लेखक: शान्तेष कुमार सिंह
क्वॉड की नींव 2007 में पड़ी थी, लेकिन 2017 के बाद इसमें नई ऊर्जा आई। चीन की विस्तारवादी नीतियों और दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामकता ने क्वॉड के चारों सदस्य देशों को एकजुट होने के लिए प्रेरित किया।
चीनी प्रभुत्व का विरोध: पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक राजनीति में जो व्यापक परिवर्तन देखने को मिले हैं, उनमें इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्व अभूतपूर्व रूप से बढ़ गया है। यह क्षेत्र, जो एशिया और प्रशांत महासागर के बीच फैला हुआ है, न केवल व्यापार और समुद्री मार्गों के लिहाज से, बल्कि सामरिक और राजनीतिक दृष्टि से भी केंद्र में आ गया है। विदेश मंत्रियों की हालिया बैठक में भारत और जापान दोनों ने कहा कि वे चाहते हैं क्वॉड ‘स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत’ पर ध्यान केंद्रित करे’। यह बयान एशिया में चीनी प्रभुत्व का विरोध करने के लिए एक अप्रत्यक्ष संकेत है।
ऐतिहासिक फैसले: इस बार की क्वॉड बैठक में जो फैसले लिए गए और जो संयुक्त घोषणाएं की गईं, वे कई मायनों में ऐतिहासिक हैं। सबसे पहले, इन निर्णयों ने चीन की बढ़ती आक्रामकता और विस्तारवादी नीतियों के परिप्रेक्ष्य में एक स्पष्ट संदेश दिया है। क्वॉड समूह ने महत्वपूर्ण खनिजों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने का संकल्प लिया है, क्योंकि नई प्रौद्योगिकियों के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों पर चीन के प्रभुत्व को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
सुरक्षा तक सीमित नहीं: क्वॉड की प्रासंगिकता केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं रही। इस बार की बैठक में जलवायु परिवर्तन, तकनीकी सहयोग और आपदा प्रबंधन जैसे अहम मुद्दों पर भी गहन चर्चा हुई। जलवायु परिवर्तन आज पूरी दुनिया के लिए गंभीर चुनौती है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र भी इसके प्रभावों से अछूता नहीं है। समुद्री जलस्तर में वृद्धि, चक्रवात और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति ने क्षेत्रीय देशों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
तकनीकी सहयोग: तकनीकी क्षेत्र में भी क्वॉड देशों ने सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में साझेदारी को मजबूत करने पर सहमति बनी। इसका उद्देश्य न केवल तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना है, बल्कि क्षेत्र को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाना भी है। चीन की तकनीकी बढ़त और डिजिटल प्रभुत्व की कोशिशों के बीच यह सहयोग और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
पहलगाम हमले की निंदा: आतंकवाद और परमाणुकरण के मुद्दे को भी सभी चार देशों ने गंभीरता से उठाया और एक सुर में इसका विरोध किया। इसी क्रम में क्वॉड ने मई में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की भी निंदा की और इसके ‘अपराधियों, आयोजकों और वित्तपोषकों को बिना किसी देरी के न्याय के कटघरे में लाने’ का आह्वान किया। जापान के लिए एक प्रमुख चिंता में, क्वॉड ने मिसाइलों के ‘अस्थिर करने वाले प्रक्षेपण’ के लिए उत्तर कोरिया की निंदा की और उसके ‘पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण’ पर जोर दिया।
भारत के हित: भारत के दृष्टिकोण से, ऑपेरशन सिंदूर के बाद हुई यह बैठक, कई मायनों में दूरगामी लाभ पहुंचाने वाली रही है। भारत के लिए क्वॉड की सदस्यता केवल सामरिक साझेदारी नहीं है, बल्कि यह उसकी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और इंडो-पैसिफिक विजन का भी अभिन्न अंग है। क्वॉड के माध्यम से भारत अपनी ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजनाओं को ग्लोबल सप्लाई चेन से जोड़ सकता है। साथ ही, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी उसकी पहलों को भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग का लाभ मिल सकता है।
चीन की असहजता: क्वॉड की सक्रियता से चीन असहज है। वह इसे ‘एशियाई नैटो’ के रूप में प्रचारित करता है और इसे अपने खिलाफ घेरेबंदी के प्रयास के तौर पर देखता है। हालांकि क्वॉड के सदस्य देश बार-बार स्पष्ट कर चुके हैं कि यह किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और नियम-आधारित व्यवस्था के लिए है। फिर भी, चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत को संतुलित करने के लिए क्वॉड की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
बहुआयामी सहयोग: इस बार की बैठक में कई नई पहलें सामने आईं। साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के निर्णय लिए गए। क्वॉड समूह ने भविष्य की साझेदारी के क्वॉड बंदरगाहों के शुभारंभ सहित समुद्री सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की। भारत अक्टूबर 2025 में मुंबई में इंडो-पैसिफिक साझेदारों के साथ परिवहन और लॉजिस्टिक्स सम्मेलन की मेजबानी करेगा और यहीं भविष्य की ‘क्वॉड पोर्ट्स साझेदारी’ को औपचारिक रूप से लॉन्च किया जाएगा। इन पहलों से स्पष्ट है कि क्वॉड अब केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि बहुआयामी सहयोग का मंच बन चुका है।
आपसी मतभेद: क्वॉड की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देश आपसी मतभेदों को किस तरह दूर करते हैं और साझा लक्ष्यों को कितनी गंभीरता से लागू करते हैं। भारत को चाहिए कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए क्वॉड के मंच का अधिकतम उपयोग करे।
(लेखक JNU के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में प्रफेसर हैं)
क्वॉड की नींव 2007 में पड़ी थी, लेकिन 2017 के बाद इसमें नई ऊर्जा आई। चीन की विस्तारवादी नीतियों और दक्षिण चीन सागर में उसकी आक्रामकता ने क्वॉड के चारों सदस्य देशों को एकजुट होने के लिए प्रेरित किया।
चीनी प्रभुत्व का विरोध: पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक राजनीति में जो व्यापक परिवर्तन देखने को मिले हैं, उनमें इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्व अभूतपूर्व रूप से बढ़ गया है। यह क्षेत्र, जो एशिया और प्रशांत महासागर के बीच फैला हुआ है, न केवल व्यापार और समुद्री मार्गों के लिहाज से, बल्कि सामरिक और राजनीतिक दृष्टि से भी केंद्र में आ गया है। विदेश मंत्रियों की हालिया बैठक में भारत और जापान दोनों ने कहा कि वे चाहते हैं क्वॉड ‘स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत’ पर ध्यान केंद्रित करे’। यह बयान एशिया में चीनी प्रभुत्व का विरोध करने के लिए एक अप्रत्यक्ष संकेत है।
ऐतिहासिक फैसले: इस बार की क्वॉड बैठक में जो फैसले लिए गए और जो संयुक्त घोषणाएं की गईं, वे कई मायनों में ऐतिहासिक हैं। सबसे पहले, इन निर्णयों ने चीन की बढ़ती आक्रामकता और विस्तारवादी नीतियों के परिप्रेक्ष्य में एक स्पष्ट संदेश दिया है। क्वॉड समूह ने महत्वपूर्ण खनिजों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करने का संकल्प लिया है, क्योंकि नई प्रौद्योगिकियों के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों पर चीन के प्रभुत्व को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं।
सुरक्षा तक सीमित नहीं: क्वॉड की प्रासंगिकता केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं रही। इस बार की बैठक में जलवायु परिवर्तन, तकनीकी सहयोग और आपदा प्रबंधन जैसे अहम मुद्दों पर भी गहन चर्चा हुई। जलवायु परिवर्तन आज पूरी दुनिया के लिए गंभीर चुनौती है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र भी इसके प्रभावों से अछूता नहीं है। समुद्री जलस्तर में वृद्धि, चक्रवात और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति ने क्षेत्रीय देशों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
तकनीकी सहयोग: तकनीकी क्षेत्र में भी क्वॉड देशों ने सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग और डिजिटल कनेक्टिविटी जैसे क्षेत्रों में साझेदारी को मजबूत करने पर सहमति बनी। इसका उद्देश्य न केवल तकनीकी नवाचार को बढ़ावा देना है, बल्कि क्षेत्र को सुरक्षित और आत्मनिर्भर बनाना भी है। चीन की तकनीकी बढ़त और डिजिटल प्रभुत्व की कोशिशों के बीच यह सहयोग और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
पहलगाम हमले की निंदा: आतंकवाद और परमाणुकरण के मुद्दे को भी सभी चार देशों ने गंभीरता से उठाया और एक सुर में इसका विरोध किया। इसी क्रम में क्वॉड ने मई में कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की भी निंदा की और इसके ‘अपराधियों, आयोजकों और वित्तपोषकों को बिना किसी देरी के न्याय के कटघरे में लाने’ का आह्वान किया। जापान के लिए एक प्रमुख चिंता में, क्वॉड ने मिसाइलों के ‘अस्थिर करने वाले प्रक्षेपण’ के लिए उत्तर कोरिया की निंदा की और उसके ‘पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण’ पर जोर दिया।
भारत के हित: भारत के दृष्टिकोण से, ऑपेरशन सिंदूर के बाद हुई यह बैठक, कई मायनों में दूरगामी लाभ पहुंचाने वाली रही है। भारत के लिए क्वॉड की सदस्यता केवल सामरिक साझेदारी नहीं है, बल्कि यह उसकी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और इंडो-पैसिफिक विजन का भी अभिन्न अंग है। क्वॉड के माध्यम से भारत अपनी ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजनाओं को ग्लोबल सप्लाई चेन से जोड़ सकता है। साथ ही, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी उसकी पहलों को भी अंतरराष्ट्रीय सहयोग का लाभ मिल सकता है।
चीन की असहजता: क्वॉड की सक्रियता से चीन असहज है। वह इसे ‘एशियाई नैटो’ के रूप में प्रचारित करता है और इसे अपने खिलाफ घेरेबंदी के प्रयास के तौर पर देखता है। हालांकि क्वॉड के सदस्य देश बार-बार स्पष्ट कर चुके हैं कि यह किसी के खिलाफ नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और नियम-आधारित व्यवस्था के लिए है। फिर भी, चीन की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत को संतुलित करने के लिए क्वॉड की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
बहुआयामी सहयोग: इस बार की बैठक में कई नई पहलें सामने आईं। साइबर सुरक्षा, क्वांटम कंप्यूटिंग, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस, जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के निर्णय लिए गए। क्वॉड समूह ने भविष्य की साझेदारी के क्वॉड बंदरगाहों के शुभारंभ सहित समुद्री सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की। भारत अक्टूबर 2025 में मुंबई में इंडो-पैसिफिक साझेदारों के साथ परिवहन और लॉजिस्टिक्स सम्मेलन की मेजबानी करेगा और यहीं भविष्य की ‘क्वॉड पोर्ट्स साझेदारी’ को औपचारिक रूप से लॉन्च किया जाएगा। इन पहलों से स्पष्ट है कि क्वॉड अब केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि बहुआयामी सहयोग का मंच बन चुका है।
आपसी मतभेद: क्वॉड की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देश आपसी मतभेदों को किस तरह दूर करते हैं और साझा लक्ष्यों को कितनी गंभीरता से लागू करते हैं। भारत को चाहिए कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए क्वॉड के मंच का अधिकतम उपयोग करे।
(लेखक JNU के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में प्रफेसर हैं)
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