भारत आज अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। 1947 से लेकर अब तक - ये 78 बरस उपनिवेश की परछाईं से निकल कर दुनिया में एक अलग हैसियत हासिल करने के सफर की कहानी कहते हैं। एक वक्त जिस देश के बारे में यह भविष्यवाणी की गई थी कि इसका ढहना तय है, वह आज ग्लोबल जियो और इकॉनमिक पॉलिटिक्स का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है - और अभी तो यह सफर बस शुरू ही हुआ है।
आर्थिक उदारीकरण: इन बरसों को कई अहम पड़ावों में बांटा जा सकता है - पहला चुनाव, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, उदारीकरण, पोखरण। हर एक पड़ाव महत्वपूर्ण है और इसने देश को वर्तमान आकार देने में मदद की। लेकिन, प्रभाव के नजरिये से देखा जाए, तो 1990 का दशक बदलाव का सबसे बड़ा वाहक था, जब भारत ने आर्थिक उदारीकरण को अपनाया और तय किया कि इस दुनिया में उसे किस रास्ते पर चलना है।
तरक्की की रफ्तार: भारत के बाजार को खोलने का वह फैसला लिया गया, क्योंकि ऐसी मजबूरी खड़ी हो गई थी। तब देश के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची थी, और आज फॉरेन करंसी रिजर्व के मामले में भारत टॉप 4 में है। आजादी के समय 2.7 लाख करोड़ रुपये वाली जीडीपी अब चार ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बन चुकी है। जिस विशाल आबादी को बोझ समझा जा रहा था, उसी की बदौलत तरक्की की ऐसी रफ्तार मिली, जो कोरोना महामारी और युद्धों के बीच भी थमी नहीं।
आत्मनिर्भर भारत: भारत की विकास यात्रा की कहानी आंकड़े बताते हैं - 6.5% की विकास दर, ग्लोबल GDP ग्रोथ में लगभग 17% का योगदान। देश धीरे-धीरे आयात से आत्मनिर्भरता और निर्यात की ओर बढ़ रहा है। पिछले एक दशक में एक्सपोर्ट में 76% की वृद्धि हुई है, जबकि सर्विस एक्सपोर्ट करीब दोगुना हो गया है। इंजीनियरिंग के सामानों, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाओं या खाने-पीने तक ही नहीं - दूसरे देश अब हथियार भी खरीद रहे हैं भारत से। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत ने 80 देशों को 2.76 बिलियन डॉलर के हथियार बेचे हैं। ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय हथियारों की ताकत दिखाई है और इससे भी एक बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है।
मिशन 2047: भारत के विश्व बंधुत्व, सहयोग, उदारता और सभी से बराबरी के व्यवहार के चलते दुनिया की आकांक्षाएं उससे जुड़ चुकी हैं। सभी वैश्विक मंचों पर नई दिल्ली की बात सुनी जाती है और उसकी राय को सम्मान मिलता है। भारत का रुख दुनिया पर असर डालने वाले भू-राजनीतिक मुद्दों की दिशा तय करने की ताकत रखता है। अब देश के सामने अगला बड़ा लक्ष्य है 2047 तक विकसित मुल्कों की कतार में आना। तमाम मुश्किलों का मिलकर सामना करते हुए भारत जिस तरह यहां तक पहुंचा है, भरोसा है कि वह मंजिल भी उसे जरूर मिलेगी।
आर्थिक उदारीकरण: इन बरसों को कई अहम पड़ावों में बांटा जा सकता है - पहला चुनाव, बैंकों का राष्ट्रीयकरण, उदारीकरण, पोखरण। हर एक पड़ाव महत्वपूर्ण है और इसने देश को वर्तमान आकार देने में मदद की। लेकिन, प्रभाव के नजरिये से देखा जाए, तो 1990 का दशक बदलाव का सबसे बड़ा वाहक था, जब भारत ने आर्थिक उदारीकरण को अपनाया और तय किया कि इस दुनिया में उसे किस रास्ते पर चलना है।
तरक्की की रफ्तार: भारत के बाजार को खोलने का वह फैसला लिया गया, क्योंकि ऐसी मजबूरी खड़ी हो गई थी। तब देश के पास आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं बची थी, और आज फॉरेन करंसी रिजर्व के मामले में भारत टॉप 4 में है। आजादी के समय 2.7 लाख करोड़ रुपये वाली जीडीपी अब चार ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बन चुकी है। जिस विशाल आबादी को बोझ समझा जा रहा था, उसी की बदौलत तरक्की की ऐसी रफ्तार मिली, जो कोरोना महामारी और युद्धों के बीच भी थमी नहीं।
आत्मनिर्भर भारत: भारत की विकास यात्रा की कहानी आंकड़े बताते हैं - 6.5% की विकास दर, ग्लोबल GDP ग्रोथ में लगभग 17% का योगदान। देश धीरे-धीरे आयात से आत्मनिर्भरता और निर्यात की ओर बढ़ रहा है। पिछले एक दशक में एक्सपोर्ट में 76% की वृद्धि हुई है, जबकि सर्विस एक्सपोर्ट करीब दोगुना हो गया है। इंजीनियरिंग के सामानों, इलेक्ट्रॉनिक्स, दवाओं या खाने-पीने तक ही नहीं - दूसरे देश अब हथियार भी खरीद रहे हैं भारत से। पिछले वित्तीय वर्ष में भारत ने 80 देशों को 2.76 बिलियन डॉलर के हथियार बेचे हैं। ऑपरेशन सिंदूर ने भारतीय हथियारों की ताकत दिखाई है और इससे भी एक बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है।
मिशन 2047: भारत के विश्व बंधुत्व, सहयोग, उदारता और सभी से बराबरी के व्यवहार के चलते दुनिया की आकांक्षाएं उससे जुड़ चुकी हैं। सभी वैश्विक मंचों पर नई दिल्ली की बात सुनी जाती है और उसकी राय को सम्मान मिलता है। भारत का रुख दुनिया पर असर डालने वाले भू-राजनीतिक मुद्दों की दिशा तय करने की ताकत रखता है। अब देश के सामने अगला बड़ा लक्ष्य है 2047 तक विकसित मुल्कों की कतार में आना। तमाम मुश्किलों का मिलकर सामना करते हुए भारत जिस तरह यहां तक पहुंचा है, भरोसा है कि वह मंजिल भी उसे जरूर मिलेगी।
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