भारत को मालदीव जैसे छोटे देश को तुर्की से ड्रोन की निरंतर आपूर्ति और मिसाइल-सक्षम नौसैनिक पोत के उपहार को गंभीरता से लेना चाहिए।
भारत के सामने सवाल यह है कि मालदीव ड्रोन लेने के साथ-साथ मिसाइल-सक्षम नौसैनिक पोत को हथियार बनाने का इरादा भी दिखा रहा है। ऐसे में सवाल है कि वह ऐसा क्यों चाहता है। तात्कालिक परिस्थितियों में उसके पास केवल भारत, श्रीलंका और मॉरीशस हैं। मालदीव का तुर्की जैसे देश के साथ रणनीतिक सहयोग चिंता बढ़ाता है, जिसमें भारत के पड़ोस के जलक्षेत्र को ज्यादा प्रभावित करने की योग्यता है।
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