नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट स्कैम के बढ़ते जाल पर सख्त रुख अपनाया है। कोर्ट ने इसे 'चौंकाने वाला' बताते हुए कहा कि इस पर तुरंत कड़े कदम उठाने की जरूरत है, वरना यह समस्या और बढ़ेगी। जस्टिस सूर्यकांत, उज्ज्वल भुइयां और जॉयमाल्या बागची की बेंच ने गृह मंत्रालय (MHA) और CBI की गोपनीय रिपोर्टों की समीक्षा के बाद यह बात कही। इन रिपोर्टों से पता चला है कि साइबर अपराधियों ने देशभर में भोले-भाले लोगों से, जिनमें बुजुर्ग भी शामिल हैं, 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा की ठगी की है।   
   
ये स्कैम करने वाले खुद को पुलिस, सरकारी अधिकारी या कोर्ट का नुमाइंदा बताकर लोगों को डराते हैं। वे नकली वीडियो और ऑडियो कॉल का इस्तेमाल करते हैं। फर्जी कागजात और कोर्ट के झूठे आदेश दिखाकर, वे लोगों को गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई से बचाने के नाम पर बड़ी रकम ऐंठते हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, 'यह चौंकाने वाली बात है कि देश भर में पीड़ितों, जिनमें वरिष्ठ नागरिक भी शामिल हैं, से 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूले गए हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'अगर हम कड़े और सख्त आदेश नहीं देंगे, तो यह समस्या और बढ़ेगी। हमें न्यायिक आदेशों से अपनी एजेंसियों को मजबूत करना होगा। हम इन अपराधों से सख्ती से निपटना चाहते हैं।'
     
कोर्ट ने इस मामले में मदद के लिए एक एमिकस क्यूरी (न्यायालय का सहायक) नियुक्त किया है। अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी, जिसमें कोर्ट आगे के निर्देश जारी करेगा। CBI ने कोर्ट को बताया कि ऐसे कई धोखाधड़ी वाले नेटवर्क विदेश से चल रहे हैं। ये 'स्कैम कंपाउंड' वित्तीय, तकनीकी और मानव सहायता प्रणालियों से लैस हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि MHA का साइबर क्राइम डिवीजन इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
     
क्यों ऐक्शन में है सुप्रीम कोर्ट? सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला तब उठाया जब हरियाणा के अंबाला की एक बुजुर्ग महिला ने शिकायत की। महिला ने बताया कि उसे और उसके पति को CBI, प्रवर्तन निदेशालय (ED) और न्यायपालिका के अधिकारी बनकर स्कैमर्स ने 'डिजिटल अरेस्ट' किया था। दंपति से कथित तौर पर 1.05 करोड़ रुपये ठगे गए थे। इस मामले में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं के तहत दो FIR दर्ज की गई हैं।
   
CBI को सौंपी जाए जांचइससे पहले भी कोर्ट ने ऐसे मामलों के बढ़ने पर चिंता जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक आदेशों की जालसाजी और अधिकारियों का भेष बदलना न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करता है। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया था कि CBI को देशभर में डिजिटल अरेस्ट के मामलों की जांच सौंपी जा सकती है और पूछा था कि क्या एजेंसी को और अधिक विशेष साइबर विशेषज्ञों की जरूरत है।
   
तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं स्कैमर्सये डिजिटल अरेस्ट स्कैम आजकल बहुत आम हो गए हैं। स्कैमर्स लोगों को डराने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। वे खुद को बड़े अधिकारी बताकर लोगों को यकीन दिलाते हैं कि वे किसी बड़े कानूनी पचड़े में फंस गए हैं। फिर वे गिरफ्तारी या जेल जाने का डर दिखाकर पैसे मांगते हैं। कई बार तो वे इतने यकीन दिलाने वाले होते हैं कि लोग सच मान लेते हैं और अपनी सारी जमा-पूंजी गंवा बैठते हैं।
   
बुजुर्ग आसानी से बनते हैं शिकारखासकर बुजुर्ग लोग इन स्कैम का आसानी से शिकार हो जाते हैं। उन्हें टेक्नोलॉजी की उतनी जानकारी नहीं होती और वे अधिकारियों के नाम से जल्दी डर जाते हैं। स्कैमर्स इसी का फायदा उठाते हैं। वे ऐसे जाल बिछाते हैं कि आम आदमी फंस ही जाता है। यह एक गंभीर समस्या है और सुप्रीम कोर्ट का इस पर कड़ा रुख लेना सराहनीय है। उम्मीद है कि कोर्ट के सख्त आदेशों से इन स्कैमर्स पर लगाम लगेगी और लोगों को ठगी से बचाया जा सकेगा। यह भी जरूरी है कि लोगों को ऐसे स्कैम के बारे में जागरूक किया जाए ताकि वे खुद को सुरक्षित रख सकें।
  
ये स्कैम करने वाले खुद को पुलिस, सरकारी अधिकारी या कोर्ट का नुमाइंदा बताकर लोगों को डराते हैं। वे नकली वीडियो और ऑडियो कॉल का इस्तेमाल करते हैं। फर्जी कागजात और कोर्ट के झूठे आदेश दिखाकर, वे लोगों को गिरफ्तारी या कानूनी कार्रवाई से बचाने के नाम पर बड़ी रकम ऐंठते हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, 'यह चौंकाने वाली बात है कि देश भर में पीड़ितों, जिनमें वरिष्ठ नागरिक भी शामिल हैं, से 3000 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूले गए हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'अगर हम कड़े और सख्त आदेश नहीं देंगे, तो यह समस्या और बढ़ेगी। हमें न्यायिक आदेशों से अपनी एजेंसियों को मजबूत करना होगा। हम इन अपराधों से सख्ती से निपटना चाहते हैं।'
कोर्ट ने इस मामले में मदद के लिए एक एमिकस क्यूरी (न्यायालय का सहायक) नियुक्त किया है। अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी, जिसमें कोर्ट आगे के निर्देश जारी करेगा। CBI ने कोर्ट को बताया कि ऐसे कई धोखाधड़ी वाले नेटवर्क विदेश से चल रहे हैं। ये 'स्कैम कंपाउंड' वित्तीय, तकनीकी और मानव सहायता प्रणालियों से लैस हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि MHA का साइबर क्राइम डिवीजन इस मुद्दे पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है।
क्यों ऐक्शन में है सुप्रीम कोर्ट? सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला तब उठाया जब हरियाणा के अंबाला की एक बुजुर्ग महिला ने शिकायत की। महिला ने बताया कि उसे और उसके पति को CBI, प्रवर्तन निदेशालय (ED) और न्यायपालिका के अधिकारी बनकर स्कैमर्स ने 'डिजिटल अरेस्ट' किया था। दंपति से कथित तौर पर 1.05 करोड़ रुपये ठगे गए थे। इस मामले में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की विभिन्न धाराओं के तहत दो FIR दर्ज की गई हैं।
CBI को सौंपी जाए जांचइससे पहले भी कोर्ट ने ऐसे मामलों के बढ़ने पर चिंता जताई थी। कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक आदेशों की जालसाजी और अधिकारियों का भेष बदलना न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करता है। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया था कि CBI को देशभर में डिजिटल अरेस्ट के मामलों की जांच सौंपी जा सकती है और पूछा था कि क्या एजेंसी को और अधिक विशेष साइबर विशेषज्ञों की जरूरत है।
तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं स्कैमर्सये डिजिटल अरेस्ट स्कैम आजकल बहुत आम हो गए हैं। स्कैमर्स लोगों को डराने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। वे खुद को बड़े अधिकारी बताकर लोगों को यकीन दिलाते हैं कि वे किसी बड़े कानूनी पचड़े में फंस गए हैं। फिर वे गिरफ्तारी या जेल जाने का डर दिखाकर पैसे मांगते हैं। कई बार तो वे इतने यकीन दिलाने वाले होते हैं कि लोग सच मान लेते हैं और अपनी सारी जमा-पूंजी गंवा बैठते हैं।
बुजुर्ग आसानी से बनते हैं शिकारखासकर बुजुर्ग लोग इन स्कैम का आसानी से शिकार हो जाते हैं। उन्हें टेक्नोलॉजी की उतनी जानकारी नहीं होती और वे अधिकारियों के नाम से जल्दी डर जाते हैं। स्कैमर्स इसी का फायदा उठाते हैं। वे ऐसे जाल बिछाते हैं कि आम आदमी फंस ही जाता है। यह एक गंभीर समस्या है और सुप्रीम कोर्ट का इस पर कड़ा रुख लेना सराहनीय है। उम्मीद है कि कोर्ट के सख्त आदेशों से इन स्कैमर्स पर लगाम लगेगी और लोगों को ठगी से बचाया जा सकेगा। यह भी जरूरी है कि लोगों को ऐसे स्कैम के बारे में जागरूक किया जाए ताकि वे खुद को सुरक्षित रख सकें।
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