अमेरिका ने रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगा दिए हैं. इसे यूक्रेन के साथ शांति वार्ता के लिए दबाव बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
अमेरिका ने रूस की जिन दो प्रमुख तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगाए हैं वो हैं- रोज़नेफ्ट और लुकॉइल. ख़ास बात यह है कि भारत इन दोनों कंपनियों से तेल ख़रीदता है. ऐसे में इन प्रतिबंधों का बुरा असर भारत पर भी पड़ सकता है.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, "हर बार जब मैं व्लादिमीर से बात करता हूं, बातचीत अच्छी होती है लेकिन आगे नहीं बढ़ती."
ट्रंप ने यह बात नेटो महासचिव मार्क रूट से मुलाक़ात के बाद कही, जिनसे उन्होंने शांति वार्ता पर चर्चा की.
रूस ने चेतावनी दी है कि इन प्रतिबंधों से विकासशील देशों की ऊर्जा (तेल और गैस) सुरक्षा पर असर पड़ेगा.

एक दिन पहले ही ट्रंप ने बताया था कि उनकी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बुडापेस्ट में होने वाली बैठक अनिश्चित काल के लिए टाल दी गई है.
बुधवार सुबह रूस ने यूक्रेन पर भीषण बमबारी की, जिसमें कुछ बच्चों सहित कम से कम सात लोगों की मौत हुई है.
अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा कि "पुतिन के इस युद्ध को ख़त्म करने से इनकार" करने की वजह से नए प्रतिबंध जरूरी हैं.
जिन कंपनियों पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए हैं उनके बारे में बेसेंट ने कहा कि ये तेल कंपनियां रूस को युद्ध के लिए धन देती हैं.
बेसेंट ने कहा, "अब लोगों की हत्या रोकने और तत्काल युद्धविराम करने का समय आ गया है."
बुधवार को व्हाइट हाउस में ट्रंप ने पुतिन की आलोचना की और कहा कि, वे शांति को लेकर 'गंभीर नहीं हैं.' ट्रंप ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नए प्रतिबंध समाधान का रास्ता खोलेंगे.
ट्रंप ने कहा, "मुझे लगा अब समय आ गया है. हमने बहुत इंतजार किया."
अमेरिकी राष्ट्रपति ने नए प्रतिबंधों को महत्वपूर्ण कदम बताया और कहा कि अगर रूस युद्ध रोकने पर सहमत होता है, तो इन्हें जल्दी हटाया जा सकता है.
मार्क रूट ने भी इस कदम की सराहना की और कहा कि यह पुतिन पर दबाव बढ़ाने वाला कदम है.
यह फैसला उस समय आया है जब अमेरिका और रूस के शांति प्रस्तावों के बीच मतभेद और स्पष्ट हो गए हैं. ट्रंप ने कहा है कि इसमें मुख्य बाधा रूस का जंग के मौजूदा मोर्चे पर लड़ाई बंद करने से इनकार करना है.
पिछले हफ्ते ब्रिटेन ने भी रोज़नेफ्ट और लुकॉइल पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाए थे. ब्रिटेन की वित्त मंत्री रैचल रीव्स ने कहा, "दुनिया के बाज़ार में रूसी तेल के लिए कोई जगह नहीं है."
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यूक्रेन वॉर छिड़ने के बाद से भारत और चीन रूसी तेल के सबसे बड़े ख़रीदार बन गए हैं, क्योंकि पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे.
भारत ने बार-बार ये दलील दी है कि वो अपनी 140 करोड़ आबादी के लिए किफ़ायदी दर पर कच्चा तेल ख़रीदना चाहता है ताकि घरेलू उपभोक्ताओं पर बिना ज़्यादा आर्थिक दबाव डाले उनकी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा किया जा सके.
ऐसे में डिस्काउंट पर मिलने वाला रूसी कच्चा तेल भारत के लिए फ़ायदेमंद साबित हो रहा था. भारत अपनी कुल तेल ज़रूरत का 85 फ़ीसदी आयात करता है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्सकी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत ने इस साल जनवरी से जुलाई के बीच औसतन 1.73 मिलियन बैरल रूसी कच्चा तेल रोज़ाना आयात किया. ये भारत के कुल तेल आयात का एक तिहाई है जबकि पहले रूसी तेल का एक छोटा हिस्सा ही भारत आयात करता था.
इस दौरान भारत ने मध्य पूर्व के देशों और अफ़्रीकी देशों से अपना तेल आयात कम कर दिया है.
रिलायंस इंडस्ट्रीज़ और नायरा एनर्जी रूसी तेल की सबसे बड़ी ख़रीदार हैं. रिलायंस दुनिया की सबसे बड़ी रिफ़ायनरी में से एक मानी जाती है. रिलायंस का रोज़नेफ़्ट से क़रार था. नायरा में भी रोज़नेफ़्ट की हिस्सेदारी है.
वहीं पिछले सप्ताह ही ब्रिटिश सरकार ने भी कई बड़ी रूसी ऑइल कंपनीज़ समेत भारत की नायरा एनर्जी पर भी प्रतिबंध लगा दिए थे. ब्रिटिश सरकार के मुताबिक़ नायरा ने 2024 में रोज़नेफ़्ट समेत कई रूसी कंपनियों से अरबों डॉलर का तेल ख़रीदा था.
इससे पहले यूरोपीय यूनियन ने भी नायरा एनर्जी पर प्रतिबंध लगाए थे.
तब नायरा ने एक बयान जारी कर कहा था, "नायरा पूरी तरह से भारत के नियमों और क़ानून के दायरे में अपना काम करती है. हम भारत की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने में अपना योगदान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
कंपनी ने बयान में कहा था कि यूरोपीय यूनियन के उस पर लगाए प्रतिबंध पूरी तरह से 'आधारहीन हैं और अंतरराष्ट्रीय क़ानून और भारत की संप्रभुता को ताक़ में रखकर लगाए गए हैं.
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लंदन में रूस के दूतावास ने नए प्रतिबंधों के जवाब में कहा कि उसकी ऊर्जा कंपनियों को निशाना बनाने से दुनियाभर की ईंधन आपूर्ति पर असर पड़ेगा और इससे कीमतें बढ़ेंगी.
दूतावास ने कहा कि ये प्रतिबंध "विकासशील देशों की ऊर्जा सुरक्षा पर विपरीत असर डालेंगे. दबाव बढ़ाने से शांतिपूर्ण बातचीत और मुश्किल हो जाएगी."
रोज़नेफ्ट और लुकॉइल दोनों रूसी कंपनियां हर रोज़ क़रीब 3.1 मिलियन बैरल तेल का निर्यात करती हैं. रोज़नेफ्ट रूस के कुल तेल उत्पादन का क़रीब आधा हिस्सा संभालती है, जो दुनियाभर के उत्पादन का 6 प्रतिशत है.
तेल और गैस रूस के सबसे बड़े निर्यात हैं. और इसके मुख्य खरीदार चीन, भारत और तुर्की हैं.
ट्रंप ने इन देशों से भी रूसी तेल ख़रीदना बंद करने की अपील की है ताकि रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाया जा सके.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को एक बार फिर से दावा किया है कि भारत के पीएम मोदी ने उन्हें कहा है कि वे रूस से ज़्यादा तेल नहीं ख़रीदेंगे.
ट्रंप ने आगे कहा, "वे (पीएम मोदी) भी मेरी तरह रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को ख़त्म होते देखना चाहते हैं. वे बहुत ज़्यादा तेल नहीं ख़रीदने जा रहे हैं. इसलिए उन्होंने इसमें काफ़ी कटौती कर दी है और वे इसमें लगातार कटौती करते जा रहे हैं..."
ब्रिटेन की विदेश मंत्री यवेट कूपर ने भी अमेरिका के नए कदम की सराहना की और इन प्रतिबंधों का स्वागत किया है.
ईयू ने किया स्वागत
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने एक्सपर लिखा कि उन्होंने भी यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर बेसेंट से फोन पर बात की.
यूरोपीय संघ ने बुधवार को नए प्रतिबंध को भी मंज़ूरी दी है, जिसकी उन्होंने प्रशंसा की. इनमें रूसी एलएनजी आयात पर प्रतिबंध शामिल है.
उन्होंने कहा, "ईयू के 19वें प्रतिबंध पैकेज के अनुमोदन के साथ, यह ट्रांस-अटलांटिक एकजुटता का संकेत है कि हम मिलकर हमलावर पर दबाव बनाए रखेंगे."
इस साल की शुरुआत में ब्रिटेन और अमेरिका ने गज़प्रोम नेफ्ट और सुर्गुतनेफ्टेगास पर भी प्रतिबंध लगाए थे.
ट्रंप-पुतिन बैठक स्थगित
इससे पहले ट्रंप ने कहा था कि वह बुडापेस्ट में पुतिन के साथ "बेकार बैठक" नहीं करना चाहते. उन्होंने कहा कि मुख्य विवाद रूस का वर्तमान मोर्चे पर लड़ाई बंद करने से इनकार करना है.
ट्रंप और पुतिन की पिछली मुलाक़ात अलास्का में हुई थी, जिसे संघर्ष समाप्त करने की दिशा में एक कोशिश माना गया था, लेकिन यह बातचीत बेनतीजा रही.
इस सप्ताह अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के बीच होने वाली बैठक रद्द कर दी गई. यह बैठक ट्रंप-पुतिन बातचीत की तैयारियों के लिए होनी थी.
व्हाइट हाउस ने कहा कि दोनों नेताओं के बीच फ़ोन पर "अच्छी" बातचीत हुई और अब मुलाक़ात "ज़रूरी नहीं" है.
ट्रंप ने कई बार मौजूदा सीमाओं पर संघर्ष रोकने के प्रस्ताव का समर्थन किया है.
सोमवार को ट्रंप ने कहा, "जंग जहाँ है, वहीं रुक जाए. सब घर जाएँ. लड़ाई बंद करें, लोगों को मारना बंद करें."
रूस ने इस प्रस्ताव को बार-बार ख़ारिज़ किया है. रूसी राष्ट्रपति के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा कि "रूस का रुख़ नहीं बदला है."
रूस यूक्रेनी सेना की पूर्वी इलाक़ों से पूरी तरह वापसी की मांग पर अड़ा है.
पेस्कोव ने कहा, "संघर्ष की मूल वजहों" को सुलझाना ज़रूरी है- यानी डोनबास पर रूस की पूर्ण संप्रभुता को मान्यता देना और यूक्रेन का हथियार छोड़ना, जिसे यूक्रेन और यूरोपीय देश किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकते.
बुधवार को ट्रंप ने वॉल स्ट्रील जर्नल की उस रिपोर्ट को भी ख़ारिज किया, जिसमें कहा गया था कि अमेरिका ने यूक्रेन को रूस पर लंबी दूरी की मिसाइल हमलों की अनुमति दी है.
ट्रंप ने इसे "फेक न्यूज़" बताया.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने अमेरिका से लंबी दूरी की टॉमहॉक मिसाइलें देने की इच्छा जताई है.
उन्होंने कहा कि इन मिसाइलों की संभावित तैनाती की धमकी भी रूस को बातचीत की मेज़ पर ला सकती है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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