योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम राहत दी। सर्वोच्च न्यायालय ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा दायर वह याचिका समाप्त कर दी, जिसमें पतंजलि पर एलोपैथी चिकित्सा पद्धति को बदनाम करने और भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने के आरोप लगाए गए थे।
गौरतलब है कि पिछले वर्ष अदालत ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण को इसी मामले में अवमानना कार्यवाही से भी राहत दी थी। अब, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह कहते हुए मामला समाप्त कर दिया कि इस संबंध में पहले ही कई आदेश दिए जा चुके हैं और याचिका का उद्देश्य अब पूरा हो चुका है।
अवमानना कार्यवाही से लेकर केस बंद होने तक
27 फरवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की थी। बाद में अगस्त 2023 में, दोनों द्वारा बिना शर्त माफी मांगने के बाद अदालत ने यह कार्यवाही समाप्त कर दी थी। बेंच ने स्पष्ट किया, “कई बार आदेश जारी होने के बाद अब रिट याचिका का मकसद पूरा हो चुका है। आगे इस पर सुनवाई की आवश्यकता नहीं है। यदि भविष्य में किसी भी पक्ष को समस्या होती है, तो वे उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।” इससे पहले, जुलाई 2023 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने पतंजलि के एक विज्ञापन पर रोक लगाई थी, जो डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक माना गया था। न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने डाबर की याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि यह मामला प्रथम दृष्टया ब्रांड की साख को नुकसान पहुंचाने वाला है।
अदालत ने पतंजलि को निर्देश दिया था कि वह प्रिंट विज्ञापनों से “40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से क्यों संतुष्ट हों?” जैसी पंक्तियां हटाए। इसी तरह, टीवी विज्ञापनों में “जिनको आयुर्वेद या वेदों का ज्ञान नहीं है… मूल च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे” और अंत में आने वाली “तो साधारण च्यवनप्राश क्यों” वाली पंक्तियां हटाने के आदेश भी दिए गए थे।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि आवश्यक संशोधनों के बाद ही पतंजलि को अपने प्रिंट और टीवी विज्ञापन जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।
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