श्रीनगर: आरटीआई कानून का उद्देश्य सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, लेकिन कश्मीर में हाल ही में सामने आए कुछ अनुभव यह दर्शाते हैं कि सवाल पूछना अब भी आसान नहीं है। पिछले हफ्ते श्रीनगर के गोगजी बाग स्थित इकबाल पार्क के पीछे बने सरकारी ऑडिटोरियम टैगोर हॉल में कानून के छात्रों ने अपने कोर्स वर्क के हिस्से के रूप में आरटीआई आवेदन दाखिल किए। शुरू में यह एक शैक्षणिक अभ्यास था, पर जल्द ही यह सत्ता और प्रशासन की प्रतिक्रिया को समझने का एक व्यावहारिक सबक बन गया।
आवेदन वापस लें स्कूटर मिलेगा
दरअसल कश्मीर विश्वविद्यालय की छात्रा सबिका रसूल ने पुलवामा में अपने गांव की विकास बैठकों के बारे में जानकारी मांगी थी। सबिका ने 1 अगस्त को ग्रामीण विकास विभाग में आरटीआई दाखिल की थी। उन्होंने पूछा था कि ग्राम सभा की बैठकें कितनी बार हुईं और उनके बाद क्या विकास कार्य किए गए। जब वह खुद दफ्तर पहुंचीं, तो उन्हें एक डेस्क से दूसरे डेस्क तक भटकाया गया और बताया गया कि नामित अधिकारी का तबादला हो गया है। कुछ दिनों बाद उनके पिता को फिर फोन आया कि मामला आगे न बढ़ाएं। उन्हें कहा गया कि लड़की द्वारा ऐसे आवेदन दाखिल करना अच्छा नहीं लगता। बाद में उन्हें एक स्कूटर देने का प्रस्ताव भी मिला, यदि वह आवेदन वापस ले लें।
आरटीआई दाखिल करने के बाद होने लगी बैठकें
अंततः 15 अक्टूबर को उन्हें उर्दू में 32 पन्नों का जवाब मिला जिसमें 11 बैठकों और हर घर जल जैसी योजनाओं का उल्लेख था। हालांकि सबिका को आंकड़ों की सटीकता पर भरोसा नहीं, पर एक सकारात्मक बदलाव हुआ। अब ग्राम सभा बैठकों की घोषणा मस्जिदों में की जाती है, जिससे ग्रामीणों को उनके बारे में पता चलने लगा है। इस मामले पर पुलवामा के तत्कालीन सहायक आयुक्त (विकास) डॉ. पीरज़ादा फ़रहत ने स्कूटर ऑफर के दावे को सफेद झूठ बताया। उन्होंने कहा कि विभाग का सारा डेटा सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है।
सीखने के उद्देश्य से दायर की थी आरटीआई
सबिका जैसी कई छात्राएं और छात्र किसी टकराव के इरादे से नहीं, बल्कि सीखने के उद्देश्य से आरटीआई दायर कर रहे थे। परंतु, लगभग हर विभाग में उन्हें देरी, टालमटोल या अनौपचारिक दबाव का सामना करना पड़ा। गांदरबल के इदरीस फ़ारूक ने एक स्टेडियम के नवीनीकरण को लेकर खर्च, ठेकेदारों के नाम और रात्रि मैचों की आय का ब्यौरा मांगा। उन्हें जवाब में सिर्फ 31,500 रुपये का खर्च बताया गया, बिना किसी विवरण के। जल्द ही उनके रिश्तेदारों को अधिकारियों ने संपर्क कर स्पष्टीकरण मांगा। उन्होंने बताया कि मुझे समझाना पड़ा कि यह कोई शिकायत नहीं, सिर्फ एक आरटीआई थी।
जुनैद को भी नहीं मिला जवाब
वहीं उरी के जुनैद बुडू को पुस्तकालय विभाग से कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन उनके सवाल के बाद कुछ ही हफ्तों में गांव का पुस्तकालय फिर से खुल गया और कर्मचारी हाज़िरी देने लगे। जुनैद ने बताया कि उन्होंने जवाब तो नहीं दिया, लेकिन असर जरूर हुआ। करगिल के गुलाम अब्बास ने सिंचाई विभाग से अपने गांव की रुकी नहर परियोजना के बारे में जानकारी मांगी, लेकिन विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। इसके बजाय उनके पिता को कहा गया कि पुराने रिकॉर्ड नहीं हैं, इसलिए आवेदन वापस ले लें।
RTI आवेदनों में आई गिरावट
मार्च 2025 में जम्मू-कश्मीर सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने दावा किया कि आरटीआई पोर्टल पूरी तरह कार्यरत है। विभाग के अनुसार, 15,800 से अधिक आवेदन दायर हुए, जिनमें से 11,631 का निपटारा हो चुका है। हालांकि, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) की 2024 की रिपोर्ट कुछ और तस्वीर दिखाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2022 के बाद से आरटीआई आवेदनों में 31% की गिरावट आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, इसके कारणों में निगरानी की कमी, जवाबों में लंबी देरी, ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित डिजिटल पहुंच और हतोत्साहन की संस्कृति प्रमुख हैं।
आवेदन वापस लें स्कूटर मिलेगा
दरअसल कश्मीर विश्वविद्यालय की छात्रा सबिका रसूल ने पुलवामा में अपने गांव की विकास बैठकों के बारे में जानकारी मांगी थी। सबिका ने 1 अगस्त को ग्रामीण विकास विभाग में आरटीआई दाखिल की थी। उन्होंने पूछा था कि ग्राम सभा की बैठकें कितनी बार हुईं और उनके बाद क्या विकास कार्य किए गए। जब वह खुद दफ्तर पहुंचीं, तो उन्हें एक डेस्क से दूसरे डेस्क तक भटकाया गया और बताया गया कि नामित अधिकारी का तबादला हो गया है। कुछ दिनों बाद उनके पिता को फिर फोन आया कि मामला आगे न बढ़ाएं। उन्हें कहा गया कि लड़की द्वारा ऐसे आवेदन दाखिल करना अच्छा नहीं लगता। बाद में उन्हें एक स्कूटर देने का प्रस्ताव भी मिला, यदि वह आवेदन वापस ले लें।
आरटीआई दाखिल करने के बाद होने लगी बैठकें
अंततः 15 अक्टूबर को उन्हें उर्दू में 32 पन्नों का जवाब मिला जिसमें 11 बैठकों और हर घर जल जैसी योजनाओं का उल्लेख था। हालांकि सबिका को आंकड़ों की सटीकता पर भरोसा नहीं, पर एक सकारात्मक बदलाव हुआ। अब ग्राम सभा बैठकों की घोषणा मस्जिदों में की जाती है, जिससे ग्रामीणों को उनके बारे में पता चलने लगा है। इस मामले पर पुलवामा के तत्कालीन सहायक आयुक्त (विकास) डॉ. पीरज़ादा फ़रहत ने स्कूटर ऑफर के दावे को सफेद झूठ बताया। उन्होंने कहा कि विभाग का सारा डेटा सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है।
सीखने के उद्देश्य से दायर की थी आरटीआई
सबिका जैसी कई छात्राएं और छात्र किसी टकराव के इरादे से नहीं, बल्कि सीखने के उद्देश्य से आरटीआई दायर कर रहे थे। परंतु, लगभग हर विभाग में उन्हें देरी, टालमटोल या अनौपचारिक दबाव का सामना करना पड़ा। गांदरबल के इदरीस फ़ारूक ने एक स्टेडियम के नवीनीकरण को लेकर खर्च, ठेकेदारों के नाम और रात्रि मैचों की आय का ब्यौरा मांगा। उन्हें जवाब में सिर्फ 31,500 रुपये का खर्च बताया गया, बिना किसी विवरण के। जल्द ही उनके रिश्तेदारों को अधिकारियों ने संपर्क कर स्पष्टीकरण मांगा। उन्होंने बताया कि मुझे समझाना पड़ा कि यह कोई शिकायत नहीं, सिर्फ एक आरटीआई थी।
जुनैद को भी नहीं मिला जवाब
वहीं उरी के जुनैद बुडू को पुस्तकालय विभाग से कोई जवाब नहीं मिला, लेकिन उनके सवाल के बाद कुछ ही हफ्तों में गांव का पुस्तकालय फिर से खुल गया और कर्मचारी हाज़िरी देने लगे। जुनैद ने बताया कि उन्होंने जवाब तो नहीं दिया, लेकिन असर जरूर हुआ। करगिल के गुलाम अब्बास ने सिंचाई विभाग से अपने गांव की रुकी नहर परियोजना के बारे में जानकारी मांगी, लेकिन विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। इसके बजाय उनके पिता को कहा गया कि पुराने रिकॉर्ड नहीं हैं, इसलिए आवेदन वापस ले लें।
RTI आवेदनों में आई गिरावट
मार्च 2025 में जम्मू-कश्मीर सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने दावा किया कि आरटीआई पोर्टल पूरी तरह कार्यरत है। विभाग के अनुसार, 15,800 से अधिक आवेदन दायर हुए, जिनमें से 11,631 का निपटारा हो चुका है। हालांकि, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) की 2024 की रिपोर्ट कुछ और तस्वीर दिखाती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2022 के बाद से आरटीआई आवेदनों में 31% की गिरावट आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, इसके कारणों में निगरानी की कमी, जवाबों में लंबी देरी, ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित डिजिटल पहुंच और हतोत्साहन की संस्कृति प्रमुख हैं।
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