नई दिल्ली: चीन ने भारत के साथ औद्योगिक सहयोग बढ़ाने की अपील की है। यह तब है जब पश्चिमी देश चीन पर दबाव बना रहे हैं। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स का कहना है कि भारत की आत्मनिर्भरता की कोशिशें चीन के लिए खतरा नहीं, बल्कि आपसी फायदे का मौका हैं। पश्चिमी मीडिया भारत की मैन्युफैक्चरिंग (सामान बनाने) की महत्वाकांक्षाओं को चीन के लिए चुनौती के तौर पर पेश कर रहा है। लेकिन, ग्लोबल टाइम्स का मानना है कि भारत और चीन की ताकतें एक-दूसरे की पूरक हैं, विरोधी नहीं। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब पश्चिमी देश चीन से सप्लाई चेन को हटाकर भारत को नए मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर देख रहे हैं।
ग्लोबल टाइम्स ने हाल ही में सीएनबीसी की एक रिपोर्ट का जिक्र किया। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत ने इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट (पुर्जे) बनाने के लिए 2.7 अरब डॉलर के एक प्रोग्राम के तहत 62.6 करोड़ डॉलर की सात नई परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इन परियोजनाओं का मकसद स्मार्टफोन और मेडिकल डिवाइस के लिए कैमरा मॉड्यूल, मल्टी-लेयर्ड प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी) और हाई-डेंसिटी पीसीबी बनाना है। इससे भारत की आयात पर निर्भरता कम होगी, खासकर चीन से। भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक, ये नई सुविधाएं भारत की घरेलू पीसीबी मांग का 20% और कैमरा मॉड्यूल सब-असेंबली की 15% जरूरतें पूरी कर सकती हैं। इनमें से लगभग 60% उत्पादन निर्यात के लिए होगा।
दोनों की ताकतों का किया जिक्रग्लोबल टाइम्स का तर्क है कि इन विकासों को 'जीरो-सम' (एक का फायदा, दूसरे का नुकसान) के नजरिए से देखना बड़ी तस्वीर को नजरअंदाज करना है। अखबार ने कहा, 'औद्योगिक उन्नति हमेशा अलगाव के बजाय सहयोग और विशेषज्ञता से प्रेरित रही है।' इसने इस बात पर जोर दिया कि भारत का मैन्युफैक्चरिंग को बेहतर बनाना अलगाव पैदा करने के बजाय अंतरराष्ट्रीय सहयोग की मांग को बढ़ाता है।
ग्लोबल टाइम्स ने बताया कि चीन के पास व्यापक सप्लाई चेन इकोसिस्टम (सामान की सप्लाई का पूरा तंत्र) और उन्नत मैन्युफैक्चरिंग तकनीक है। वहीं, भारत के पास एक बड़ा उपभोक्ता बाजार और कुशल श्रमिक आधार है। ये ताकतें स्वाभाविक रूप से पूरकता के लिए जगह बनाती हैं। अखबार ने सुझाव दिया कि चीनी और भारतीय कंपनियों के बीच गहरे जुड़ाव से भारत के मैन्युफैक्चरिंग लक्ष्यों को तेजी से हासिल किया जा सकता है। इनमें कंपोनेंट सप्लाई (पुर्जों की आपूर्ति), टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और प्रोडक्शन कैपेसिटी कोलैबोरेशन (उत्पादन क्षमता में सहयोग) जैसी चीजें शामिल हैं। अखबार के अनुसार, ऐसा सहयोग भारत की आत्मनिर्भरता की खोज को कमजोर करने के बजाय उसके औद्योगिक उन्नयन के लिए अधिक मजबूत समर्थन देंगे।
कहा-कोई भी देश अकेले नहीं हो सकता विकसित
अखबार ने कहा, 'आत्मनिर्भरता का मूल औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है और वैश्विक सहयोग इसे प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है। कोई भी देश अकेले विकसित नहीं हो सकता।'
चीन के भारत में राजदूत शू फेईहोंग ने भी इस साल की शुरुआत में 'द हिंदू' में इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने लिखा था कि बीजिंग और नई दिल्ली को अपने 'सबसे बड़े कॉमन फैक्टर - विकास' पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने अधिक आदान-प्रदान, आपसी समर्थन और मजबूत व्यापार और निवेश प्रवाह का आह्वान किया था।
ग्लोबल टाइम्स ने हाल ही में सीएनबीसी की एक रिपोर्ट का जिक्र किया। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत ने इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट (पुर्जे) बनाने के लिए 2.7 अरब डॉलर के एक प्रोग्राम के तहत 62.6 करोड़ डॉलर की सात नई परियोजनाओं को मंजूरी दी है। इन परियोजनाओं का मकसद स्मार्टफोन और मेडिकल डिवाइस के लिए कैमरा मॉड्यूल, मल्टी-लेयर्ड प्रिंटेड सर्किट बोर्ड (पीसीबी) और हाई-डेंसिटी पीसीबी बनाना है। इससे भारत की आयात पर निर्भरता कम होगी, खासकर चीन से। भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के मुताबिक, ये नई सुविधाएं भारत की घरेलू पीसीबी मांग का 20% और कैमरा मॉड्यूल सब-असेंबली की 15% जरूरतें पूरी कर सकती हैं। इनमें से लगभग 60% उत्पादन निर्यात के लिए होगा।
दोनों की ताकतों का किया जिक्रग्लोबल टाइम्स का तर्क है कि इन विकासों को 'जीरो-सम' (एक का फायदा, दूसरे का नुकसान) के नजरिए से देखना बड़ी तस्वीर को नजरअंदाज करना है। अखबार ने कहा, 'औद्योगिक उन्नति हमेशा अलगाव के बजाय सहयोग और विशेषज्ञता से प्रेरित रही है।' इसने इस बात पर जोर दिया कि भारत का मैन्युफैक्चरिंग को बेहतर बनाना अलगाव पैदा करने के बजाय अंतरराष्ट्रीय सहयोग की मांग को बढ़ाता है।
ग्लोबल टाइम्स ने बताया कि चीन के पास व्यापक सप्लाई चेन इकोसिस्टम (सामान की सप्लाई का पूरा तंत्र) और उन्नत मैन्युफैक्चरिंग तकनीक है। वहीं, भारत के पास एक बड़ा उपभोक्ता बाजार और कुशल श्रमिक आधार है। ये ताकतें स्वाभाविक रूप से पूरकता के लिए जगह बनाती हैं। अखबार ने सुझाव दिया कि चीनी और भारतीय कंपनियों के बीच गहरे जुड़ाव से भारत के मैन्युफैक्चरिंग लक्ष्यों को तेजी से हासिल किया जा सकता है। इनमें कंपोनेंट सप्लाई (पुर्जों की आपूर्ति), टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और प्रोडक्शन कैपेसिटी कोलैबोरेशन (उत्पादन क्षमता में सहयोग) जैसी चीजें शामिल हैं। अखबार के अनुसार, ऐसा सहयोग भारत की आत्मनिर्भरता की खोज को कमजोर करने के बजाय उसके औद्योगिक उन्नयन के लिए अधिक मजबूत समर्थन देंगे।
कहा-कोई भी देश अकेले नहीं हो सकता विकसित
अखबार ने कहा, 'आत्मनिर्भरता का मूल औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है और वैश्विक सहयोग इसे प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है। कोई भी देश अकेले विकसित नहीं हो सकता।'
चीन के भारत में राजदूत शू फेईहोंग ने भी इस साल की शुरुआत में 'द हिंदू' में इसी तरह के विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने लिखा था कि बीजिंग और नई दिल्ली को अपने 'सबसे बड़े कॉमन फैक्टर - विकास' पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने अधिक आदान-प्रदान, आपसी समर्थन और मजबूत व्यापार और निवेश प्रवाह का आह्वान किया था।
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