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मनोज बाजपेयी की फिल्म 'सत्या': 27 साल बाद भी कायम है जादू

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गैंगस्टर फिल्मों का सफर

बॉलीवुड में गैंगस्टर पर आधारित फिल्में हमेशा से बनी हैं, लेकिन 80 के दशक के अंत में विद्यु विनोद चोपड़ा ने 'परिंदा' नामक एक फिल्म बनाई, जिसने इस शैली को नई दिशा दी। इसके बाद, 1998 में आई 'सत्या' ने गैंगस्टर फिल्मों में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया। इस फिल्म ने भूकू म्हात्रे जैसे यादगार पात्रों को जन्म दिया, जिसे मनोज बाजपेयी ने निभाया। यह फिल्म उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई।


मनोज बाजपेयी की अनोखी कहानी

कम ही लोग जानते हैं कि मनोज बाजपेयी ने 'सत्या' के लिए केवल 1 रुपये में साइन किया था। हाल ही में, निर्देशक हंसल मेहता ने इस बात का खुलासा किया। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि, 'हम देर रात शराब पी रहे थे, तभी मैंने मनोज को साइन किया। मैंने उसे प्रतीक के तौर पर 1 रुपये की फीस दी। अनुराग कश्यप को स्क्रिप्ट लिखने के लिए 15 हजार रुपये दिए, और बाद में उन्हें पूरी स्क्रिप्ट के लिए 75 हजार रुपये मिले।'


सत्या की सफलता

'सत्या' में मनोज बाजपेयी का किरदार बेहद लोकप्रिय हुआ। इस फिल्म में सौरभ शुक्ला और शैफाली शाह भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में थे। 3 जुलाई 1998 को रिलीज हुई इस फिल्म ने 2.5 करोड़ रुपये के बजट में 18 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई की। फिल्म का संगीत विशाल भारद्वाज ने दिया, जबकि गाने गुलजार ने लिखे।


आज भी कायम है सत्या का जादू

'सत्या' आज भी उन गैंगस्टर फिल्मों में से एक है जिसे दर्शक 27 साल बाद भी नहीं भूले हैं। मनोज बाजपेयी का किरदार और सौरभ शुक्ला का कल्लू मामा आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। फिल्म के डायलॉग्स सोशल मीडिया पर अक्सर चर्चा का विषय बनते हैं। हालांकि, रिलीज के समय यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर कोई खास रिकॉर्ड नहीं बना पाई, लेकिन बाद में यह एक कल्ट फिल्म बन गई। नई पीढ़ी के दर्शकों के बीच भी इसकी लोकप्रियता बनी हुई है, और लोग इसके सीक्वल की मांग करते रहते हैं।


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