कानपुर: दिल्ली-एनसीआर में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण से परेशान लोगों को अब जल्द राहत मिलने की उम्मीद है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) कानपुर की वैज्ञानिक टीम ने कृत्रिम बारिश की सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। अब सिर्फ अनुकूल मौसम और पर्याप्त बादलों का इंतजार है। जैसे ही वातावरण में नमी और बादल की स्थिति अनुकूल होगी, टीम क्लाउड सीडिंग तकनीक के माध्यम से बारिश कराने का प्रयोग शुरू करेगी। इसके लिए गुरुवार को आईआईटी कानपुर से पहला एयरक्राफ्ट उड़ाया गया। कृत्रिम बारिश से राजधानी दिल्ली और एनसीआर के लोगों को प्रदूषण से राहत मिलने और साफ हवा में सांस लेने की उम्मीद है।
आईआईटी से उड़ा एयरक्राफ्टआईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि बुधवार को संस्थान ने कृत्रिम वर्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कानपुर से पहला एयरक्राफ्ट उड़ाया। यह उड़ान तकनीकी परीक्षण के उद्देश्य से की गई थी। उन्होंने कहा कि आज थोड़े बादल मौजूद थे, लेकिन हवा में नमी बहुत कम थी। ऐसे में बारिश की संभावना बेहद कम थी। इसके बावजूद परीक्षण के तौर पर कुछ मात्रा में रासायनिक पदार्थ (सीडिंग एजेंट) बादलों में छोड़ा गया।
मौसम अनुकूल होते ही प्रयोगआईआईटी कानपुर की टीम के मुताबिक, दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के लिए बादलों की पर्याप्त मौजूदगी और हवा में नमी का स्तर होना बेहद जरूरी है। जैसे ही मौसम अनुकूल होगा, कृत्रिम वर्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इस प्रक्रिया में विमान से सोडियम क्लोराइड या सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों को बादलों में छोड़ा जाता है। इससे जलकणों का संघनन होता है और बारिश होती है।
छह साल की मेहनत से बनी तकनीकआईआईटी कानपुर की इस तकनीक को विकसित करने में छह साल का समय लगा है। 2023 में संस्थान ने कृत्रिम वर्षा का सफल परीक्षण किया था, जिसके बाद इसे दिल्ली जैसे बड़े महानगरों में लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया गया। प्रो. अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली में क्लाउड सीडिंग से प्रदूषण कम करने की दिशा में बड़ा प्रयोग किया जाएगा। केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों की अनुमति मिल चुकी है। अब केवल मौसम के सहयोग का इंतजार है।
सेसना विमान से क्लाउड सीडिंगआईआईटी कानपुर की टीम ने क्लाउड सीडिंग के लिए सेसना विमान को तैयार किया है। यह विमान बादलों के भीतर जाकर रासायनिक मिश्रण छोड़ेगा। इससे कृत्रिम वर्षा होने की संभावना बढ़ जाएगी। विमानन मंत्रालय की अनुमति भी मिल चुकी है, जिससे प्रक्रिया को कानूनी और तकनीकी तौर पर मंजूरी मिल गई है।
दिल्ली में हर साल सर्दियों के मौसम में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, कृत्रिम वर्षा से हवा में मौजूद धूल और प्रदूषक कण नीचे बैठ जाएंगे, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार होगा।
आईआईटी से उड़ा एयरक्राफ्टआईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने बताया कि बुधवार को संस्थान ने कृत्रिम वर्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए कानपुर से पहला एयरक्राफ्ट उड़ाया। यह उड़ान तकनीकी परीक्षण के उद्देश्य से की गई थी। उन्होंने कहा कि आज थोड़े बादल मौजूद थे, लेकिन हवा में नमी बहुत कम थी। ऐसे में बारिश की संभावना बेहद कम थी। इसके बावजूद परीक्षण के तौर पर कुछ मात्रा में रासायनिक पदार्थ (सीडिंग एजेंट) बादलों में छोड़ा गया।
मौसम अनुकूल होते ही प्रयोगआईआईटी कानपुर की टीम के मुताबिक, दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के लिए बादलों की पर्याप्त मौजूदगी और हवा में नमी का स्तर होना बेहद जरूरी है। जैसे ही मौसम अनुकूल होगा, कृत्रिम वर्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। इस प्रक्रिया में विमान से सोडियम क्लोराइड या सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायनों को बादलों में छोड़ा जाता है। इससे जलकणों का संघनन होता है और बारिश होती है।
छह साल की मेहनत से बनी तकनीकआईआईटी कानपुर की इस तकनीक को विकसित करने में छह साल का समय लगा है। 2023 में संस्थान ने कृत्रिम वर्षा का सफल परीक्षण किया था, जिसके बाद इसे दिल्ली जैसे बड़े महानगरों में लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया गया। प्रो. अग्रवाल ने कहा कि दिल्ली में क्लाउड सीडिंग से प्रदूषण कम करने की दिशा में बड़ा प्रयोग किया जाएगा। केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों की अनुमति मिल चुकी है। अब केवल मौसम के सहयोग का इंतजार है।
सेसना विमान से क्लाउड सीडिंगआईआईटी कानपुर की टीम ने क्लाउड सीडिंग के लिए सेसना विमान को तैयार किया है। यह विमान बादलों के भीतर जाकर रासायनिक मिश्रण छोड़ेगा। इससे कृत्रिम वर्षा होने की संभावना बढ़ जाएगी। विमानन मंत्रालय की अनुमति भी मिल चुकी है, जिससे प्रक्रिया को कानूनी और तकनीकी तौर पर मंजूरी मिल गई है।
दिल्ली में हर साल सर्दियों के मौसम में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, कृत्रिम वर्षा से हवा में मौजूद धूल और प्रदूषक कण नीचे बैठ जाएंगे, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार होगा।
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