नई दिल्ली: पाकिस्तान को 40 अरब और मुस्लिम राष्ट्रों के 'अरब-इस्लामिक नाटो'अलायंस के विचार का मास्टरमाइंड माना जा रहा था। लेकिन, इजरायल-कतर के झगड़े से शुरू हुई इन संभावनाओं को संयुक्त राष्ट्र अमीरात (UAE) ने बहुत बड़ा झटका दे दिया है। यूएई लैंड फोर्सेज के कमांडर मेजर जनरल यूसुफ मयूफ सईद अल हल्लामी न सिर्फ दो दिवसीय भारत दौरे पर पहुंचे हैं, बल्कि वे दोनों मुल्कों के बीच रक्षा सहयोग को और ज्यादा बढ़ाने के इरादे से ही दिल्ली आए हैं।
ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े तथ्यों से सामना
यूएई लैंड फोर्सेज के कमांडर के दौरे के पहले ही दिन उन्हें ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के खिलाफ भारत के सफल सैन्य अभियान के तथ्यों से रूबरू करवाया गया। यूं तो भारत की ओर से यह पहल भारतीय सेना की ताकत और तैयारियों से परिचय कराना था, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात के एक मुस्लिम मुल्क होने के नाते इसका कूटनीतिक संदेश इससे कहीं बढ़कर माना जा रहा है।
भारतीय सैन्य क्षमता का मिला परिचय
भारतीय सेना की क्षमता की जानकारी देने के लिए खुद इनफॉर्मेशन सिस्टम एंड आर्मी डिजाइन ब्यूरो के डीजी ने उन्हें इसके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के रोडमैप के बारे में बताया। यूएई लैंड फोर्सेज के कमांडर के भारत दौरे का एक खास मकसद भविष्य के युद्ध के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के स्तर पर इसकी तैयारियों के बारे में भी पता करना है।
भारत-यूएई में सैन्य सहयोग बढ़ने के आसार
मुस्लिम देश संयुक्त अरब अमीरात के सैन्य कमांडर यहीं तक नहीं रुकने वाले हैं। वह रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) जाकर भारत के अनेकों स्वदेशी हथियारों और सैन्य उपकरणों को अपने नजरों से महसूस भी करने वाले हैं। इस दौरान उनकी भारतीय रक्षा उद्योग के लोगों से बातचीत भी होगी। मेजर जनरल हल्लामी की इस यात्रा को भारत-यूएई रक्षा सहयोग के लिए टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा है। संभावना है कि इसकी वजह से दोनों देशों के बीच सैन्य क्षेत्र में भागीदारी और बढ़ेगी, जो क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग के लिए भी भविष्य में अहम साबित हो सकती है।
सऊदी अरब से पैसे के लिए की डील
हाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक रक्षा समझौता हुआ है। इसे भारत के लिए बहुत बड़ी चिंता की तरह से पेश किया जा रहा था। लेकिन, धीरे-धीरे तस्वीर साफ हुई तो यह बात सामने आई कि पाकिस्तान ने सिर्फ पैसे के लिए यह डील की है। CNN-News 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार इस डील के तहत पाकिस्तान को अपने 25,000 सैनिकों की सऊदी अरब में तैनाती करनी है और इसकी एवज में उसे 10 बिलियन डॉलर मिलेगा। मतलब, पाकिस्तान की हालत अब सिक्योरिटी एजेंसी की तरह हो गई है।
'अरब-इस्लामिक नाटो' का मंसूबा फेल!
इसी तरह से जब इजरायल ने कतर पर हमला कर दिया था, तो ' अरब-इस्लामिक नाटो' का बहुत बड़ा शिगूफा छूटने लगा। इसका प्रस्ताव लाने वालों में पाकिस्तान सबसे आगे था। इसमें 40 मुस्लिम मुल्क शामिल थे और इसे भी भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती की तरह पेश किया जा रहा था। इसके माध्यम से पाकिस्तान एक 'ज्वाइंट टास्क फोर्स' बनाने की भी बात कर रहा था, जिसमें इजरायल की तरह की कार्रवाई रोकने के खिलाफ सैन्य मोर्चाबंदी की बात थी। विश्लेषकों का मानना था कि इससे भविष्य में ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई के समय चुनौती बढ़ सकती है। इस सम्मेलन में तब संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हुआ था, जो अब ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल हुए भारतीय हथियारों को सौदे के लिए परखने में जुटा है।
ऑपरेशन सिंदूर से जुड़े तथ्यों से सामना
यूएई लैंड फोर्सेज के कमांडर के दौरे के पहले ही दिन उन्हें ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान के खिलाफ भारत के सफल सैन्य अभियान के तथ्यों से रूबरू करवाया गया। यूं तो भारत की ओर से यह पहल भारतीय सेना की ताकत और तैयारियों से परिचय कराना था, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात के एक मुस्लिम मुल्क होने के नाते इसका कूटनीतिक संदेश इससे कहीं बढ़कर माना जा रहा है।
भारतीय सैन्य क्षमता का मिला परिचय
भारतीय सेना की क्षमता की जानकारी देने के लिए खुद इनफॉर्मेशन सिस्टम एंड आर्मी डिजाइन ब्यूरो के डीजी ने उन्हें इसके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के रोडमैप के बारे में बताया। यूएई लैंड फोर्सेज के कमांडर के भारत दौरे का एक खास मकसद भविष्य के युद्ध के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के स्तर पर इसकी तैयारियों के बारे में भी पता करना है।
भारत-यूएई में सैन्य सहयोग बढ़ने के आसार
मुस्लिम देश संयुक्त अरब अमीरात के सैन्य कमांडर यहीं तक नहीं रुकने वाले हैं। वह रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) जाकर भारत के अनेकों स्वदेशी हथियारों और सैन्य उपकरणों को अपने नजरों से महसूस भी करने वाले हैं। इस दौरान उनकी भारतीय रक्षा उद्योग के लोगों से बातचीत भी होगी। मेजर जनरल हल्लामी की इस यात्रा को भारत-यूएई रक्षा सहयोग के लिए टर्निंग प्वाइंट माना जा रहा है। संभावना है कि इसकी वजह से दोनों देशों के बीच सैन्य क्षेत्र में भागीदारी और बढ़ेगी, जो क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग के लिए भी भविष्य में अहम साबित हो सकती है।
सऊदी अरब से पैसे के लिए की डील
हाल ही में सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच एक रक्षा समझौता हुआ है। इसे भारत के लिए बहुत बड़ी चिंता की तरह से पेश किया जा रहा था। लेकिन, धीरे-धीरे तस्वीर साफ हुई तो यह बात सामने आई कि पाकिस्तान ने सिर्फ पैसे के लिए यह डील की है। CNN-News 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार इस डील के तहत पाकिस्तान को अपने 25,000 सैनिकों की सऊदी अरब में तैनाती करनी है और इसकी एवज में उसे 10 बिलियन डॉलर मिलेगा। मतलब, पाकिस्तान की हालत अब सिक्योरिटी एजेंसी की तरह हो गई है।
'अरब-इस्लामिक नाटो' का मंसूबा फेल!
इसी तरह से जब इजरायल ने कतर पर हमला कर दिया था, तो ' अरब-इस्लामिक नाटो' का बहुत बड़ा शिगूफा छूटने लगा। इसका प्रस्ताव लाने वालों में पाकिस्तान सबसे आगे था। इसमें 40 मुस्लिम मुल्क शामिल थे और इसे भी भारत के लिए बहुत बड़ी चुनौती की तरह पेश किया जा रहा था। इसके माध्यम से पाकिस्तान एक 'ज्वाइंट टास्क फोर्स' बनाने की भी बात कर रहा था, जिसमें इजरायल की तरह की कार्रवाई रोकने के खिलाफ सैन्य मोर्चाबंदी की बात थी। विश्लेषकों का मानना था कि इससे भविष्य में ऑपरेशन सिंदूर जैसी कार्रवाई के समय चुनौती बढ़ सकती है। इस सम्मेलन में तब संयुक्त अरब अमीरात भी शामिल हुआ था, जो अब ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल हुए भारतीय हथियारों को सौदे के लिए परखने में जुटा है।
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