नई दिल्ली: अमेरिका टैरिफ पर सौदेबाजी में तमाम देशों के साथ खास तरह की व्यापार रणनीति अपना रहा है। इसे थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने 'मसाला' (MASALA-म्यूचुअली एग्रीड सेटेलमेंट अचीव्ड थ्रू लेवरेज आर्म-ट्विस्टिंग) डील करार दिया है। इस रणनीति का मकसद दबाव बनाकर देशों से एकतरफा रियायतें हासिल करना है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अमेरिका के साथ किसी भी व्यापार समझौते में जल्दबाजी करने से बचना चाहिए। इसका कृषि जैसे क्षेत्रों में समझौते के लिए खास ख्याल रखने की जरूरत है।
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की 'मसाला' रणनीति राजनीतिक रूप से प्रेरित है। इसमें व्यापार में किसी तरह की स्थायी निश्चितता नहीं है। अमेरिका 24 देशों और यूरोपीय संघ (EU) को टैरिफ लगाने वाले पत्र भेज चुका है। इसमें ब्राजील पर 50% तक और ईयू और मैक्सिको जैसे प्रमुख ट्रेड पार्टनर्स पर 1 अगस्त से 30% टैरिफ का प्रस्ताव है। यह साफ संकेत देता है कि अमेरिका अपने सबसे करीबी सहयोगियों को भी नहीं छोड़ रहा है।
तमाम देश एक सुर में कर रहे हैं विरोधअमेरिका वर्तमान में 20 से ज्यादा देशों के साथ बातचीत कर रहा है। 90 से ज्यादा देशों से रियायतें मांग रहा है। हालांकि, ज्यादातर देश इसका विरोध कर रहे हैं। कारण है कि वे समझते हैं कि ये 'मसाला' डील एकतरफा हैं। इन डीलों में अक्सर बिना किसी अमेरिकी रियायत के टैरिफ कटौती, अमेरिकी सामानों की गारंटीकृत खरीद और समझौते पर हस्ताक्षर के बाद भी भविष्य में टैरिफ लगाने की संभावना शामिल होती है। जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इन शर्तों का विरोध कर रहे हैं। अब तक केवल ब्रिटेन और वियतनाम ही अमेरिका की एकतरफा शर्तों पर सहमत हुए हैं।
भारत के व्यापार वार्ताकारों की एक टीम प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर आगे की बातचीत के लिए जल्द ही वाशिंगटन का दौरा करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को सतर्क रहना चाहिए। अगर अमेरिका ईयू और मैक्सिको जैसे प्रमुख व्यापारिक भागीदारों पर भी दबाव डाल सकता है तो भारत को एक संतुलित समझौते की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। कृषि जैसे मुख्य क्षेत्रों से समझौता करना भारत के लिए बहुत जटिल हो सकता है।
विश्वसनीयता तेजी से घट रही
जीटीआरआई का कहना है कि ट्रंप की व्यापार धमकियों की विश्वसनीयता तेजी से घट रही है। इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन के तहत होने वाले समझौते भविष्य में अमेरिकी राजनीति में बदलाव के साथ बने रह सकते हैं या नहीं, यह भी अनिश्चित है। एक जल्दबाजी में किया गया समझौता, जो दबाव में हो, भविष्य में भारत के लिए प्रतिकूल साबित हो सकता है।
ऐसे में भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में धैर्य और सावधानी से काम लेना चाहिए। उसे अपने मुख्य क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि को सुरक्षित रखने पर फोकस करना चाहिए और एक ऐसे समझौते में जल्दबाजी करने से बचना चाहिए जो एकतरफा हो और दीर्घकालिक व्यापार निश्चितता प्रदान न करे। अमेरिका की 'मसाला' रणनीति को समझते हुए भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी समझौता उसकी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और आर्थिक हितों के अनुरूप हो।
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव बताते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की 'मसाला' रणनीति राजनीतिक रूप से प्रेरित है। इसमें व्यापार में किसी तरह की स्थायी निश्चितता नहीं है। अमेरिका 24 देशों और यूरोपीय संघ (EU) को टैरिफ लगाने वाले पत्र भेज चुका है। इसमें ब्राजील पर 50% तक और ईयू और मैक्सिको जैसे प्रमुख ट्रेड पार्टनर्स पर 1 अगस्त से 30% टैरिफ का प्रस्ताव है। यह साफ संकेत देता है कि अमेरिका अपने सबसे करीबी सहयोगियों को भी नहीं छोड़ रहा है।
तमाम देश एक सुर में कर रहे हैं विरोधअमेरिका वर्तमान में 20 से ज्यादा देशों के साथ बातचीत कर रहा है। 90 से ज्यादा देशों से रियायतें मांग रहा है। हालांकि, ज्यादातर देश इसका विरोध कर रहे हैं। कारण है कि वे समझते हैं कि ये 'मसाला' डील एकतरफा हैं। इन डीलों में अक्सर बिना किसी अमेरिकी रियायत के टैरिफ कटौती, अमेरिकी सामानों की गारंटीकृत खरीद और समझौते पर हस्ताक्षर के बाद भी भविष्य में टैरिफ लगाने की संभावना शामिल होती है। जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इन शर्तों का विरोध कर रहे हैं। अब तक केवल ब्रिटेन और वियतनाम ही अमेरिका की एकतरफा शर्तों पर सहमत हुए हैं।
भारत के व्यापार वार्ताकारों की एक टीम प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर आगे की बातचीत के लिए जल्द ही वाशिंगटन का दौरा करेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को सतर्क रहना चाहिए। अगर अमेरिका ईयू और मैक्सिको जैसे प्रमुख व्यापारिक भागीदारों पर भी दबाव डाल सकता है तो भारत को एक संतुलित समझौते की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। कृषि जैसे मुख्य क्षेत्रों से समझौता करना भारत के लिए बहुत जटिल हो सकता है।
विश्वसनीयता तेजी से घट रही
जीटीआरआई का कहना है कि ट्रंप की व्यापार धमकियों की विश्वसनीयता तेजी से घट रही है। इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन के तहत होने वाले समझौते भविष्य में अमेरिकी राजनीति में बदलाव के साथ बने रह सकते हैं या नहीं, यह भी अनिश्चित है। एक जल्दबाजी में किया गया समझौता, जो दबाव में हो, भविष्य में भारत के लिए प्रतिकूल साबित हो सकता है।
ऐसे में भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में धैर्य और सावधानी से काम लेना चाहिए। उसे अपने मुख्य क्षेत्रों, विशेष रूप से कृषि को सुरक्षित रखने पर फोकस करना चाहिए और एक ऐसे समझौते में जल्दबाजी करने से बचना चाहिए जो एकतरफा हो और दीर्घकालिक व्यापार निश्चितता प्रदान न करे। अमेरिका की 'मसाला' रणनीति को समझते हुए भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी समझौता उसकी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और आर्थिक हितों के अनुरूप हो।
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