नई दिल्ली: मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने बुधवार को एक कार्यक्रम में कहा है कि जब अदालतें और अधिकरण (ट्रिब्यूनल) तर्कसंगत, सुसंगत और पूर्वानुमेय फैसले देते हैं, तब कानून ऐसा ढांचा बन जाता है जिसके भीतर नागरिक अपने अधिकारों और कर्तव्यों का आत्मविश्वास से पालन कर सकते हैं।
इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल के एक कार्यक्रम में संबोधित करते हुए सीजेआई गवई ने कहा, जब अदालतें और ट्रिब्यूनल तार्किक और एकरूप कारणों के साथ फैसले देते हैं, तो इससे कानून की विश्वसनीयता मजबूत होती है। लेकिन असंगत या विरोधाभासी राय कानूनी प्रणाली की साख को कमजोर कर सकती है। उन्होंने आगे कहा कि न्यायपालिका की भूमिका केवल विवादों के समाधान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कानून को एक भरोसेमंद व्यवस्था के रूप में स्थापित करने की जिम्मेदारी भी निभाती है।
लंबित मामलों की कमी पर सीजीआई ने की सराहना
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने ट्रिब्यूनल द्वारा पिछले पांच सालों में 85,000 से घटाकर 24,000 मामलों के लंबित मामलों को कम करने की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि बेंच और बार के बीच सहयोग का परिणाम है। हालांकि, उन्होंने चिंता जताई कि 6.85 लाख करोड़ रुपये के विवाद जो भारत की जीडीपी के दो प्रतिशत से अधिक है, अभी भी ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित हैं।
पीठों के बीच विरोधी फैसलों पर जताई चिंता
उन्होंने विभिन्न पीठों के बीच परस्पर विरोधी निर्णयों पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब अदालतें और ट्रिब्यूनल सुसंगत, तर्कसंगत और अनुमानित निर्णय देते हैं, तो कानून एक स्थिर ढांचा बन जाता है। असंगत राय कानूनी प्रणाली के अधिकार को कम कर सकती है।
सीजेआई बीआर गवई ने सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रियाओं का आह्वान किया। उन्होंने कहा, एक ट्रिब्यूनल की विश्वसनीयता इस विश्वास पर निर्भर करती है कि उसके सदस्यों का चयन प्रशासनिक सुविधा के बजाय वस्तुनिष्ठ मानकों के अनुसार किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि वे नियुक्तियों से संबंधित लंबित मुद्दों पर टिप्पणी करने से बचेंगे क्योंकि वे विचाराधीन हैं।
इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल के एक कार्यक्रम में संबोधित करते हुए सीजेआई गवई ने कहा, जब अदालतें और ट्रिब्यूनल तार्किक और एकरूप कारणों के साथ फैसले देते हैं, तो इससे कानून की विश्वसनीयता मजबूत होती है। लेकिन असंगत या विरोधाभासी राय कानूनी प्रणाली की साख को कमजोर कर सकती है। उन्होंने आगे कहा कि न्यायपालिका की भूमिका केवल विवादों के समाधान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कानून को एक भरोसेमंद व्यवस्था के रूप में स्थापित करने की जिम्मेदारी भी निभाती है।
लंबित मामलों की कमी पर सीजीआई ने की सराहना
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस ने ट्रिब्यूनल द्वारा पिछले पांच सालों में 85,000 से घटाकर 24,000 मामलों के लंबित मामलों को कम करने की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि बेंच और बार के बीच सहयोग का परिणाम है। हालांकि, उन्होंने चिंता जताई कि 6.85 लाख करोड़ रुपये के विवाद जो भारत की जीडीपी के दो प्रतिशत से अधिक है, अभी भी ट्रिब्यूनल के समक्ष लंबित हैं।
#WATCH | Delhi | At an event, CJI BR Gavai says, " ...When courts and tribunals provide reasonable and consistent reasons and predictable decisions, then law becomes a suitable framework within which the citizens can exercise their rights and duties confidently. Inconsistent or… pic.twitter.com/IIIFZpOJPu
— ANI (@ANI) October 8, 2025
पीठों के बीच विरोधी फैसलों पर जताई चिंता
उन्होंने विभिन्न पीठों के बीच परस्पर विरोधी निर्णयों पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जब अदालतें और ट्रिब्यूनल सुसंगत, तर्कसंगत और अनुमानित निर्णय देते हैं, तो कानून एक स्थिर ढांचा बन जाता है। असंगत राय कानूनी प्रणाली के अधिकार को कम कर सकती है।
सीजेआई बीआर गवई ने सार्वजनिक विश्वास बनाए रखने के लिए पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रियाओं का आह्वान किया। उन्होंने कहा, एक ट्रिब्यूनल की विश्वसनीयता इस विश्वास पर निर्भर करती है कि उसके सदस्यों का चयन प्रशासनिक सुविधा के बजाय वस्तुनिष्ठ मानकों के अनुसार किया जाता है। उन्होंने यह भी कहा कि वे नियुक्तियों से संबंधित लंबित मुद्दों पर टिप्पणी करने से बचेंगे क्योंकि वे विचाराधीन हैं।
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