एक बार एक युवक ज्ञान की खोज में एक विख्यात गुरु के पास पहुंचा। वह बोला, ‘गुरुदेव! मुझे ज्ञान दीजिए, मैं संसार की सच्चाई जानना चाहता हूं।’ गुरु मुस्कराए, ‘ज्ञान अवश्य मिलेगा, लेकिन पहले इसका मूल्य देना होगा।’ युवक हैरान हुआ, ‘क्या ज्ञान भी बिकता है, गुरुदेव?’ गुरु ने शांत स्वर में कहा, ‘हां पुत्र, जो चीज़ बिना मूल्य के मिलती है, वह मन में नहीं बसती, वह स्मृति में नहीं टिकती। ज्ञान को धारण करने के लिए त्याग, विनम्रता और समर्पण का मूल्य देना पड़ता है।’
जब हम किसी चीज़ के लिए परिश्रम या मूल्य चुकाते हैं, तो हमारा मन उसमें निवेश कर देता है। जैसे आपने किसी पुस्तक को मेहनत से खरीदा, तो आप उसे ध्यान से पढ़ेंगे, उसकी बातें याद रखेंगे, क्योंकि उसमें आपका योगदान है। लेकिन वही पुस्तक अगर किसी ने मुफ्त में दे दी, तो अक्सर वह घर के किसी कोने में पड़ी रहती है। जब व्यक्ति अपने श्रम या धन से कुछ प्राप्त करता है, तो उसका मन कहता है, ‘यह मेरा है, मुझे इसे सार्थक बनाना है।’ इसलिए ज्ञानीजन कहते हैं कि, ‘जब तक तुम अपने मन, श्रम या धन से कुछ दोगे नहीं, तब तक ज्ञान तुम्हारे जीवन में जड़ नहीं पकड़ेगा।’
ज्ञान तभी फल देता है जब उसे पाने वाला श्रद्धा से ग्रहण करता है। जो व्यक्ति बिना आदर या समर्पण के ज्ञान सुनता है, वह उसे केवल सूचना समझकर भूल जाता है। कहा जाता है कि जो चीज मुफ्त में मिलती है, वह आपके हृदय में नहीं उतरती, क्योंकि आपने उसके लिए अपने भीतर कोई जगह नहीं बनाई। मुफ्त में मिलने वाला भोजन कई बार आधा छोड़ दिया जाता है। लेकिन जब वही भोजन हम अपनी मेहनत से खरीदते हैं, तो उसे व्यर्थ नहीं जाने देते।
ज्योतिषी ग्रहों की गणना के माध्यम से कर्मों का दर्शन कराकर उपाय बताते हैं। ग्रह हमारे कर्मों की दिशा बताते हैं पर परिवर्तन तभी आता है जब व्यक्ति स्वेच्छा से उपाय को अपनाए। मुफ्त सलाह सुनने वाला व्यक्ति प्रायः उसे जांचने के भाव से सुनता है, उस पर श्रद्धा, ध्यान और अनुपालन नहीं करता और इसलिए ग्रहों की शुभ शक्ति उसके भीतर सक्रिय नहीं हो पाती।
जब हम किसी चीज़ के लिए परिश्रम या मूल्य चुकाते हैं, तो हमारा मन उसमें निवेश कर देता है। जैसे आपने किसी पुस्तक को मेहनत से खरीदा, तो आप उसे ध्यान से पढ़ेंगे, उसकी बातें याद रखेंगे, क्योंकि उसमें आपका योगदान है। लेकिन वही पुस्तक अगर किसी ने मुफ्त में दे दी, तो अक्सर वह घर के किसी कोने में पड़ी रहती है। जब व्यक्ति अपने श्रम या धन से कुछ प्राप्त करता है, तो उसका मन कहता है, ‘यह मेरा है, मुझे इसे सार्थक बनाना है।’ इसलिए ज्ञानीजन कहते हैं कि, ‘जब तक तुम अपने मन, श्रम या धन से कुछ दोगे नहीं, तब तक ज्ञान तुम्हारे जीवन में जड़ नहीं पकड़ेगा।’
ज्ञान तभी फल देता है जब उसे पाने वाला श्रद्धा से ग्रहण करता है। जो व्यक्ति बिना आदर या समर्पण के ज्ञान सुनता है, वह उसे केवल सूचना समझकर भूल जाता है। कहा जाता है कि जो चीज मुफ्त में मिलती है, वह आपके हृदय में नहीं उतरती, क्योंकि आपने उसके लिए अपने भीतर कोई जगह नहीं बनाई। मुफ्त में मिलने वाला भोजन कई बार आधा छोड़ दिया जाता है। लेकिन जब वही भोजन हम अपनी मेहनत से खरीदते हैं, तो उसे व्यर्थ नहीं जाने देते।
ज्योतिषी ग्रहों की गणना के माध्यम से कर्मों का दर्शन कराकर उपाय बताते हैं। ग्रह हमारे कर्मों की दिशा बताते हैं पर परिवर्तन तभी आता है जब व्यक्ति स्वेच्छा से उपाय को अपनाए। मुफ्त सलाह सुनने वाला व्यक्ति प्रायः उसे जांचने के भाव से सुनता है, उस पर श्रद्धा, ध्यान और अनुपालन नहीं करता और इसलिए ग्रहों की शुभ शक्ति उसके भीतर सक्रिय नहीं हो पाती।
You may also like

45 साल बाद सहारनपुर की 'इंदिरा कॉलोनी' अवैध, 300 मकानों पर बुलडोजर का साया

दिल वही ले जाएगा, जो सड़क नियम अपनाएगा... दिल्ली पुलिस की इस क्रिएटिविटी का कोई जवाब नहीं

नोएडा: फर्जी दस्तावेजों से बैंक खाते खुलवाकर साइबर अपराधियों को बेचने वाले गिरोह के चार सदस्य गिरफ्तार

Model Sexy Video : इस मॉडल ने एयरपोर्ट पर ही उतारने शुरू किए कपड़े, वीडियो वायरल होने पर बवाल

ऋचा घोष: बंगाल सरकार ने बंग भूषण पुरस्कार और डीएसपी पद से नवाजा, कैब ने भेंट किया सोने का बल्ला




