नई दिल्ली: अमेरिका का ट्रंप प्रशासन व्यापार समझौतों की क्वालिटी को डेडलाइन से ज्यादा अहमियत दे रहा है। 1 अगस्त की समयसीमा से पहले व्यापार सौदों को अंतिम रूप देने या भारी टैरिफ का सामना करने के लिए देशों के लिए यह स्थिति महत्वपूर्ण है। भारत, यूरोपीय संघ (ईयू) और जापान के साथ अमेरिका की व्यापार वार्ता उम्मीद से कहीं ज्यादा कठिन साबित हुई है। भारतीय व्यापार वार्ताकार वाशिंगटन में लगभग एक सप्ताह की बातचीत के बाद वापस लौट आए हैं। लेकिन, सरकारी सूत्रों के अनुसार, 1 अगस्त की डेडलाइन से पहले अंतरिम व्यापार सौदे पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद कम ही है। यानी अब 1 अगस्त तक भारत और अमेरिका के बीच डील होना पाना मुश्किल है। वहीं, अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट के बयान से पता चलता है कि अगर 1 अगस्त को टैरिफ वापस लागू होते हैं तो ऊंचे शुल्क स्तर उन देशों पर बेहतर समझौते करने के लिए ज्यादा दबाव डालेगा। इसका मतलब है कि भारत को या तो अमेरिका की शर्तों पर एक समझौता करना होगा या उसे ऊंचे अमेरिकी टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। इससे भारतीय निर्यात प्रभावित हो सकता है। यह स्थिति भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है। उसे अपने व्यापार हितों की रक्षा करते हुए अमेरिका के साथ संतुलन साधना होगा।
भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए मार्च 2025 में बातचीत शुरू हुई थी। अब तक पांच दौर पूरे हो चुके हैं। कई मुद्दों पर बातचीत में सहमति नहीं बन पा रही है। स्कॉट बेसेंट ने साफ कर दिया है कि ट्रंप प्रशासन ट्रेड एग्रीमेंट की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करेगा। उनके लिए टाइमिंग से ज्यादा जरूरी है कि डील अच्छी हो। इसका मतलब है कि अमेरिका किसी भी देश के साथ जल्दबाजी में कोई समझौता नहीं करेगा, भले ही 1 अगस्त की डेडलाइन करीब आ रही हो।
टैरिफ को हथियार के तौर पर किया जाएगा इस्तेमाल
अगर कोई देश अमेरिका के साथ अच्छे से बातचीत कर रहा है तो क्या डेडलाइन बढ़ाई जा सकती है? इस सवाल पर बेसेंट ने कहा कि इसका फैसला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप करेंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर 1 अगस्त से टैरिफ फिर से लागू हो जाते हैं तो इससे उन देशों पर बेहतर समझौते करने का दबाव बढ़ेगा। इसका मतलब है कि अमेरिका टैरिफ को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है ताकि दूसरे देशों को उसकी शर्तों पर राजी किया जा सके।
ट्रंप ने ट्रेड वॉर शुरू करके दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं में उथल-पुथल मचा दी है। उन्होंने कई देशों पर टैरिफ लगाए हैं। इससे व्यापार में काफी दिक्कतें आई हैं। हालांकि, ट्रंप प्रशासन का प्लान था कि वह कई देशों के साथ डील करेगा। लेकिन, वह इसमें पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। भारत, यूरोपियन यूनियन और जापान जैसे देशों के साथ बातचीत उम्मीद से ज्यादा मुश्किल साबित हुई है।
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट के अनुसार, ट्रंप फिलीपीन के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर से मिलेंगे और ट्रेड पर बात करेंगे। इससे पता चलता है कि अमेरिका अभी भी दूसरे देशों के साथ ट्रेड डील करने की कोशिश कर रहा है। लेविट ने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन जल्द ही कुछ और ट्रेड डील की घोषणा कर सकता है या टैरिफ रेट के बारे में देशों को लेटर भेज सकता है।
ईयू, जापान, चीन भारत... कहीं पिक्चर साफ नहीं
ईयू के डिप्लोमेट अब अमेरिका के खिलाफ कुछ कदम उठाने की सोच रहे हैं। वे 'एंटी-कोएर्शन' उपाय पर विचार कर रहे हैं। इससे वे अमेरिकी सर्विसेज को टारगेट कर सकते हैं या पब्लिक टेंडर तक पहुंच को रोक सकते हैं। जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मेर्ज ने कहा है कि अमेरिका सिमेट्रिकल टैरिफ एग्रीमेंट के लिए तैयार नहीं है। इसका मतलब है कि ईयू और अमेरिका के बीच ट्रेड को लेकर तनाव बढ़ सकता है।
चीन के बारे में बात करते हुए बेसेंट ने कहा है कि जल्द ही बातचीत होगी। उन्होंने कहा कि ट्रेड अच्छी स्थिति में है। अब वे दूसरे मुद्दों पर बात कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चीन ईरान और रूस से तेल खरीद रहा है, जिन पर प्रतिबंध लगे हुए हैं। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि चीन को रीबैलेंसिंग करने की जरूरत है। अमेरिकी अधिकारियों ने लंबे समय से चीन की स्टील इंडस्ट्री में ज्यादा प्रोडक्शन की शिकायत की है।
बेसेंट ने यूरोप को रूस पर सेकेंडरी टैरिफ लगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका को जापान की घरेलू राजनीति से ज्यादा अमेरिकियों के लिए बेस्ट डील पाने की चिंता है। जापान के चीफ टैरिफ नेगोशिएटर रयोसेई अकाजावा सोमवार को वाशिंगटन में व्यापार वार्ता के लिए रवाना हुए। जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के सत्तारूढ़ गठबंधन को हाल ही में चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। इसकी एक वजह अमेरिकी टैरिफ को लेकर लोगों की नाराजगी भी थी।
भारतीय ट्रेड नेगोशिएटर वाशिंगटन में लगभग एक सप्ताह की बातचीत के बाद नई दिल्ली लौट आए हैं। हालांकि, सरकारी सूत्रों का कहना है कि 1 अगस्त की डेडलाइन से पहले अंतरिम ट्रेड डील साइन होने की उम्मीद कम है।
भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए मार्च 2025 में बातचीत शुरू हुई थी। अब तक पांच दौर पूरे हो चुके हैं। कई मुद्दों पर बातचीत में सहमति नहीं बन पा रही है। स्कॉट बेसेंट ने साफ कर दिया है कि ट्रंप प्रशासन ट्रेड एग्रीमेंट की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं करेगा। उनके लिए टाइमिंग से ज्यादा जरूरी है कि डील अच्छी हो। इसका मतलब है कि अमेरिका किसी भी देश के साथ जल्दबाजी में कोई समझौता नहीं करेगा, भले ही 1 अगस्त की डेडलाइन करीब आ रही हो।
टैरिफ को हथियार के तौर पर किया जाएगा इस्तेमाल
अगर कोई देश अमेरिका के साथ अच्छे से बातचीत कर रहा है तो क्या डेडलाइन बढ़ाई जा सकती है? इस सवाल पर बेसेंट ने कहा कि इसका फैसला राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप करेंगे। उन्होंने यह भी कहा है कि अगर 1 अगस्त से टैरिफ फिर से लागू हो जाते हैं तो इससे उन देशों पर बेहतर समझौते करने का दबाव बढ़ेगा। इसका मतलब है कि अमेरिका टैरिफ को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है ताकि दूसरे देशों को उसकी शर्तों पर राजी किया जा सके।
ट्रंप ने ट्रेड वॉर शुरू करके दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं में उथल-पुथल मचा दी है। उन्होंने कई देशों पर टैरिफ लगाए हैं। इससे व्यापार में काफी दिक्कतें आई हैं। हालांकि, ट्रंप प्रशासन का प्लान था कि वह कई देशों के साथ डील करेगा। लेकिन, वह इसमें पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है। भारत, यूरोपियन यूनियन और जापान जैसे देशों के साथ बातचीत उम्मीद से ज्यादा मुश्किल साबित हुई है।
व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लेविट के अनुसार, ट्रंप फिलीपीन के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर से मिलेंगे और ट्रेड पर बात करेंगे। इससे पता चलता है कि अमेरिका अभी भी दूसरे देशों के साथ ट्रेड डील करने की कोशिश कर रहा है। लेविट ने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन जल्द ही कुछ और ट्रेड डील की घोषणा कर सकता है या टैरिफ रेट के बारे में देशों को लेटर भेज सकता है।
ईयू, जापान, चीन भारत... कहीं पिक्चर साफ नहीं
ईयू के डिप्लोमेट अब अमेरिका के खिलाफ कुछ कदम उठाने की सोच रहे हैं। वे 'एंटी-कोएर्शन' उपाय पर विचार कर रहे हैं। इससे वे अमेरिकी सर्विसेज को टारगेट कर सकते हैं या पब्लिक टेंडर तक पहुंच को रोक सकते हैं। जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मेर्ज ने कहा है कि अमेरिका सिमेट्रिकल टैरिफ एग्रीमेंट के लिए तैयार नहीं है। इसका मतलब है कि ईयू और अमेरिका के बीच ट्रेड को लेकर तनाव बढ़ सकता है।
चीन के बारे में बात करते हुए बेसेंट ने कहा है कि जल्द ही बातचीत होगी। उन्होंने कहा कि ट्रेड अच्छी स्थिति में है। अब वे दूसरे मुद्दों पर बात कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि चीन ईरान और रूस से तेल खरीद रहा है, जिन पर प्रतिबंध लगे हुए हैं। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि चीन को रीबैलेंसिंग करने की जरूरत है। अमेरिकी अधिकारियों ने लंबे समय से चीन की स्टील इंडस्ट्री में ज्यादा प्रोडक्शन की शिकायत की है।
बेसेंट ने यूरोप को रूस पर सेकेंडरी टैरिफ लगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका को जापान की घरेलू राजनीति से ज्यादा अमेरिकियों के लिए बेस्ट डील पाने की चिंता है। जापान के चीफ टैरिफ नेगोशिएटर रयोसेई अकाजावा सोमवार को वाशिंगटन में व्यापार वार्ता के लिए रवाना हुए। जापान के प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा के सत्तारूढ़ गठबंधन को हाल ही में चुनावों में हार का सामना करना पड़ा। इसकी एक वजह अमेरिकी टैरिफ को लेकर लोगों की नाराजगी भी थी।
भारतीय ट्रेड नेगोशिएटर वाशिंगटन में लगभग एक सप्ताह की बातचीत के बाद नई दिल्ली लौट आए हैं। हालांकि, सरकारी सूत्रों का कहना है कि 1 अगस्त की डेडलाइन से पहले अंतरिम ट्रेड डील साइन होने की उम्मीद कम है।
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