दिवाली और छठ और इनके बीच I.N.D.I.A ब्लॉक में सीटों के बंटवारे में हुई देरी के कारण इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में माहौल धीमा है। राजनीतिक दलों से ज्यादा पोस्टर चुनाव आयोग के नजर आते हैं।
बदलाव लेकिन निरंतरता: भोजपुर, पटना, वैशाली, समस्तीपुर और नालंदा के गांवों में घूमने पर पता चला कि बिहार की राजनीति में सामाजिक निरंतरता है। मुस्लिम और यादव I.N.D.I.A ब्लॉक के साथ, जबकि ज्यादातर गैर-यादव ओबीसी और अति पिछड़े वर्ग का एक समूह NDA के साथ है। दलित बंटे हुए दिख रहे। चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और ‘घुसपैठिया’ और ‘वोट चोर’ जैसे मुद्दों ने ग्रामीण इलाकों में भी घुसपैठ कर ली है।
सड़कों पर गर्व: ड्राइवर सिकंदर कुमार कहते हैं, ‘एक वक्त था, जब हम दूसरे राज्यों में जाकर वहां की सड़कों को देखकर कहते थे - क्या बढ़िया रोड है। अब लोग बिहार आकर यही बात कहते हैं।’ एक्सप्रेसवे और सड़कों के जाल ने यहां जीवन को आसान बना दिया है। व्यापार बढ़ रहा है। ओबीसी सिकंदर राज्य में बने फ्लाईओवर, बैंक्वेट हॉल और बढ़ते रियल एस्टेट कारोबार के बारे में बताते हैं।
दो कहानियां: समस्तीपुर के ताजपुर बाजार में मिले मोहम्मद अमीन मानते हैं कि सड़कें सुधरी हैं, लेकिन उनकी नजर में असल मुद्दा वोट चोरी, EVM घोटाला और वक्फ संशोधन एक्ट ही है। उन्हें राहुल गांधी पसंद हैं। वह RJD को वोट देंगे, लेकिन इसका मलाल है कि AIMIM ने उनके इलाके मोरवा से उम्मीदवार नहीं उतारा। इन दोनों ड्राइवरों से बात करके लगता है कि दोनों दो अलग राज्यों में रहते हैं।
एक और मरीन ड्राइव: पटना में गंगा नदी के किनारे 20 किमी लंबी सड़क है। इसका असली नाम है जेपी गंगा पथ, लेकिन पटना में हर कोई इसे ‘मरीन ड्राइव’ कहता है। दशकों से बिहार के लोग रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई जा रहे हैं, जहां असली मरीन ड्राइव है। अब पटना की यह सड़क उनके गौरव, आकांक्षा और सपनों का प्रतीक बन गई है। यहां देर रात तक लड़के-लड़कियां बैठे रहते हैं। यह इस बात का संकेत भी है कि अब राज्य में कानून-व्यवस्था पहले से बेहतर है।
बदलती सोच: कुछ युवा वकील, सरकारी कर्मचारी और व्यापारी एक जगह बैठकर राजनीति की बात कर रहे हैं। इनमें से तीन ने RJD को वोट देने का मन बनाया है। उनका कहना है कि बेरोजगारी बढ़ रही है और नीतीश कुमार थके लग रहे हैं। ऐसे में अब तेजस्वी यादव को मौका मिलना चाहिए। दिलचस्प बात है कि ये युवा ऊंची जातियों से हैं, जो दिखाता है कि शहरी वोटरों की सोच बदल रही है।
शहर बनाम गांव: इन लोगों को ‘जंगलराज’ की याद नहीं, जिसका जिक्र BJP नेता हर भाषण में करते हैं। इनका कहना है कि समय बदल चुका है, अब जंगलराज की वापसी नहीं हो सकती। ग्रामीण इलाकों में तस्वीर दूसरी है। गैर-यादव ओबीसी बिरादरियों, अति पिछड़ा वर्ग और उनमें भी महिलाओं को नीतीश राज में आत्मविश्वास मिला है। ये लोग NDA की वापसी चाहते हैं।
महिलाओं का समर्थन: सितंबर के आखिर में पीएम नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का ऐलान किया। इसके तहत करीब सवा करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये ट्रांसफर किए गए। बिहार में करीब 3.5 करोड़ महिला वोटर हैं। अपने शासनकाल में नीतीश ने शराबबंदी जैसी योजनाओं के माध्यम से महिलाओं के बीच अच्छी छवि बनाई है।
योजना का असर: स्थानीय लोगों का कहना है कि त्योहारों के पहले 10 हजार मिलना ग्रामीण इलाकों में बहुत बड़ी बात है। पटना के एक दुकानदार ने बताया कि योजना घोषित होने के बाद उसके यहां लोग मिक्सी, रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन के बारे में पूछने लगे। दो लाभार्थी महिलाओं ने बताया कि इस पैसे से उनके पतियों ने अपनी छोटी दुकानें शुरू कर दीं। यह योजना सत्ता विरोधी लहर के खिलाफ NDA के पक्ष में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
पीके फैक्टर: राज्य के दूर-दराज के इलाकों में भी प्रशांत किशोर का नाम परिचित है। उनकी बातें लोग पसंद कर रहे हैं, खासकर शहरी इलाकों में। हालांकि इसके बाद भी जन सुराज को वोट देने का इरादा नहीं है। कई ने कहा - ‘पीके अच्छे हैं, अच्छा बोलते हैं, लेकिन अभी आए हैं। अगली बार देखेंगे।’ असल में, जब तक कोई उम्मीदवार टॉप 2 की लड़ाई में न हो, वोटर्स उसे नजरअंदाज करते हैं
बदलाव लेकिन निरंतरता: भोजपुर, पटना, वैशाली, समस्तीपुर और नालंदा के गांवों में घूमने पर पता चला कि बिहार की राजनीति में सामाजिक निरंतरता है। मुस्लिम और यादव I.N.D.I.A ब्लॉक के साथ, जबकि ज्यादातर गैर-यादव ओबीसी और अति पिछड़े वर्ग का एक समूह NDA के साथ है। दलित बंटे हुए दिख रहे। चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी और ‘घुसपैठिया’ और ‘वोट चोर’ जैसे मुद्दों ने ग्रामीण इलाकों में भी घुसपैठ कर ली है।
सड़कों पर गर्व: ड्राइवर सिकंदर कुमार कहते हैं, ‘एक वक्त था, जब हम दूसरे राज्यों में जाकर वहां की सड़कों को देखकर कहते थे - क्या बढ़िया रोड है। अब लोग बिहार आकर यही बात कहते हैं।’ एक्सप्रेसवे और सड़कों के जाल ने यहां जीवन को आसान बना दिया है। व्यापार बढ़ रहा है। ओबीसी सिकंदर राज्य में बने फ्लाईओवर, बैंक्वेट हॉल और बढ़ते रियल एस्टेट कारोबार के बारे में बताते हैं।
दो कहानियां: समस्तीपुर के ताजपुर बाजार में मिले मोहम्मद अमीन मानते हैं कि सड़कें सुधरी हैं, लेकिन उनकी नजर में असल मुद्दा वोट चोरी, EVM घोटाला और वक्फ संशोधन एक्ट ही है। उन्हें राहुल गांधी पसंद हैं। वह RJD को वोट देंगे, लेकिन इसका मलाल है कि AIMIM ने उनके इलाके मोरवा से उम्मीदवार नहीं उतारा। इन दोनों ड्राइवरों से बात करके लगता है कि दोनों दो अलग राज्यों में रहते हैं।
एक और मरीन ड्राइव: पटना में गंगा नदी के किनारे 20 किमी लंबी सड़क है। इसका असली नाम है जेपी गंगा पथ, लेकिन पटना में हर कोई इसे ‘मरीन ड्राइव’ कहता है। दशकों से बिहार के लोग रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई जा रहे हैं, जहां असली मरीन ड्राइव है। अब पटना की यह सड़क उनके गौरव, आकांक्षा और सपनों का प्रतीक बन गई है। यहां देर रात तक लड़के-लड़कियां बैठे रहते हैं। यह इस बात का संकेत भी है कि अब राज्य में कानून-व्यवस्था पहले से बेहतर है।
बदलती सोच: कुछ युवा वकील, सरकारी कर्मचारी और व्यापारी एक जगह बैठकर राजनीति की बात कर रहे हैं। इनमें से तीन ने RJD को वोट देने का मन बनाया है। उनका कहना है कि बेरोजगारी बढ़ रही है और नीतीश कुमार थके लग रहे हैं। ऐसे में अब तेजस्वी यादव को मौका मिलना चाहिए। दिलचस्प बात है कि ये युवा ऊंची जातियों से हैं, जो दिखाता है कि शहरी वोटरों की सोच बदल रही है।
शहर बनाम गांव: इन लोगों को ‘जंगलराज’ की याद नहीं, जिसका जिक्र BJP नेता हर भाषण में करते हैं। इनका कहना है कि समय बदल चुका है, अब जंगलराज की वापसी नहीं हो सकती। ग्रामीण इलाकों में तस्वीर दूसरी है। गैर-यादव ओबीसी बिरादरियों, अति पिछड़ा वर्ग और उनमें भी महिलाओं को नीतीश राज में आत्मविश्वास मिला है। ये लोग NDA की वापसी चाहते हैं।
महिलाओं का समर्थन: सितंबर के आखिर में पीएम नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का ऐलान किया। इसके तहत करीब सवा करोड़ महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये ट्रांसफर किए गए। बिहार में करीब 3.5 करोड़ महिला वोटर हैं। अपने शासनकाल में नीतीश ने शराबबंदी जैसी योजनाओं के माध्यम से महिलाओं के बीच अच्छी छवि बनाई है।
योजना का असर: स्थानीय लोगों का कहना है कि त्योहारों के पहले 10 हजार मिलना ग्रामीण इलाकों में बहुत बड़ी बात है। पटना के एक दुकानदार ने बताया कि योजना घोषित होने के बाद उसके यहां लोग मिक्सी, रेफ्रिजरेटर और वॉशिंग मशीन के बारे में पूछने लगे। दो लाभार्थी महिलाओं ने बताया कि इस पैसे से उनके पतियों ने अपनी छोटी दुकानें शुरू कर दीं। यह योजना सत्ता विरोधी लहर के खिलाफ NDA के पक्ष में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
पीके फैक्टर: राज्य के दूर-दराज के इलाकों में भी प्रशांत किशोर का नाम परिचित है। उनकी बातें लोग पसंद कर रहे हैं, खासकर शहरी इलाकों में। हालांकि इसके बाद भी जन सुराज को वोट देने का इरादा नहीं है। कई ने कहा - ‘पीके अच्छे हैं, अच्छा बोलते हैं, लेकिन अभी आए हैं। अगली बार देखेंगे।’ असल में, जब तक कोई उम्मीदवार टॉप 2 की लड़ाई में न हो, वोटर्स उसे नजरअंदाज करते हैं
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