सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कि डिजिटल सेवाओं तक पहुंच हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, आज के वक्त की जरूरत है। डिजिटल पहुंच जीवन को सिर्फ आसान ही नहीं बनाती, बल्कि जीने के लिए समान अवसर भी देती है। सामाजिक-आर्थिक अंतर को पाटने का एक तरीका यह भी है कि डिजिटल मोर्चे पर सभी को एक जैसे मौके मुहैया कराए जाएं। आर्टिकल 21 का जिक्र: दो एसिड सर्वाइवर्स की वजह से इतना अहम मुद्दा सामने आया। इनमें से एक सर्वाइवर की आंखें नहीं झपकतीं और एक पूरी तरह से नेत्रहीन है। इस वजह से दोनों का बैंक KYC नहीं हो सका। दोनों ने याचिका दायर कर KYC नियमों में बदलाव की मांग की थी। शीर्ष अदालत ने इस केस को बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा और संविधान के आर्टिकल 21 का जिक्र किया, जो सभी को गरिमा के साथ जीने और आजीविका कमाने का अधिकार देता है। KYC की प्रक्रिया बदलेगी: आज लगभग सभी सेवाएं और सुविधाएं डिजिटली मौजूद हैं। अगर शारीरिक दिक्कत की वजह से कोई इन सेवाओं-सुविधाओं से वंचित रह जाता है, तो यह उसके अधिकारों पर चोट है। इसी वजह से कोर्ट ने केंद्र, RBI और सभी संबंधित रेगुलेटरी अथॉरिटी को KYC प्रक्रिया में बदलाव का आदेश दिया है। अभी कहानी अधूरी: चीन के बाद इंटरनेट यूजर्स के मामले में भारत दूसरे नंबर पर है। सरकार के पिछले साल अगस्त में जारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में 95 करोड़ से ज्यादा इंटरनेट सब्सक्राइबर्स थे। इनमें से करीब 39 करोड़ आबादी ग्रामीण थी। सरकारी डेटा के मुताबिक, 95.15% गांवों तक इंटरनेट की पहुंच हो गई थी। ये आंकड़े डिजिटल इंडिया की तरक्की की कहानी कहते हैं, लेकिन यह कहानी तब तक अधूरी है, जब तक इंटरनेट के जरिये लोगों को बदलाव का मौका नहीं मिलता। डिजिटल दूरी: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में जिस डिजिटल डिवाइड की बात की, वह एक बड़ी हकीकत है। डिजिटल सुविधाओं का फायदा उठाने के मामले में भी समाज में एक बड़ी खाई है। टेक्नॉलजी, उससे जुड़ी जानकारी, भाषा - ऐसे तमाम गतिरोध हैं, जो बड़ी आबादी को डिजिटल क्रांति का फायदा लेने से रोकते हैं। शीर्ष अदालत ने इन्हीं परेशानियों को संबोधित किया है। सरकार की जिम्मेदारी: शीर्ष अदालत ने माना कि डिजिटल खाई को पाटना अब केवल नीति का मसला नहीं रहा, यह एक संवैधानिक जरूरत बन चुका है, ताकि हर नागरिक को सम्मानपूर्ण जीवन, स्वायत्तता और सार्वजनिक जीवन में समान भागीदारी मिल सके। अब यहां से सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस मसले पर गंभीरता से आगे बढ़े। टेक्नॉलजी अपने में खुद कभी भेदभाव नहीं करती और उसकी असली ताकत भी इसी में है कि वह सभी को समान रूप से उपलब्ध हो।
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