नई दिल्ली: आने वाले कुछ सालों में अमेरिका बिल्कुल बदल जाएगा। इसके संकेत मिलने लगे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में तेजी से बदलाव हो रहा है। इस बदलाव में भारत समेत बाहरी देशों के लोगों के लिए मौके नहीं हैं या सिकुड़ते जा रहे हैं। 'अमेरिकन ड्रीम' की हसरत पाले तमाम भारतीयों के लिए यह बड़ी मायूसी है। ट्रंप को भारत का सिर्फ 'क्रेम डे ला क्रेम' यानी 'क्रीम की क्रीम' चाहिए। अमेरिका की पॉलिसी में यह बड़ा शिफ्ट है। वह अब केवल सबसे बेहतरीन और सबसे योग्य भारतीय टैलेंट को ही प्रवेश देना चाहता है। न कि ऐसे लोगों को जो अभी अपने करियर की शुरुआत कर रहे हैं।
आईआईएम से पासआउट लोकेश आहूजा ने लिंक्डइन पर इस बारे में अपनी राय साझा की है। उनका कहना है कि अब कई युवा भारतीय आप्रवासियों के लिए 'अमेरिकन ड्रीम' खत्म हो रहा है। अमेरिका चुपचाप नियम बदल रहा है। ये नियम सिर्फ अमीर लोगों को फायदा पहुंचा रहे हैं। अपने पोस्ट में आहूजा ने बताया बड़ी टेक कंपनियों में छंटनी, आप्रवासियों के खिलाफ बढ़ती बातें और वीजा सिस्टम में बदलाव को लेकर चेतावनी दी है। उनका कहना है कि अब एंट्री-लेवल के कर्मचारियों को मौका नहीं मिल रहा है।
खुद को साबित करने की चाहत रखने वालों के लिए जगह नहींआहूजा ने लिखा, 'ट्रंप वापस आ गए हैं। वो पीछे नहीं हट रहे हैं।' उन्होंने राष्ट्रपति के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था, 'अमेरिकियों को नौकरी दो, भारतीयों को नहीं।' अब नीतियां भी ऐसी ही बन रही हैं। अमेरिका का नया पॉइंट-आधारित इमिग्रेशन सिस्टम सिर्फ ज्यादा कमाने वाले लोगों को फायदा पहुंचाता है। इससे नए ग्रेजुएट और शुरुआती करियर वाले लोग बाहर हो रहे हैं।
आहूजा का कहना है कि अमेरिका को अभी भी दुनिया भर से टैलेंट चाहिए। लेकिन, सब नहीं। उन्हें सिर्फ सबसे अच्छे लोग चाहिए। ट्रंप 23 साल के उन युवाओं को नहीं चाहते जो खुद को साबित करना चाहते हैं। उन्हें 29 साल के वे लोग चाहिए जिनके पास पहले से ही अच्छी नौकरी है।
यहां तक कि जन्म से नागरिकता मिलने का नियम भी खतरे में है। अमेरिकी सांसद एक बिल को फिर से ला रहे हैं। इस बिल के अनुसार, अगर किसी बच्चे के माता-पिता अमेरिकी नागरिक नहीं हैं तो उसे अमेरिका में पैदा होने पर भी नागरिकता नहीं मिलेगी। आहूजा इसे एक बड़े बदलाव के तौर पर देखते हैं। उनका कहना है कि अब अमेरिका आप्रवासियों का स्वागत करने के बजाय उनके भविष्य को सीमित कर रहा है।
दिखने लगा है बदलती पॉलिसियों का असर
इसका असर दिखने भी लगा है। आहूजा ने लिखा है कि 2025 के पहले छह महीनों में ही भारतीयों के लिए अमेरिकी स्टूडेंट वीजा 44% तक गिर गए हैं। खबरों के मुताबिक, फॉल एप्लिकेशन 50% से ज्यादा घट गए हैं। छात्र अब उन देशों की तरफ जा रहे हैं जहां इमिग्रेशन के नियम ज्यादा साफ और सबके लिए हैं।
आहूजा का कहना है कि अगर बाजार बदलता है तो सबसे ज्यादा नुकसान आप्रवासी कर्मचारियों को होगा। अगर कानून बदलते हैं तो वे ज्यादा लोगों के बजाय कम लोगों के लिए बनेंगे।
ये ट्रेंड सिर्फ अमेरिका में ही नहीं है। कनाडा अब उन लोगों को ज्यादा पसंद करता है जिनकी सैलरी ज्यादा है। जिनके पास काम का अनुभव है। ऑस्ट्रेलिया का नया स्कोरिंग सिस्टम ज्यादा उम्र के और ज्यादा कमाने वाले लोगों को फायदा पहुंचाता है। आहूजा का कहना है कि यूरोप भी अब 'प्रीमियम माइग्रेंट्स' की तरफ झुक रहा है।
आहूजा ने कहा, 'नियम बदल रहे हैं। मैसेज साफ है। 'अमेरिकन ड्रीम' धीरे-धीरे सिर्फ अमेरिकियों का सपना बनता जा रहा है।'
क्या है 'क्रेम डे ला क्रेम', कैसे ये पॉलिसी शिफ्ट का इशारा?'क्रेम डे ला क्रेम' एक फ्रेंच मुहावरा है। इसका शाब्दिक मतलब है 'क्रीम की क्रीम'। इसका इस्तेमाल किसी समूह या श्रेणी में सबसे अच्छे, सबसे उत्कृष्ट या सबसे विशिष्ट लोगों या चीजों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। यह उन लोगों की बात करता है जो अपनी क्षमता, कौशल, अनुभव या योग्यता के मामले में टॉप पर होते हैं।
भारत के लिए अमेरिका की पॉलिसी शिफ्ट से जोड़कर देखें तो वह अब केवल उन भारतीय पेशेवरों को प्राथमिकता दे रहा है जो ज्यादा इनकम वाले हैं। जिनके पास अच्छा कार्य अनुभव है। जो पहले से ही अपने करियर में स्थापित हैं। यह पॉलिसी चेंज उन युवा भारतीय स्नातकों या शुरुआती करियर वालों को बाहर कर रहा है जो अमेरिका जाकर खुद को साबित करने का सपना संजोते हैं। इसके बजाय अमेरिका अब उन लोगों को आकर्षित करना चाहता है जिनके पास पहले से ही एक बड़ा जॉब ऑफर है। यानी जो पहले से ही सफल और ज्यादा कुशलता वाले हैं।
आईआईएम से पासआउट लोकेश आहूजा ने लिंक्डइन पर इस बारे में अपनी राय साझा की है। उनका कहना है कि अब कई युवा भारतीय आप्रवासियों के लिए 'अमेरिकन ड्रीम' खत्म हो रहा है। अमेरिका चुपचाप नियम बदल रहा है। ये नियम सिर्फ अमीर लोगों को फायदा पहुंचा रहे हैं। अपने पोस्ट में आहूजा ने बताया बड़ी टेक कंपनियों में छंटनी, आप्रवासियों के खिलाफ बढ़ती बातें और वीजा सिस्टम में बदलाव को लेकर चेतावनी दी है। उनका कहना है कि अब एंट्री-लेवल के कर्मचारियों को मौका नहीं मिल रहा है।
खुद को साबित करने की चाहत रखने वालों के लिए जगह नहींआहूजा ने लिखा, 'ट्रंप वापस आ गए हैं। वो पीछे नहीं हट रहे हैं।' उन्होंने राष्ट्रपति के उस बयान का जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था, 'अमेरिकियों को नौकरी दो, भारतीयों को नहीं।' अब नीतियां भी ऐसी ही बन रही हैं। अमेरिका का नया पॉइंट-आधारित इमिग्रेशन सिस्टम सिर्फ ज्यादा कमाने वाले लोगों को फायदा पहुंचाता है। इससे नए ग्रेजुएट और शुरुआती करियर वाले लोग बाहर हो रहे हैं।
आहूजा का कहना है कि अमेरिका को अभी भी दुनिया भर से टैलेंट चाहिए। लेकिन, सब नहीं। उन्हें सिर्फ सबसे अच्छे लोग चाहिए। ट्रंप 23 साल के उन युवाओं को नहीं चाहते जो खुद को साबित करना चाहते हैं। उन्हें 29 साल के वे लोग चाहिए जिनके पास पहले से ही अच्छी नौकरी है।
यहां तक कि जन्म से नागरिकता मिलने का नियम भी खतरे में है। अमेरिकी सांसद एक बिल को फिर से ला रहे हैं। इस बिल के अनुसार, अगर किसी बच्चे के माता-पिता अमेरिकी नागरिक नहीं हैं तो उसे अमेरिका में पैदा होने पर भी नागरिकता नहीं मिलेगी। आहूजा इसे एक बड़े बदलाव के तौर पर देखते हैं। उनका कहना है कि अब अमेरिका आप्रवासियों का स्वागत करने के बजाय उनके भविष्य को सीमित कर रहा है।
दिखने लगा है बदलती पॉलिसियों का असर
इसका असर दिखने भी लगा है। आहूजा ने लिखा है कि 2025 के पहले छह महीनों में ही भारतीयों के लिए अमेरिकी स्टूडेंट वीजा 44% तक गिर गए हैं। खबरों के मुताबिक, फॉल एप्लिकेशन 50% से ज्यादा घट गए हैं। छात्र अब उन देशों की तरफ जा रहे हैं जहां इमिग्रेशन के नियम ज्यादा साफ और सबके लिए हैं।
आहूजा का कहना है कि अगर बाजार बदलता है तो सबसे ज्यादा नुकसान आप्रवासी कर्मचारियों को होगा। अगर कानून बदलते हैं तो वे ज्यादा लोगों के बजाय कम लोगों के लिए बनेंगे।
ये ट्रेंड सिर्फ अमेरिका में ही नहीं है। कनाडा अब उन लोगों को ज्यादा पसंद करता है जिनकी सैलरी ज्यादा है। जिनके पास काम का अनुभव है। ऑस्ट्रेलिया का नया स्कोरिंग सिस्टम ज्यादा उम्र के और ज्यादा कमाने वाले लोगों को फायदा पहुंचाता है। आहूजा का कहना है कि यूरोप भी अब 'प्रीमियम माइग्रेंट्स' की तरफ झुक रहा है।
आहूजा ने कहा, 'नियम बदल रहे हैं। मैसेज साफ है। 'अमेरिकन ड्रीम' धीरे-धीरे सिर्फ अमेरिकियों का सपना बनता जा रहा है।'
क्या है 'क्रेम डे ला क्रेम', कैसे ये पॉलिसी शिफ्ट का इशारा?'क्रेम डे ला क्रेम' एक फ्रेंच मुहावरा है। इसका शाब्दिक मतलब है 'क्रीम की क्रीम'। इसका इस्तेमाल किसी समूह या श्रेणी में सबसे अच्छे, सबसे उत्कृष्ट या सबसे विशिष्ट लोगों या चीजों का वर्णन करने के लिए किया जाता है। यह उन लोगों की बात करता है जो अपनी क्षमता, कौशल, अनुभव या योग्यता के मामले में टॉप पर होते हैं।
भारत के लिए अमेरिका की पॉलिसी शिफ्ट से जोड़कर देखें तो वह अब केवल उन भारतीय पेशेवरों को प्राथमिकता दे रहा है जो ज्यादा इनकम वाले हैं। जिनके पास अच्छा कार्य अनुभव है। जो पहले से ही अपने करियर में स्थापित हैं। यह पॉलिसी चेंज उन युवा भारतीय स्नातकों या शुरुआती करियर वालों को बाहर कर रहा है जो अमेरिका जाकर खुद को साबित करने का सपना संजोते हैं। इसके बजाय अमेरिका अब उन लोगों को आकर्षित करना चाहता है जिनके पास पहले से ही एक बड़ा जॉब ऑफर है। यानी जो पहले से ही सफल और ज्यादा कुशलता वाले हैं।
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