पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की हलचल जैसे-जैसे तेज हो रही है, वैसे-वैसे राज्य के अलग-अलग इलाकों से सियासत को चौंकाने वाली खबरें भी सामने आ रही हैं। इस बार सबसे बड़ी चुनौती किसी पार्टी या प्रत्याशी के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र के सबसे बड़े हथियार मतदान के लिए खड़ी हो रही है। सारण ज़िले के सोनपुर प्रमंडल के सात गांवों के लोगों ने विधानसभा चुनाव 2025 से पहले ही साफ ऐलान कर दिया है कि अगर गंगा के कटाव से उन्हें राहत नहीं मिली, तो इस बार वे वोट नहीं डालेंगे।
गंगा कटाव से जंग, नेताओं से नाराज़गीसोनपुर प्रमंडल के गंगाजल, पहलेजा शाहपुर, नजरमीरा और सबलपुर पंचायतों समेत सात गाँव गंगा नदी के उत्तरी तट पर बसे हैं। लगभग 60 वर्ग किलोमीटर में फैला यह इलाका साढ़े तीन लाख की आबादी और 35 हज़ार से अधिक घरों का घर है। यहां अरबों रुपये की सरकारी और निजी संपत्ति मौजूद है, लेकिन हर साल गंगा का कटाव गांवों को निगल रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि नेता और सरकार सालों से सिर्फ़ आश्वासन देते आए हैं, लेकिन कटाव रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
महिलाओं की चेतावनीइस आंदोलन में गाँव की महिलाएँ भी पूरी ताकत से आगे आई हैं। कई महिलाओं ने साफ शब्दों में कहा कि अगर कोई नेता वोट मांगने उनके दरवाजे तक आया, तो उसे झाड़ू से खदेड़ दिया जाएगा। उनका कहना है कि जब तक रिंग बांध बनने का स्पष्ट ऐलान नहीं होता और बाढ़ व कटाव पीड़ितों को उचित मुआवजा नहीं मिलता, तब तक कोई भी ग्रामीण वोटिंग बूथ तक कदम नहीं रखेगा।
रेलवे बचा, गाँव डूबेग्रामीणों का गुस्सा इस बात पर भी है कि रेलवे ने अपने पिलरों और पुलों को बचाने के लिए रिंग बांध और बोल्डर बैग का सहारा लिया, लेकिन बगल में बसे गांवों को उसी गंगा के कटाव के हवाले छोड़ दिया। लोगों का कहना है कि अगर रेलवे अपनी संपत्ति बचा सकता है, तो सरकारें गांवों को क्यों नहीं बचा पा रहीं?
गुस्से का असर चुनाव परराजनीतिक पंडितों का मानना है कि अगर वास्तव में इन सात गाँवों में वोट बहिष्कार होता है, तो इसका सीधा असर विधानसभा चुनाव के समीकरणों पर पड़ेगा। तीन लाख से ज्यादा की आबादी और हजारों वोट किसी भी उम्मीदवार के जीत-हार का खेल पलट सकते हैं। यही वजह है कि अब तक नेताओं की नजरअंदाजी झेल रहे ये गाँव अचानक से चुनावी केंद्रबिंदु बन गए हैं।
सिर्फ़ वादे, अब तक नतीजा शून्यग्रामीणों का कहना है कि पिछले चुनावों से लेकर आज तक हर नेता उनके दरवाजे पर वोट मांगने तो आया, लेकिन गंगा कटाव पर कोई स्थायी समाधान नहीं दिया। न तो रिंग बांध बना, न ही कटाव पीड़ितों को स्थायी मुआवजा मिला। हर साल बारिश और बाढ़ के मौसम में दर्जनों घर नदी में समा जाते हैं और लोग दर-दर भटकते हैं।
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