जहानाबाद: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र की घोसी सीट पर सियासी हलचल चरम पर है। यहां जनता दल (यूनाइटेड) के युवा चेहरे ऋतुराज कुमार एनडीए की उम्मीदों का चेहरा बन चुके हैं। वे पूर्व सांसद अरुण कुमार सिंह के वारिस हैं। जातीय समीकरणों की जटिल जाल में फंसी इस सीट पर जेडीयू की जीत की अधिकतम संभावना देखी जा रही है। महागठबंधन के पारंपरिक वोट बैंक में दरार की संभावना से प्रेरित मोमेंटम पर इस संभावना पर बल दे रहा है।
घोसी सीट पर किसका पलड़ा भारीघोसी में एनडीए की मजबूती पूरे मगध क्षेत्र में नीतीश कुमार की रणनीति की धार को तेज हुआ बताता है। घोसी 2020 में महागठबंधन के कब्जे में गई थी। यहां 2.75 लाख मतदाता विकास, बेरोजगारी और जातीय संतुलन के बीच अपने विवेक को तौल रहे हैं। इसलिए, 2025 में हवा बदली नजर आ रही है। घोसी- जहानाबाद लोकसभा की छह सीटों में इकलौती ऐसी सीट है जहां एनडीए की जीत पहले से तय मानी जा रही है।
एंटी इनकमबैंसी का मिलेगा फायदा?स्थानीय मतदाताओं में निवर्तमान विधायक के प्रति नाराजगी है। 'एनडीए-वेब' घोसी के ग्रामीण इलाकों- मोदनगंज, बंधुगंज, चिरी से आगे मखदुमपुर तक फैल रही है। ऋतुराज की जनसंपर्क यात्राएं एनडीए के कार्यकर्ताओं के बीच उत्साह की लहर पैदा कर रही हैं। चिराग पासवान ऋतुराज के लिए वरदान साबित हुए हैं। चिराग के साथ ऋतुराज के पिता पूर्व सांसद अरुण कुमार सिंह का नजदीकी राजनीतिक रिश्ता रहा है। चिराग ने घोसी में ऋतुराज के लिए वोट मांग कर फिजां बना दी है। दलितों का वोट एक तरह से सुनिश्चित किया है। घोसी का जातीय पैनोरमा चाकू की धार जैसा तीखा है- जहां एक-एक वोट प्रतिशत निर्णायक साबित हो सकता है। बिहार जाति सर्वे (2023) के बाद नीतीश सरकार की ईबीसी-केंद्रित योजनाओं ने समीकरणों को हिला दिया है।
भूमिहार की तलवार, मिसलेनियस का राज
अबकी बार घोसी में कांटे की टक्करसमीकरण बताता है कि घोसी कोई 'यादव-दलित' का गढ़ नहीं, बल्कि 'भूमिहार-ओबीसी' का रणक्षेत्र है। 2020 में रामबली सिंह यादव ने 74,712 वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन जेडीयू के पूर्व उम्मीदवार को 57,379 वोट मिले थे। अंतर महज 17,000 वोटों का था। अब ऋतुराज की युवा ऊर्जा और पिता की विरासत से यह अंतर पलट सकता है। हाल ही में पूर्व जेडीयू विधायक राहुल शर्मा (घोसी से 2010-2015) ने आरजेडी का दामन थामा है, जो महागठबंधन को मजबूत करने का प्रयास है। लेकिन टिकट रामबली सिंह यादव को ही मिला जो सीपीआई(एमएल) से उम्मीदवार हैं।
विरासत, एकजुटता और नीतीश का जादूऋतुराज कुमार सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हैं जिन्होंने नामांकन के साथ ही 'हुंकार' भरी। वे जेडीयू के लिए 'परफेक्ट फिट' साबित हो रहे हैं। उनके पक्ष में जो बातें दिखती हैं और समीकरण नजर आता है उस पर गौर करें-
घोसी सीट पर किसका पलड़ा भारीघोसी में एनडीए की मजबूती पूरे मगध क्षेत्र में नीतीश कुमार की रणनीति की धार को तेज हुआ बताता है। घोसी 2020 में महागठबंधन के कब्जे में गई थी। यहां 2.75 लाख मतदाता विकास, बेरोजगारी और जातीय संतुलन के बीच अपने विवेक को तौल रहे हैं। इसलिए, 2025 में हवा बदली नजर आ रही है। घोसी- जहानाबाद लोकसभा की छह सीटों में इकलौती ऐसी सीट है जहां एनडीए की जीत पहले से तय मानी जा रही है।
एंटी इनकमबैंसी का मिलेगा फायदा?स्थानीय मतदाताओं में निवर्तमान विधायक के प्रति नाराजगी है। 'एनडीए-वेब' घोसी के ग्रामीण इलाकों- मोदनगंज, बंधुगंज, चिरी से आगे मखदुमपुर तक फैल रही है। ऋतुराज की जनसंपर्क यात्राएं एनडीए के कार्यकर्ताओं के बीच उत्साह की लहर पैदा कर रही हैं। चिराग पासवान ऋतुराज के लिए वरदान साबित हुए हैं। चिराग के साथ ऋतुराज के पिता पूर्व सांसद अरुण कुमार सिंह का नजदीकी राजनीतिक रिश्ता रहा है। चिराग ने घोसी में ऋतुराज के लिए वोट मांग कर फिजां बना दी है। दलितों का वोट एक तरह से सुनिश्चित किया है। घोसी का जातीय पैनोरमा चाकू की धार जैसा तीखा है- जहां एक-एक वोट प्रतिशत निर्णायक साबित हो सकता है। बिहार जाति सर्वे (2023) के बाद नीतीश सरकार की ईबीसी-केंद्रित योजनाओं ने समीकरणों को हिला दिया है।
भूमिहार की तलवार, मिसलेनियस का राज
अबकी बार घोसी में कांटे की टक्करसमीकरण बताता है कि घोसी कोई 'यादव-दलित' का गढ़ नहीं, बल्कि 'भूमिहार-ओबीसी' का रणक्षेत्र है। 2020 में रामबली सिंह यादव ने 74,712 वोटों से जीत हासिल की थी, लेकिन जेडीयू के पूर्व उम्मीदवार को 57,379 वोट मिले थे। अंतर महज 17,000 वोटों का था। अब ऋतुराज की युवा ऊर्जा और पिता की विरासत से यह अंतर पलट सकता है। हाल ही में पूर्व जेडीयू विधायक राहुल शर्मा (घोसी से 2010-2015) ने आरजेडी का दामन थामा है, जो महागठबंधन को मजबूत करने का प्रयास है। लेकिन टिकट रामबली सिंह यादव को ही मिला जो सीपीआई(एमएल) से उम्मीदवार हैं।
विरासत, एकजुटता और नीतीश का जादूऋतुराज कुमार सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हैं जिन्होंने नामांकन के साथ ही 'हुंकार' भरी। वे जेडीयू के लिए 'परफेक्ट फिट' साबित हो रहे हैं। उनके पक्ष में जो बातें दिखती हैं और समीकरण नजर आता है उस पर गौर करें-
- विरासत का दम: पिता अरुण कुमार सिंह की राजनीतिक जड़ें घोसी-जहानाबाद में गहरी हैं। भूमिहार समाज में 90% एकजुटता, जो 55,000 वोटों को 'लॉक' कर देगी। ऐसा माना जा रहा।
- गठबंधन की ताकत: एनडीए की एकजुटता (जेडीयू-बीजेपी-एलजेपी) vs महागठबंधन का स्थिर मोर्चा। सीपीआई(एमएल) लिबरेशन ने रामबली को घोषित किया और नामांकन प्रक्रिया के अंत के साथ फाइनल हुआ।
- नीतीश का विकास कार्ड: ओबीसी-ईबीसी में 50,000 वोटों पर नीतीश की योजनाओं (लालू-तेजस्वी के 'परिवारवाद' के खिलाफ) का असर। पासवान वोट एलजेपी से, सवर्ण बीजेपी से कुल मिलाकर 60% संभावना का आधार।
- घोसी का बूस्टर: जहानाबाद की छह सीटों में घोसी ही एनडीए का 'सुरक्षित किला' माना जा रहा है। 20 किमी के दायरे में घोसी फैला हुआ है। जहां ग्रामीण मतदाता की संख्या ज्यादा है।
- मिसलेनियस वोट और 28% ईबीसी-महादलित पर फोकस: नीतीश की 'सात निश्चय' स्कीम्स (शिक्षा, स्वास्थ्य) से 15% शिफ्ट संभव। JSP (प्रशांत किशोर) का 5-7% वोट महागठबंधन काटेगा।
- विकास vs वादे: बेरोजगारी, सड़कें, बिजली पर हमला- 'तेजस्वी के सपने vs नीतीश के काम'। 'युवा-लहर' को घोसी में दोहराना, जहां 35% मतदाता 18-35 आयु के हैं।
- ग्राउंड मोबिलाइजेशन: ऋतुराज की 'मातृ-शक्ति' अपील (माताओं-बहनों से वोट) और रैलियां का भी असर दिख रहा है।
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