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भारत के लिए बड़ा मौका

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एपल का प्लान कि अमेरिका में बिकने वाला हर आईफोन भारत में बना हो, मेक इन इंडिया के लिए एक बड़ा मौका है। लेकिन ग्लोबल सप्लाई चेन में चीन की जगह लेने के लिए भारत को बहुत कुछ करना होगा, जिसका मौका डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर की वजह से उसे मिला है।क्षमता बढ़ानी होगी । भारत में आईफोन की कहानी बड़ी कारोबारी सफलताओं में से एक रही है। इस साल अभी तक भारत ने एपल के लिए 25-30% आईफोन बनाए हैं, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 18% था। यह तरक्की बढ़िया खबर है, लेकिन एक सच यह भी है कि भारत में जितना प्रॉडक्शन हो पाता है, अमेरिका में आईफोन का बाजार उससे कहीं बड़ा है। 2024 में अमेरिका में 7.59 करोड़ आईफोन बिके थे, जबकि इस साल मार्च में भारत से 31 लाख यूनिट वहां भेजी गई थीं। यानी एपल के चीफ टिम कुक की प्लानिंग के हिसाब से अगर भारत को पूरे अमेरिका की मांग को पूरा करना है, तो मैन्युफैक्चरिंग कैपेसिटी को बढ़ाना होगा। अच्छी बात यह है कि तमिलनाडु के होसुर और बेंगलुरु में दो नई फैसिलिटी तैयार हैं और इनके जल्द शुरू होने की उम्मीद है।इस बार चूक न हो । भारत के पास कुछ साल पहले भी ऐसा मौका आया था - कोरोना, 2018 के ट्रंप के चीन के साथ ट्रेड वॉर और दक्षिण चीन सागर में उभरते तनाव के मद्देनजर जब दुनिया चीन प्लस वन ऑप्शन की तलाश कर रही थी। उस समय वियतनाम जैसे देशों ने बाजी मार ली थी। उसे कम कॉरपोरेट टैक्स रेट, निवेश में आसानी और सस्ते श्रम का फायदा मिला।पक्ष में माहौल । मौजूदा टैरिफ वॉर से भारत को जो मौका मिला है, उसे हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए। खासकर यह देखते हुए कि दुनिया का कारोबारी माहौल उसके पक्ष में है। कोरोना के वक्त से अमेरिकी कंपनियों पर चीन से बाहर निकलने का जो दबाव था, वह हाल में ट्रंप के टैरिफ वॉर से और बढ़ गया है। ट्रंप प्रशासन ने चीन पर 245%, जबकि भारत पर 26% का आयात शुल्क लगाया है, और इसे भी फिलहाल 90 दिनों के लिए टाल रखा है। एपल की भारत में दिलचस्पी की बड़ी वजह यही है। फिर PLI जैसी सरकारी योजनाओं ने भारत में उत्पादन को सस्ता बना दिया है। कारोबारी हैसियत बढ़ेगी । इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग में भारत की हिस्सेदारी 8.4% है और चीन की 76.6%। आईफोन की सफलता वैश्विक स्तर पर भारत की हैसियत बढ़ाएगी और तब इन आंकड़ों को भी बदला जा सकेगा। इस वक्त अमेरिका के साथ ट्रेड डील पर भी बात चल रही है। इसके अंजाम पर पहुंचने से नई दिल्ली के पास अमेरिकी कंपनियों को लुभाने का एक और कारण होगा।
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