पटना: पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला फतुहा विधानसभा सीट 1957 में अपनी स्थापना के बाद से 18 बार चुनावी जंग का गवाह बन चुका है। हाल के वर्षों में इसकी पहचान एक ऐसी सीट के रूप में बनी है, जहां जातीय गोलबंदी और सामाजिक समीकरण ही चुनावी नतीजे तय करते हैं। यहां की राजनीति पूरी तरह से जातिगत फैक्टर पर टिकी हुई है। फतुहा विधानसभा क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक विरासत, औद्योगिक पहचान और सबसे बढ़कर, बेहद जटिल राजनीतिक बनावट के लिए जाना जाता है। इस सीट पर वोटरों का समीकरण बेहद दिलचस्प है। फतुहा एक सामान्य सीट है, लेकिन 2020 के आंकड़ों के मुताबिक, कुल 2 लाख 71 हजार 238 मतदाताओं में अनुसूचित जाति के मतदाताओं की हिस्सेदारी करीब 18.59 प्रतिशत है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 2020 में मात्र 1.4 प्रतिशत थी, जबकि शहरी मतदाता लगभग 13.4 प्रतिशत थे।
फतुहा सीट पर रमानंद यादव का दबदबापिछले डेढ़ दशक से फतुहा की चुनावी कहानी डॉ. रामानंद यादव के इर्द-गिर्द घूमती रही है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के दिग्गज नेता रामानंद यादव ने इस सीट को राजद का एक तरह से अभेद्य किला बना दिया है। वो लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुके हैं और अब चौथी बार जीत का दावा ठोक रहे हैं। फतुहा में मुकाबला हमेशा कांटे का रहा है, लेकिन जीत का सेहरा पिछले तीन बार से लगातार रामानंद यादव के सिर बंधा है। 2020 के चुनाव में रामानंद यादव ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार सत्येंद्र सिंह को 19 हजार 370 वोटों के बड़े अंतर से हराकर सीट बरकरार रखी।
चौथी बार मैदान में रमानंद यादव2015 के चुनाव में उनका मुकाबला लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार सत्येंद्र कुमार सिंह से हुआ था, जिसमें रमानंद यादव ने 30 हजार 402 वोटों के विशाल अंतर से जीत हासिल की थी। 2010 विधानसभा चुनाव में यह वह साल था जब रामानंद यादव ने पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया था और तब से उनका विजय रथ थमा नहीं है। 2010 के बाद से भाजपा नीत एनडीए गठबंधन इस सीट पर अपनी पकड़ वापस नहीं जमा सका है। सत्येंद्र कुमार सिंह, जिन्होंने 2015 में लोजपा और 2020 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, दोनों बार हार गए। इस बार के चुनाव में राजद प्रत्याशी रामानंद का मुकाबला लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार रूपा कुमारी से होने वाला है।
कई धर्मों के आस्था का केंद्र फतुहाफतुहा की मिट्टी में कई धर्मों की आस्था घुली हुई है। हिंदू धर्म में इसे वह पुण्य भूमि माना जाता है, जहां से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ मिथिला यात्रा के दौरान गंगा पार की थी। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण भी भीम के साथ राजगीर जाते समय यहीं से गुजरे थे। बौद्ध, जैन, सिख और मुस्लिम, सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए यह समान रूप से पूज्यनीय स्थल है। संत कबीर की स्मृति में यहां एक विशाल मठ स्थापित है, वहीं मध्यकाल से ही यहां सूफी संतों का प्रभाव रहा है, जिसकी गवाही कच्ची दरगाह देती है।
बिहार में उद्योगों के लिए मशहूरफतुहा का नामकरण भी इसके व्यापारिक इतिहास से जुड़ा है। 'फतुहा' या 'फतुहां' नाम पारंपरिक वस्त्र निर्माण में निपुण 'पटवा' जाति से आया है, जिसने सदियों तक इस क्षेत्र को कुटीर उद्योगों का केंद्र बनाए रखा। आज भले ही समय बदल गया हो, लेकिन यहां स्थापित ट्रैक्टर निर्माण इकाई और एलपीजी बॉटलिंग प्लांट जैसी आधुनिक इकाइयां बिहार के औद्योगिक पुनरुद्धार की नई उम्मीद जगा रही हैं।
इनपुट- आईएएनएस
फतुहा सीट पर रमानंद यादव का दबदबापिछले डेढ़ दशक से फतुहा की चुनावी कहानी डॉ. रामानंद यादव के इर्द-गिर्द घूमती रही है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के दिग्गज नेता रामानंद यादव ने इस सीट को राजद का एक तरह से अभेद्य किला बना दिया है। वो लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुके हैं और अब चौथी बार जीत का दावा ठोक रहे हैं। फतुहा में मुकाबला हमेशा कांटे का रहा है, लेकिन जीत का सेहरा पिछले तीन बार से लगातार रामानंद यादव के सिर बंधा है। 2020 के चुनाव में रामानंद यादव ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार सत्येंद्र सिंह को 19 हजार 370 वोटों के बड़े अंतर से हराकर सीट बरकरार रखी।
चौथी बार मैदान में रमानंद यादव2015 के चुनाव में उनका मुकाबला लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार सत्येंद्र कुमार सिंह से हुआ था, जिसमें रमानंद यादव ने 30 हजार 402 वोटों के विशाल अंतर से जीत हासिल की थी। 2010 विधानसभा चुनाव में यह वह साल था जब रामानंद यादव ने पहली बार विधानसभा में प्रवेश किया था और तब से उनका विजय रथ थमा नहीं है। 2010 के बाद से भाजपा नीत एनडीए गठबंधन इस सीट पर अपनी पकड़ वापस नहीं जमा सका है। सत्येंद्र कुमार सिंह, जिन्होंने 2015 में लोजपा और 2020 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा, दोनों बार हार गए। इस बार के चुनाव में राजद प्रत्याशी रामानंद का मुकाबला लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) की उम्मीदवार रूपा कुमारी से होने वाला है।
कई धर्मों के आस्था का केंद्र फतुहाफतुहा की मिट्टी में कई धर्मों की आस्था घुली हुई है। हिंदू धर्म में इसे वह पुण्य भूमि माना जाता है, जहां से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने अपने भाइयों के साथ मिथिला यात्रा के दौरान गंगा पार की थी। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण भी भीम के साथ राजगीर जाते समय यहीं से गुजरे थे। बौद्ध, जैन, सिख और मुस्लिम, सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए यह समान रूप से पूज्यनीय स्थल है। संत कबीर की स्मृति में यहां एक विशाल मठ स्थापित है, वहीं मध्यकाल से ही यहां सूफी संतों का प्रभाव रहा है, जिसकी गवाही कच्ची दरगाह देती है।
बिहार में उद्योगों के लिए मशहूरफतुहा का नामकरण भी इसके व्यापारिक इतिहास से जुड़ा है। 'फतुहा' या 'फतुहां' नाम पारंपरिक वस्त्र निर्माण में निपुण 'पटवा' जाति से आया है, जिसने सदियों तक इस क्षेत्र को कुटीर उद्योगों का केंद्र बनाए रखा। आज भले ही समय बदल गया हो, लेकिन यहां स्थापित ट्रैक्टर निर्माण इकाई और एलपीजी बॉटलिंग प्लांट जैसी आधुनिक इकाइयां बिहार के औद्योगिक पुनरुद्धार की नई उम्मीद जगा रही हैं।
इनपुट- आईएएनएस
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