आज हम जिस डिजिटल दुनिया में जी रहे हैं, उसकी धड़कन सेमीकंडक्टर चिप्स हैं.
मोबाइल फ़ोन से लेकर इंटरनेट, कारों से लेकर मिसाइल और अंतरिक्ष यानों तक हर एडवांस तकनीक का दिमाग़ यही सेमीकंडक्टर चिप्स हैं.
अगर ये सेमीकंडक्टर चिप्स नहीं होंगी, तो हमारी स्मार्ट ज़िंदगी क्षण भर में ब्लैकआउट हो जाएगी.
यही वजह है कि इसे डिजिटल दुनिया का 'सोना' भी कहा जाता है.
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दुनिया भर के देशों में इस सेमीकंडक्टर चिप्स की मार्केट पर कब्ज़ा करने की होड़ मची है.
'विक्रम' 32 बिट प्रोसेसर और चार सेमीकंडक्टर टेस्ट चिप्स बनाकर भारत ने भी इस दिशा में क़दम बढ़ा दिया है.
मंगलवार, 2 सितंबर को केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इन चिप्स को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा.
क्या है 'विक्रम 32'?भारत की पहली पूरी तरह से स्वदेशी 32-बिट माइक्रोप्रोसेसर चिप को सेमीकॉन इंडिया 2025 में लॉन्च किया गया.
यह प्रोसेसर एक बार में 32 बिट्स डेटा प्रोसेस कर सकता है. यह ऐसी माइक्रोप्रोसेसर चिप है, जो बड़े-बड़े डेटा को प्रोसेस करने से लेकर कंट्रोल सिस्टम को चलाने में मददगार साबित होगी.
यह चिप अंतरिक्ष और रक्षा जैसे क्षेत्रों के लिए तैयार की गई है. इसे इसरो के सेमीकंडक्टर लेबोरेटरी में बनाया गया है.
रॉकेट लॉन्च की मुश्किल परिस्थितियों जैसे बहुत अधिक गर्मी, ठंड, कंपन और दबाव को ध्यान में रखकर इसे बनाया गया है.
यह पहले से तैयार स्वदेशी 16 बिट विक्रम 1601 का एडवांस वर्जन है. इसे इसरो के लॉन्च व्हीकल्स के एवियोनिक्स सिस्टम में इस्तेमाल किया गया था.
ख़ास बात यह है कि इस माइक्रोप्रोसेसर चिप को बनाने के लिए सभी सॉफ़्टवेयर टूल्स भारत ने ख़ुद विकसित किए हैं.
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विक्रम 32 बिट प्रोसेसर के साथ चार सेमीकंडक्टर चिप्स भी पीएम मोदी को भेंट की गईं.
वीएलएसआई सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. सत्य गुप्ता का कहना है कि विक्रम 32 के अलावा जो चिप्स दी गईं, वो अभी पायलट चिप्स हैं.
उनका कहना है, "पायलट चिप को प्रोडक्शन में आने में एक से दो साल का समय लग सकता है. ये सभी मेक इन इंडिया चिप्स हैं, जो हमारे लिए गर्व की बात है."
वीएलएसआई एक पेशेवर संगठन है. यह भारत में सेमीकंडक्टर डिज़ाइन से जुड़े शोध, शिक्षा और बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए काम करता है.
टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़ पीएम मोदी के सामने जो पायलट चिप्स पेश की गईं, उनमें से दो एनआईटी राउरकेला ने विकसित किए हैं.
उनके मुताबिक़ इन चिप्स का इस्तेमाल स्वास्थ्य सेवा, ई-पेमेंट, बायोमेडिकल सिस्टम और ऊर्जा संग्रह के लिए किया जाएगा.
वहीं एक अन्य ख़ास सेमीकंडक्टर चिप ओडिशा के परला महाराजा इंजीनियरिंग कॉलेज ने बनाई है.
जानकारों के मुताबिक़ इसका इस्तेमाल फ़ेस रिकग्निशन सिस्टम को मज़बूत करने के लिए किया जाएगा.
सेमीकंडक्टर चिप एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक पुर्जा होती है, जो आमतौर पर सिलिकॉन से बनी होती है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रॉनिक विज्ञान विभाग की प्रोफ़ेसर मृदुला गुप्ता सेमीकंडक्टर चिप्स को आसान भाषा में समझाते हुए कहती हैं, "सबसे पहले एक वेफ़र तैयार किया जाता है, जिसमें लाखों ट्रांजिस्टर बनाए जाते हैं. इन ट्रांजिस्टरों को जोड़कर एक सर्किट तैयार होता है. जब पूरा सर्किट बन जाता है, तो उससे एक प्रोसेसर चिप निकलती है."
चिप में ट्रांजिस्टर बहुत छोटे स्विच की तरह काम करते हैं, जो बिजली को रोकते और आगे बढ़ाते हैं. इन ट्रांजिस्टरों की मदद से चिप कैलकुलेशन और डेटा स्टोर करती है.
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डॉ. सत्य गुप्ता के मुताबिक़ ग्लोबल सेमीकंडक्टर बाज़ार क़रीब 600 अरब डॉलर (क़रीब 52 लाख करोड़) का है.
वे कहते हैं, "2030 तक इस बाज़ार के एक ट्रिलियन डॉलर यानी क़रीब 80 लाख करोड़ रुपए तक पहुँचने की संभावना है. फ़िलहाल दुनिया में कहीं भी सेमीकंडक्टर चिप बन रही है, उसमें भारतीय इंजीनियर्स का कुछ ना कुछ योगदान ज़रूर होता है."
उनका कहना है, "ग्लोबल डिज़ाइन सेंटर में बड़ी तादात में आपको भारतीय इंजीनियर मिलेंगे. अभी तक हम ग्लोबल कंपनियों के लिए काम कर रहे थे, लेकिन अब मैन्युफ़ैक्चरिंग और डिज़ाइन हमारे होंगे और हम इस ग्लोबल मार्केट को टैप कर पाएँगे."
वहीं प्रोफ़ेसर मृदुला गुप्ता का कहना है कि भारत सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के काम पर लग गया है और कुछ ही सालों में इसका बड़ा असर दिखाई देने लगेगा.
जानकारों के मुताबिक़ भारत में इस वक़्त सेमीकंडक्टर का बाज़ार क़रीब दो लाख करोड़ का है, जो 2030 तक बढ़कर क़रीब 5 लाख करोड़ को पार कर जाएगा.
फ़िलहाल ताइवान दुनिया के क़रीब 60 प्रतिशत चिप्स का फ़ैब्रिकेशन करता है, वहीं दक्षिण कोरिया की कंपनियां 'मेमरी चिप्स' में आगे हैं.
डिज़ाइन और इनोवेशन के मामले में अमेरिका का दबदबा है और चीन तेज़ी से बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर चिप्स बना रहा है.
इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट के एक बड़े उपभोक्ता देश के तौर पर भारत, माइक्रोचिप के लिए विदेशों पर निर्भर है.
देश में पेट्रोल और गोल्ड के बाद सबसे ज़्यादा आयात इलेक्ट्रॉनिक्स का होता है और इसमें सबसे अहम सेमीकंडक्टर चिप्स हैं.
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2022-23 में भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स आयात, कुल आयात का क़रीब 10 प्रतिशत था, जो भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर एक बड़ा बोझ है.
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सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम बनाने के लिए डिजाइनिंग, मैन्युफ़ैक्चरिंग, टेस्टिंग और पैकेजिंग जैसी सभी चीज़ों की ज़रूरत है.
जानकारों के मुताबिक़ सेमीकंडक्टर चिप बनाने के लिए 150 से अधिक रसायनों और 30 से अधिक प्रकार की गैसों और खनिजों का इस्तेमाल होता है.
ये सभी चीज़ें कुछ ही देशों में उपलब्ध हैं, इन्हें घरेलू स्तर पर उपलब्ध करवाना एक बड़ी चुनौती है.
डॉ. सत्य गुप्ता के मुताबिक़ भारत के पास चिप डिजाइनिंग का अच्छा अनुभव है और फ़िलहाल यह काम बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में हो रहा है.
वे कहते हैं, "भारत को एक बैलेंस इकोसिस्टम की ज़रूरत है. हमें 25 से 30 सालों का रोड मैप लेकर चलना होगा. मेरे हिसाब से 75 प्रतिशत इंसेंटिव मैन्युफ़ैक्चरिंग में, 30 प्रतिशत प्रोडक्ट में और 5 प्रतिशत टैलेंट और रिसर्च में ख़र्च करने की ज़रूरत है."
उनका कहना है, "इसके अलावा यह तय करना होगा कि पहले पाँच साल में हमें क्या चाहिए, फिर अगले 10 साल में क्या चाहिए. तभी भारत सेमीकंडक्टर की दुनिया में एक बड़ी लकीर खींच सकता है."
वे कहते हैं, "साल 2021 में भारत सरकार ने क़रीब 75 हज़ार करोड़ की लागत से एक बड़ा कार्यक्रम शुरू किया, जिसे इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन कहते हैं. आज आप जो देख रहे हैं, वह इसी की वजह से संभव हो पा रहा है."
इस मिशन का मक़सद भारत में सेमीकंडक्टर चिप्स बनाने के लिए एक मज़बूत माहौल तैयार करना है.
इसके तहत उन कंपनियों को आर्थिक मदद दी जाती है, जो सेमीकंडक्टर मैन्युफ़ैक्चरिंग में निवेश करना चाहती हैं.
उनका कहना है, "भारत पीएलआई स्कीम के तहत सेमीकंडक्टर सेक्टर के लिए 50 प्रतिशत तक, वहीं राज्य सरकारें 20 प्रतिशत तक, यानी कुल मिलाकर क़रीब 70 प्रतिशत तक इंसेंटिव दे रहे हैं. इससे निवेशकों को काफ़ी फ़ायदा मिल रहा है."
ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देश को सेमीकंडक्टर के बाज़ार में दबदबा क़ायम करने में कई दशक लगे. ऐसे में भारत के लिए भी यह किसी मैराथन से कम नहीं है.
जानकारों का मानना है कि अगर भारत की रणनीति मज़बूत रही, तो आने वाले एक दशक में भारत सेमीकंडक्टर के बाज़ार में अहम खिलाड़ी बन सकता है.
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