Next Story
Newszop

गाल भी पिचकेंगे, पेट भी होगा अंदर, बस जान लें 45 मिनट की वॉक या 15 मिनट की जॉगिंग क्या है असरदार

Send Push

हर कोई चाहता है कि उसकी फिटनेस बेहतर हो, वजन कम हो और दिल की सेहत बनी रहे, लेकिन समय की कमी के कारण लोग सोच में पड़ जाते हैं कि 45 मिनट वॉक करना सही है या 15 मिनट धीमी जॉगिंग? दोनों ही फिजिकल एक्टिविटी के शानदार विकल्प हैं, लेकिन दोनों के फायदे और असर अलग-अलग होते हैं।

जहां वॉकिंग शरीर को धीरे-धीरे एक्टिव करता है और सभी उम्र के लोगों के लिए सुरक्षित माना जाता है, वहीं स्लो जॉगिंग थोड़ा ज्यादा कार्डियो इफेक्ट देती है। ये खास तौर पर उन लोगों के लिए असरदार हो सकती है जो कम समय में अधिक कैलोरी बर्न करना चाहते हैं। लेकिन हर व्यक्ति की बॉडी टाइप, स्वास्थ्य स्थिति और फिटनेस लेवल अलग होता है, इसलिए 'एक फॉर्मूला सभी पर लागू' नहीं हो सकता।

इस लेख में हम वॉकिंग और जॉगिंग के फायदे, सीमाएं, वजन कम करने में इनकी भूमिका, हड्डियों और दिल की सेहत पर असर, और समय के हिसाब से इनकी उपयोगिता पर चर्चा करेंगे। ताकि आप खुद तय कर सकें कि आपके लिए कौन-सी एक्सरसाइज़ ज़्यादा प्रभावी और व्यावहारिक है।(Photo Credit):iStock


वजन घटाने में कौन ज़्यादा असरदार image

वजन घटाने के लिए कैलोरी बर्न करना ज़रूरी होता है। 45 मिनट की तेज़ वॉक करीब 150-200 कैलोरी बर्न करती है, वहीं 15 मिनट की स्लो जॉगिंग लगभग 120-180 कैलोरी तक जला सकती है। अगर आपके पास समय कम है, तो जॉगिंग एक अच्छा विकल्प हो सकता है। लेकिन शुरुआत में बहुत तेज़ जॉगिंग करने से चोट या थकान हो सकती है। वहीं वॉकिंग धीरे-धीरे शरीर को मोड में लाती है और इसे लंबे समय तक किया जा सकता है। इसलिए यदि निरंतरता बनाए रखना चाहते हैं, तो वॉकिंग एक सस्टेनेबल विकल्प बन सकता है।


दिल और सांस की सेहत पर किसका असर image

स्लो जॉगिंग हार्ट रेट को जल्दी बढ़ाती है, जिससे कार्डियोवस्कुलर सिस्टम को ज़्यादा एक्टिवेशन मिलता है। यह हार्ट स्ट्रेंथ, ब्लड सर्कुलेशन और फेफड़ों की क्षमता को बेहतर बनाती है। दूसरी तरफ, वॉकिंग धीरे-धीरे दिल की बीट बढ़ाती है और तनाव को कम करने में मदद करती है। जिन लोगों को हाई बीपी या हृदय संबंधी समस्या है, उनके लिए वॉकिंग ज्यादा सुरक्षित होती है। अगर आप हार्ट हेल्थ को प्राथमिकता देते हैं और आपकी उम्र 40 से ऊपर है, तो तेज़ वॉकिंग को आदत में शामिल करना ज़्यादा बेहतर होगा।


जोड़ों और हड्डियों पर असर image

स्लो जॉगिंग जहां मांसपेशियों को मजबूत बनाती है, वहीं घुटनों और टखनों पर ज़्यादा दबाव डाल सकती है, खासकर उन लोगों के लिए जिनका वजन ज़्यादा है या जिनकी हड्डियाँ कमजोर हैं। वॉकिंग लो-इम्पैक्ट एक्सरसाइज़ मानी जाती है, जिससे जोड़ों पर दबाव नहीं पड़ता। बुज़ुर्ग, मोटापे से परेशान लोग या घुटनों की तकलीफ वाले व्यक्तियों को वॉकिंग ज़्यादा लाभदायक हो सकती है। जॉगिंग शुरू करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना बेहतर रहता है ताकि आप शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना फिट रह सकें।


समय की कमी में बेहतर विकल्प image

आजकल की व्यस्त दिनचर्या में फिटनेस के लिए समय निकालना चुनौती बन गया है। ऐसे में 15 मिनट की स्लो जॉगिंग तेज़ रिज़ल्ट देने का वादा करती है, लेकिन इसे नियमित रूप से करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। वहीं वॉकिंग को सुबह या शाम कहीं भी शामिल किया जा सकता है—ऑफिस में ब्रेक के दौरान या घर के पास पार्क में। अगर आप ज़्यादा समय नहीं निकाल सकते, फिर भी फिट रहना चाहते हैं, तो वॉकिंग को दिनचर्या में बाँटना भी एक असरदार तरीका हो सकता है।


मानसिक स्वास्थ्य पर असर image

शारीरिक फिटनेस के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना भी ज़रूरी है। वॉकिंग आपको प्रकृति के करीब लाती है, स्ट्रेस कम करती है और दिमाग को शांत करती है। यह खासतौर पर उन लोगों के लिए अच्छी है जो चिंता या डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। दूसरी ओर, स्लो जॉगिंग एंडोर्फिन हार्मोन रिलीज़ करती है, जिसे 'हैप्पी हार्मोन' भी कहा जाता है। यह आपको मोटिवेटेड और एनर्जेटिक बनाता है। यानी मानसिक रूप से तरोताजा रहने के लिए दोनों ही विकल्प फायदेमंद हैं, बस आपके मूड और समय के अनुसार चुनाव करना ज़रूरी है।

डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें। एनबीटी इसकी सत्यता, सटीकता और असर की जिम्मेदारी नहीं लेता है।

Loving Newspoint? Download the app now