नई दिल्ली: अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड डील की संभावना धूमिल होती दिख रही है। अमेरिका और चीन वार-पलटवार करने लगे हैं। चीन का कहना है कि अमेरिका ने जिनेवा में हुए व्यापार शुल्क समझौते को तोड़ा है। उसने अमेरिका पर कई तरह के आरोप लगाए हैं। इनमें एआई चिप के निर्यात पर नियंत्रण, चीन को चिप डिजाइन सॉफ्टवेयर की बिक्री रोकना और चीनी छात्रों के वीजा रद्द करना शामिल है। चीन के मुताबिक, अमेरिका के इन कदमों से दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को नुकसान पहुंचा है। अमेरिका और चीन के बीच बनती-बिगड़ती स्थिति पर भारत ने नजर बना रखी है। इससे जुड़ा हर घटनाक्रम उसके लिए महत्वपूर्ण है।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान जारी किया है। इस बयान में उन्होंने कहा कि अमेरिका ने चीन के खिलाफ कई भेदभावपूर्ण कदम उठाए हैं। इन कदमों से जिनेवा में हुई चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार वार्ता में बनी सहमति को नुकसान पहुंचा है।
ट्रंप के आरोपों का खंडन
प्रवक्ता ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आरोपों का भी खंडन किया। ट्रंप ने कहा था कि चीन ने हमारे साथ समझौते का पूरी तरह से उल्लंघन किया है। प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका के प्रतिबंधात्मक उपायों में एआई चिप निर्यात नियंत्रण पर दिशानिर्देश जारी करना, चीन को चिप डिजाइन सॉफ्टवेयर की बिक्री रोकना और चीनी छात्रों के वीजा रद्द करने की घोषणा करना शामिल है।
चीन ने छात्र वीजा के मुद्दे को व्यापार से जोड़ दिया है। यह एक महत्वपूर्ण बात है। प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने कई बार एकतरफा तरीके से आर्थिक और व्यापार संघर्ष को भड़काया है। इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों में अनिश्चितता बढ़ गई है।
अमेरिका ने पहले चीन पर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था। ट्रंप ने कहा था, 'बुरी खबर यह है, लेकिन शायद कुछ लोगों के लिए आश्चर्य की बात नहीं है, चीन ने हमारे साथ अपने समझौते का पूरी तरह से उल्लंघन किया है।'
चीन का कहना है कि अमेरिका के ये कदम गलत हैं। इससे दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को नुकसान पहुंच रहा है। चीन ने अमेरिका से इन कदमों को वापस लेने की मांग की है।
भारत के लिए क्या है मतलब?
चीन का अमेरिका पर टैरिफ समझौते को कमजोर करने का आरोप भारत के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों लेकर आ सकता है। भारत को अपनी आर्थिक नीतियों और विदेश नीति को इस तरह से समायोजित करना होगा ताकि वह इस स्थिति का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके। साथ ही संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम कर सके। भारत के लिए इस घटनाक्रम के कई मायने हो सकते हैं। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव बढ़ने से ग्लोबल कंपनियां अपनी सप्लाई चेन में विविधता लाने पर विचार कर सकती हैं। भारत एक संभावित विकल्प के रूप में उभर सकता है। इससे भारत से निर्यात बढ़ने के आसार हैं।
अगर अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध खराब होते हैं तो कुछ कंपनियां चीन से बाहर निकलकर भारत में निवेश कर सकती हैं, खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में। व्यापार तनाव के बीच भारत अमेरिका और चीन दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करके अपना भू-राजनीतिक महत्व बढ़ा सकता है।
अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। उनके बीच व्यापार युद्ध वैश्विक आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है। इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है। अगर कई देश अमेरिका को चीन के विकल्प के रूप में देखने लगते हैं तो भारत को अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव से वैश्विक बाजारों में अस्थिरता आ सकती है। इसका असर भारत के वित्तीय बाजारों पर भी पड़ सकता है।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान जारी किया है। इस बयान में उन्होंने कहा कि अमेरिका ने चीन के खिलाफ कई भेदभावपूर्ण कदम उठाए हैं। इन कदमों से जिनेवा में हुई चीन-अमेरिका आर्थिक और व्यापार वार्ता में बनी सहमति को नुकसान पहुंचा है।
ट्रंप के आरोपों का खंडन
प्रवक्ता ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आरोपों का भी खंडन किया। ट्रंप ने कहा था कि चीन ने हमारे साथ समझौते का पूरी तरह से उल्लंघन किया है। प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका के प्रतिबंधात्मक उपायों में एआई चिप निर्यात नियंत्रण पर दिशानिर्देश जारी करना, चीन को चिप डिजाइन सॉफ्टवेयर की बिक्री रोकना और चीनी छात्रों के वीजा रद्द करने की घोषणा करना शामिल है।
चीन ने छात्र वीजा के मुद्दे को व्यापार से जोड़ दिया है। यह एक महत्वपूर्ण बात है। प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका ने कई बार एकतरफा तरीके से आर्थिक और व्यापार संघर्ष को भड़काया है। इससे दोनों देशों के बीच आर्थिक और व्यापारिक संबंधों में अनिश्चितता बढ़ गई है।
अमेरिका ने पहले चीन पर समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था। ट्रंप ने कहा था, 'बुरी खबर यह है, लेकिन शायद कुछ लोगों के लिए आश्चर्य की बात नहीं है, चीन ने हमारे साथ अपने समझौते का पूरी तरह से उल्लंघन किया है।'
चीन का कहना है कि अमेरिका के ये कदम गलत हैं। इससे दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों को नुकसान पहुंच रहा है। चीन ने अमेरिका से इन कदमों को वापस लेने की मांग की है।
भारत के लिए क्या है मतलब?
चीन का अमेरिका पर टैरिफ समझौते को कमजोर करने का आरोप भारत के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों लेकर आ सकता है। भारत को अपनी आर्थिक नीतियों और विदेश नीति को इस तरह से समायोजित करना होगा ताकि वह इस स्थिति का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके। साथ ही संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम कर सके। भारत के लिए इस घटनाक्रम के कई मायने हो सकते हैं। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार तनाव बढ़ने से ग्लोबल कंपनियां अपनी सप्लाई चेन में विविधता लाने पर विचार कर सकती हैं। भारत एक संभावित विकल्प के रूप में उभर सकता है। इससे भारत से निर्यात बढ़ने के आसार हैं।
अगर अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक संबंध खराब होते हैं तो कुछ कंपनियां चीन से बाहर निकलकर भारत में निवेश कर सकती हैं, खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में। व्यापार तनाव के बीच भारत अमेरिका और चीन दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करके अपना भू-राजनीतिक महत्व बढ़ा सकता है।
अमेरिका और चीन दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं। उनके बीच व्यापार युद्ध वैश्विक आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है। इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है। अगर कई देश अमेरिका को चीन के विकल्प के रूप में देखने लगते हैं तो भारत को अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते तनाव से वैश्विक बाजारों में अस्थिरता आ सकती है। इसका असर भारत के वित्तीय बाजारों पर भी पड़ सकता है।
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