नई दिल्ली : अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर अमेरिका, चीन, पाकिस्तान सब नजरें गड़ाए हुए हैं। एक ओर जहां अमेरिका इस एयरबेस को फिर से वापस चाहता है। वहीं, इस एयरबेस से चीन के परमाणु प्रयोगशाला की भी दूरी भी बेहद कम है। यहां से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) और बलूचिस्तान की भी दूरी बेहद कम है। इसके अलावा, यहां से पूरे मध्य एशिया के लिए एक रास्ता भी खुलता है। हाल ही में सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान तालिबान के इस एयरबेस को भारत को सौंपने की खबर भी खूब चली। हालांकि, इस खबर का खुद अफगानिस्तान सरकार के अधिकारियों ने भी आधारहीन बताया है। इस तरह का कोई प्रस्ताव तालिबान ने भारत को नहीं दिया है और न ही भारत ने खुद ऐसी इच्छा जताई है। अब डिफेंस एक्सपर्ट से जानते हैं कि भारत के लिए बगराम कितना बड़ा अवसर है? क्या बगराम एयरबेस को हासिल करने के लिए कोई पहल होनी चाहिए?
2 हजार किलोमीटर दूर चीन की परमाणु प्रयोगशाला
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, बगराम एयरबेस से चीन की सबसे नजदीकी परमाणु प्रयोगशाला 2 हजार किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम चीन में 'लोप नूर' नाम के क्षेत्र में है। सड़क या अन्य मार्ग से यह दूरी कई घंटों की हो सकती है। हालांकि, लॉकहीड एसआर- 71 ब्लैकबर्ड जैसे आधुनिक सैन्य विमान इस फासले को लगभग एक घंटे में पूरा कर सकते हैं।
कहां है बगराम, किसने बनवाया था इतनाा बड़ा सैन्य अड्डा
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बगराम एयरबेस काबुल के उत्तर में 60 किलोमीटर दूर परवान प्रांत में स्थित है। इसे सबसे पहले 1950 के दशक में सोवियत संघ ने बनाया था और 1980 के दशक में अफगानिस्तान पर कब्जे के दौरान यह उनका मुख्य सैन्य अड्डा बन गया। साल 2001 में जब अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से हटाया तो उसने इस अड्डे पर नियंत्रण कर लिया।
अमेरिका का सबसे बड़ा एयरबेस था बगराम
रिपोर्ट के अनुसार, जब अमेरिका बगराम में आया, तब तत्कालीन बगराम खंडहर में तब्दील हो चुका था, लेकिन अमेरिकी सेना ने इसे फिर से बनाया जो कि करीब 77 वर्ग किलोमीटर तक फैला है। बगराम अमेरिका का सबसे बड़ा और दुनिया के सबसे मजबूत एयरबेस में से एक था जो कंक्रीट और स्टील से बना हुआ है।
बगराम इतना बड़ा कि 10 हजार सैनिक रह सकते हैं
डिफेंस एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, बगराम कई किलोमीटर लंबी मजबूत दीवारों से घिरा हुआ है। इसके आसपास का क्षेत्र सुरक्षित था और कोई भी बाहरी शख्स इसके अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था। यहां इतने बैरक और क्वार्टर्स हैं कि एक समय में यहां 10 हजार से अधिक सैनिक रह सकते हैं। पिछले तीन सालों से बगराम एयरबेस पर तालिबान की सेनाएं अमेरिकी सैनिकों के छोड़े गए सैन्य साज़ो-सामान का इस्तेमाल करते हुए सैनिक परेड और दूसरे समारोह आयोजित कर रही हैं।
अमेरिका क्यों चाहता है बगराम एयरबेस
जेएस सोढ़ी के अनुसार, बगराम के दो रनवे में से एक ढाई किलोमीटर से अधिक लंबा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपनी ब्रिटेन की यात्रा के दौरान कहा था-बगराम दुनिया के सबसे बड़े एयरबेस में से एक है और हमने इसे वापस दे दिया। अब हम इस अड्डे को फिर से पाना चाहते हैं, क्योंकि यह उस जगह से महज एक घंटे की दूरी पर है जहां चीन अपने परमाणु हथियार बनाता है। इसके बाद से ही विवाद पैदा हो गया था। जब अमेरिकी सेना ने एयरबेस छोड़ा तो वहां बड़े पैमाने पर सैन्य उपकरण, सैनिक वाहन, गोला बारूद रह गए थे।
मध्य एशिया पर दबदबा चाहता है अमेरिका
एयर कैल्कुलेटर वेबसाइट के अनुसार, इस एयरबेस से ईरान की राजधानी तेहरान की हवाई दूरी भी लगभग 1644 किलोमीटर है, जिसके साथ परमाणु कार्यक्रम को लेकर अभी अमेरिका और पश्चिमी देशों की तनातनी चरम पर है। कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि यह एयरबेस मध्य एशिया में अमेरिकी हवाई दबदबे के लिए भी अहम है, यही वजह है कि अमेरिका इसे फिर से पाना चाहता है।
भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है बगराम
जेएस सोढ़ी के अनुसार, ताजिकिस्तान के आयनी एयरबेस जाने के बाद भारत के लिए बगराम एयरबेस बेहद महत्वपूर्ण है। भारत को एक तो मध्य एशिया में अपनी पकड़ मजबूत रखनी चाहिए, क्योंकि एक तरफ ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत का निवेश है। वहीं, दूसरी ओर भारत को पीओके और बलूचिस्तान में अत्याचार करने वाले पाकिस्तान की किसी भी नापाक हरकत का फौरी जवाब देने में मदद भी मिलेगी। हालांकि, पाकिस्तान को यह डर हमेशा बना रहेगा कि उसके अफगानिस्तान की तरफ भारत जैसा बड़ा खतरा मौजूद है।
बगराम के मामले में आक्रामक रणनीति अपनाए भारत
जेएस सोढ़ी के अनुसार, भारत को इस मामले में आक्रामक रणनीति अपनानी चाहिए, क्योंकि बगराम में अगर कोई दूसरा आता है तो वह भारत के लिए और इस पूरे क्षेत्र के लिए सिरदर्द ही साबित होगा। वैसे भी भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण कामों में शामिल रहा है। ऐसे में रणनीतिक रूप से अहम बगराम को भी लेने की कोशिश होनी चाहिए। भारत को चाहिए कि उसे तालिबान से यह एयरबेस हासिल कर लेना चाहिए। वैसे भी भारत के अफगानिस्तान तालिबान से बेहतर संबंध हैं। हाल ही में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने भारत की यात्रा की थी। इसके बाद से ही दोनों देशों के रिश्तों ने नई उड़ान भरी है।
तालिबान शासन भारत में करेगा राजनयिक की नियुक्ति
अफगानिस्तान ने इस बीच एक बड़ा फैसला लिया है। जल्द ही अफगानिस्तान के तालिबान शासन की ओर से भारत में एक राजनयिक की भी नियुक्ति होने वाली है। माना जा रहा है कि इस कदम से दोनों देशों के रिश्ते और अधिक गहरे होंगे। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2025 या जनवरी 2026 की शुरुआत में इस राजनयिक के बाद एक और राजनयिक नियुक्त किया जाएगा। इस बात की जानकारी काबुल ने भारतीय अधिकारियों को दी है।
2 हजार किलोमीटर दूर चीन की परमाणु प्रयोगशाला
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, बगराम एयरबेस से चीन की सबसे नजदीकी परमाणु प्रयोगशाला 2 हजार किलोमीटर की दूरी पर उत्तर पश्चिम चीन में 'लोप नूर' नाम के क्षेत्र में है। सड़क या अन्य मार्ग से यह दूरी कई घंटों की हो सकती है। हालांकि, लॉकहीड एसआर- 71 ब्लैकबर्ड जैसे आधुनिक सैन्य विमान इस फासले को लगभग एक घंटे में पूरा कर सकते हैं।
🚨🇺🇸 Vs 🇨🇳 भारत के पड़ोस में
— Madhurendra kumar मधुरेन्द्र कुमार (@Madhurendra13) September 19, 2025
अमेरिका और चीन के जिओ पॉलिटिकल बैटल का एक और नया ग्राउंड ओपन है, और वह है #Afghanistan .
📍 बगराम एयरबेस की ये तस्वीरें इतिहास में दर्ज हैं जब तालिबान की एंट्री के साथ हीं अमेरिका को बोरिया बिस्तर समेटकर भागना पड़ा था।
📍अब #Trump कह रहे हैं की… pic.twitter.com/7UtIvnqe3R
कहां है बगराम, किसने बनवाया था इतनाा बड़ा सैन्य अड्डा
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बगराम एयरबेस काबुल के उत्तर में 60 किलोमीटर दूर परवान प्रांत में स्थित है। इसे सबसे पहले 1950 के दशक में सोवियत संघ ने बनाया था और 1980 के दशक में अफगानिस्तान पर कब्जे के दौरान यह उनका मुख्य सैन्य अड्डा बन गया। साल 2001 में जब अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से हटाया तो उसने इस अड्डे पर नियंत्रण कर लिया।
US asked Bagram Airbase from Afghanistan. Taliban put an 🇺🇸 Humvee with a Talib flag atop the base as a victory trophy. Symbolism level: 💯% 😂🎯 pic.twitter.com/Up4zCloBHT
— Megh Updates 🚨™ (@MeghUpdates) October 14, 2025
अमेरिका का सबसे बड़ा एयरबेस था बगराम
रिपोर्ट के अनुसार, जब अमेरिका बगराम में आया, तब तत्कालीन बगराम खंडहर में तब्दील हो चुका था, लेकिन अमेरिकी सेना ने इसे फिर से बनाया जो कि करीब 77 वर्ग किलोमीटर तक फैला है। बगराम अमेरिका का सबसे बड़ा और दुनिया के सबसे मजबूत एयरबेस में से एक था जो कंक्रीट और स्टील से बना हुआ है।
बगराम इतना बड़ा कि 10 हजार सैनिक रह सकते हैं
डिफेंस एनालिस्ट लेफ्टिनेंट कर्नल (रि.) जेएस सोढ़ी के अनुसार, बगराम कई किलोमीटर लंबी मजबूत दीवारों से घिरा हुआ है। इसके आसपास का क्षेत्र सुरक्षित था और कोई भी बाहरी शख्स इसके अंदर प्रवेश नहीं कर सकता था। यहां इतने बैरक और क्वार्टर्स हैं कि एक समय में यहां 10 हजार से अधिक सैनिक रह सकते हैं। पिछले तीन सालों से बगराम एयरबेस पर तालिबान की सेनाएं अमेरिकी सैनिकों के छोड़े गए सैन्य साज़ो-सामान का इस्तेमाल करते हुए सैनिक परेड और दूसरे समारोह आयोजित कर रही हैं।
अमेरिका क्यों चाहता है बगराम एयरबेस
जेएस सोढ़ी के अनुसार, बगराम के दो रनवे में से एक ढाई किलोमीटर से अधिक लंबा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपनी ब्रिटेन की यात्रा के दौरान कहा था-बगराम दुनिया के सबसे बड़े एयरबेस में से एक है और हमने इसे वापस दे दिया। अब हम इस अड्डे को फिर से पाना चाहते हैं, क्योंकि यह उस जगह से महज एक घंटे की दूरी पर है जहां चीन अपने परमाणु हथियार बनाता है। इसके बाद से ही विवाद पैदा हो गया था। जब अमेरिकी सेना ने एयरबेस छोड़ा तो वहां बड़े पैमाने पर सैन्य उपकरण, सैनिक वाहन, गोला बारूद रह गए थे।
मध्य एशिया पर दबदबा चाहता है अमेरिका
एयर कैल्कुलेटर वेबसाइट के अनुसार, इस एयरबेस से ईरान की राजधानी तेहरान की हवाई दूरी भी लगभग 1644 किलोमीटर है, जिसके साथ परमाणु कार्यक्रम को लेकर अभी अमेरिका और पश्चिमी देशों की तनातनी चरम पर है। कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि यह एयरबेस मध्य एशिया में अमेरिकी हवाई दबदबे के लिए भी अहम है, यही वजह है कि अमेरिका इसे फिर से पाना चाहता है।
भारत के लिए कितना महत्वपूर्ण है बगराम
जेएस सोढ़ी के अनुसार, ताजिकिस्तान के आयनी एयरबेस जाने के बाद भारत के लिए बगराम एयरबेस बेहद महत्वपूर्ण है। भारत को एक तो मध्य एशिया में अपनी पकड़ मजबूत रखनी चाहिए, क्योंकि एक तरफ ईरान के चाबहार बंदरगाह में भारत का निवेश है। वहीं, दूसरी ओर भारत को पीओके और बलूचिस्तान में अत्याचार करने वाले पाकिस्तान की किसी भी नापाक हरकत का फौरी जवाब देने में मदद भी मिलेगी। हालांकि, पाकिस्तान को यह डर हमेशा बना रहेगा कि उसके अफगानिस्तान की तरफ भारत जैसा बड़ा खतरा मौजूद है।
बगराम के मामले में आक्रामक रणनीति अपनाए भारत
जेएस सोढ़ी के अनुसार, भारत को इस मामले में आक्रामक रणनीति अपनानी चाहिए, क्योंकि बगराम में अगर कोई दूसरा आता है तो वह भारत के लिए और इस पूरे क्षेत्र के लिए सिरदर्द ही साबित होगा। वैसे भी भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण कामों में शामिल रहा है। ऐसे में रणनीतिक रूप से अहम बगराम को भी लेने की कोशिश होनी चाहिए। भारत को चाहिए कि उसे तालिबान से यह एयरबेस हासिल कर लेना चाहिए। वैसे भी भारत के अफगानिस्तान तालिबान से बेहतर संबंध हैं। हाल ही में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी ने भारत की यात्रा की थी। इसके बाद से ही दोनों देशों के रिश्तों ने नई उड़ान भरी है।
तालिबान शासन भारत में करेगा राजनयिक की नियुक्ति
अफगानिस्तान ने इस बीच एक बड़ा फैसला लिया है। जल्द ही अफगानिस्तान के तालिबान शासन की ओर से भारत में एक राजनयिक की भी नियुक्ति होने वाली है। माना जा रहा है कि इस कदम से दोनों देशों के रिश्ते और अधिक गहरे होंगे। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2025 या जनवरी 2026 की शुरुआत में इस राजनयिक के बाद एक और राजनयिक नियुक्त किया जाएगा। इस बात की जानकारी काबुल ने भारतीय अधिकारियों को दी है।
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