नई दिल्ली: कोमाराम भीम ... जिनके जीवन पर एसएस राजामौली ने आरआरआर फिल्म बनाई थी, उनके नाम को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडिया कार्यक्रम 'मन की बात' में कोमाराम भीम का जिक्र किया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पीएम मोदी ने कहा कि कोमाराम भीम साहस और बलिदान की मूर्ति थे, जिन्होंने लाखों लोगों, खासतौर पर आदिवासी समुदाय के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी थी। आइए आपको बताते हैं कि आखिर कौन थे कोमाराम भीम...
कोमाराम भीम आदिवासियों की आवाज उठाने वाले वो शख्स थे, जिनके हाथ में बंदूक, माथे पर खूनी टीका और मुंह पर जल-जंगल-जमीन का नारा होता था। कोमाराम भीम को लोग और खासतौर पर आदिवासी आज भी भगवान की तरह पूजते हैं। कोमाराम भीम के संघर्ष की कहानी उस दौर की है, जब देश पर अंग्रेजों का शासन था और आदिवासियों को हैदराबाद के निजाम का अत्याचार झेलना पड़ रहा था। आदिवासियों पर निजाम बेइंतहा जुल्म ढाया करता था। जी तोड़ मेहनत करके फसल उगाने वालों को भारी भरकम टैक्स चुकाना पड़ता था। कुल मिलाकर गरीबों का जीवन दूभर हो गया था।
हैदराबाद की आजादी के लिए किया संघर्षइस बीच 22 अक्टूबर 1901 में तेलंगाना के गोंड आदिवासी परिवार में जन्म लेने वाले कोमाराम भीम ने अन्याय के खिलाफ विद्रोह छेड़ने की कसम खा ली थी। हैदराबाद की आजादी के लिए कोमाराम ने आसफ जाही राजवंश के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। आदिवासी परिवार में जन्मे इस वीर सपूत ने गोरिल्ला युद्ध के जरिए लंबे समय तक संघर्ष किया। धीरे-धीरे कोमाराम भीम आदिवासियों के भगवान बन गए। कोमाराम भीम ने ही जल, जंगल और जमीन का नाम भी दिया और निजाम की सत्ता के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा। एक दिन छल के जरिए उन्हें मार दिया गया।
कोमाराम भीम के बारे में 5 तथ्य 1. कोमाराम भीम का जन्म तेलंगाना के एक गोंड आदिवासी परिवार में 22 अक्टूबर 1901 को हुआ था।
2. आदिवासी परिवार में जन्म कोमाराम ने सामंत और निजामों के उत्याचरों के खिलाफ संघर्ष किया।
3. कोमाराम भीम ने गोरिल्ला युद्ध के जरिए लगातार निजामी शासन के खिलाफ छापामार अभियान चलाया।
4. छल और कपट से निजाम की सेना ने साल 1940 में कोमाराम भीम की हत्या कर दी।
5. बाहुबली निर्देशक एस.एस.राजामौली की फिल्म RRR उनके जीवन पर आधारित है।
कोमाराम भीम आदिवासियों की आवाज उठाने वाले वो शख्स थे, जिनके हाथ में बंदूक, माथे पर खूनी टीका और मुंह पर जल-जंगल-जमीन का नारा होता था। कोमाराम भीम को लोग और खासतौर पर आदिवासी आज भी भगवान की तरह पूजते हैं। कोमाराम भीम के संघर्ष की कहानी उस दौर की है, जब देश पर अंग्रेजों का शासन था और आदिवासियों को हैदराबाद के निजाम का अत्याचार झेलना पड़ रहा था। आदिवासियों पर निजाम बेइंतहा जुल्म ढाया करता था। जी तोड़ मेहनत करके फसल उगाने वालों को भारी भरकम टैक्स चुकाना पड़ता था। कुल मिलाकर गरीबों का जीवन दूभर हो गया था।
हैदराबाद की आजादी के लिए किया संघर्षइस बीच 22 अक्टूबर 1901 में तेलंगाना के गोंड आदिवासी परिवार में जन्म लेने वाले कोमाराम भीम ने अन्याय के खिलाफ विद्रोह छेड़ने की कसम खा ली थी। हैदराबाद की आजादी के लिए कोमाराम ने आसफ जाही राजवंश के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। आदिवासी परिवार में जन्मे इस वीर सपूत ने गोरिल्ला युद्ध के जरिए लंबे समय तक संघर्ष किया। धीरे-धीरे कोमाराम भीम आदिवासियों के भगवान बन गए। कोमाराम भीम ने ही जल, जंगल और जमीन का नाम भी दिया और निजाम की सत्ता के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा। एक दिन छल के जरिए उन्हें मार दिया गया।
कोमाराम भीम के बारे में 5 तथ्य 1. कोमाराम भीम का जन्म तेलंगाना के एक गोंड आदिवासी परिवार में 22 अक्टूबर 1901 को हुआ था।
2. आदिवासी परिवार में जन्म कोमाराम ने सामंत और निजामों के उत्याचरों के खिलाफ संघर्ष किया।
3. कोमाराम भीम ने गोरिल्ला युद्ध के जरिए लगातार निजामी शासन के खिलाफ छापामार अभियान चलाया।
4. छल और कपट से निजाम की सेना ने साल 1940 में कोमाराम भीम की हत्या कर दी।
5. बाहुबली निर्देशक एस.एस.राजामौली की फिल्म RRR उनके जीवन पर आधारित है।
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