दतिया: मध्य प्रदेश के दतिया जिले से एक हैरान करने वाली तस्वीर सामने आई है। यह तस्वीर सरकार के विकास के बड़े-बड़े दावों की पोल खोलने के लिए काफी है। एक महिला की मौत के बाद उसके अंतिम संस्कार के लिए एक सम्मानजनक जगह तक नहीं मिली। बारिश में तीरपाल डालकर महिला का अंतिम संस्कार किया गया।
दरअसल, मध्य प्रदेश के दतिया जिले के जनपद पंचायत भांडेर के मूरिया गांव में एक 65 साल की महिला की मौत हो गई। जहां उसके शव को अंतिम संस्कार तक के लिए ले जाया गया वहां पर बारिश के कारण चारों ओर कीचड़ था। शमशन घाट की बात ही मत पूछिए। इस गांव में अभी तक शमशान घाट बना ही नहीं है। मुक्ति धाम नहीं था गांव वालों ने अर्थी को जलाने के लिए पॉलीथिन का सहारा लिया। जिस जगह अर्थी जलाई जानी थी उसके चारों ओर ग्रामीण पॉलीथीन तानकर खड़े थे, और उसके नीचे चिता जल रही थी। बड़ी मुश्किल से महिला का अंतिम संस्कार किया गया।
बारिश में न हो किसी का देहांत
बता दें कि वायरल वीडियो ने प्रदेश सरकार और उसके सिस्टम की पोल खोल दी है। आजादी के बाद भी मुरिया गांव को विकास की दरकार है। ग्रामीण अब भी मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं। एक हजार की आबादी वाले गांव को मुक्तिधाम की दरकार है। मुरिया गांव के ग्रामीणों का कहना है कि भगवान न करें कि बारिश में किसी का देहांत हो।
अब सवाल यह है कि सरकार के पास करोड़ों रुपए की योजनाएं हैं, तो क्या मुरईया गांव जैसे इलाकों में एक सम्मानजनक विदाई भी मरने के बाद लोगों को नसीब नहीं होती।
दरअसल, मध्य प्रदेश के दतिया जिले के जनपद पंचायत भांडेर के मूरिया गांव में एक 65 साल की महिला की मौत हो गई। जहां उसके शव को अंतिम संस्कार तक के लिए ले जाया गया वहां पर बारिश के कारण चारों ओर कीचड़ था। शमशन घाट की बात ही मत पूछिए। इस गांव में अभी तक शमशान घाट बना ही नहीं है। मुक्ति धाम नहीं था गांव वालों ने अर्थी को जलाने के लिए पॉलीथिन का सहारा लिया। जिस जगह अर्थी जलाई जानी थी उसके चारों ओर ग्रामीण पॉलीथीन तानकर खड़े थे, और उसके नीचे चिता जल रही थी। बड़ी मुश्किल से महिला का अंतिम संस्कार किया गया।
बारिश में न हो किसी का देहांत
बता दें कि वायरल वीडियो ने प्रदेश सरकार और उसके सिस्टम की पोल खोल दी है। आजादी के बाद भी मुरिया गांव को विकास की दरकार है। ग्रामीण अब भी मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं। एक हजार की आबादी वाले गांव को मुक्तिधाम की दरकार है। मुरिया गांव के ग्रामीणों का कहना है कि भगवान न करें कि बारिश में किसी का देहांत हो।
अब सवाल यह है कि सरकार के पास करोड़ों रुपए की योजनाएं हैं, तो क्या मुरईया गांव जैसे इलाकों में एक सम्मानजनक विदाई भी मरने के बाद लोगों को नसीब नहीं होती।
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