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'उन्होंने हमें पीटा, अपमानित किया, खाने और शौचालय तक जाने से रोका'

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Faiz Abu Rmeleh/Getty Images इसराइल की क़ैद से रिहा किए गए कुछ बंदियों के शरीर पर ज़ख़्म स्पष्ट नज़र आए

"वो तीन दिन मेरी ज़िंदगी के सबसे मुश्किल दिन थे."

फ़ैसल ख़लीफ़ा को 25 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी, उन्होंने दस साल की सज़ा काटी. उन्हें सोमवार को 250 फ़लस्तीनी क़ैदियों और क़रीब 1700 ग़ज़ा बंदियों के साथ रिहा कर दिया गया, जिन्हें इसराइल ने हमास के साथ युद्धविराम समझौते के तहत रिहा किया था.

इसी के तहत इस्लामी समूह हमास ने ज़िंदा बचे बाक़ी 20 इसराइली बंधकों को भी रिहा कर दिया.

बाक़ी रिहा किए गए क़ैदियों की तरह, जलीफ़ा नाम के एक शख़्स ने कहा कि उन्हें जेल में हर तरह की यातनाएं सहनी पड़ीं, जो हाल के दिनों में बढ़ गई हैं.

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image Getty Images रिहाई के बाद जश्न मनाते फ़लस्तीनी

जलीफ़ा नूर शम्स शरणार्थी शिविर में रहने वाले फ़लस्तीनी हैं.

उन्होंने रामल्लाह में बीबीसी अरबी सेवा को बताया, "उन्होंने हमें हथकड़ी लगाई और बेरहमी से पीटा. उन्होंने हमें 12 घंटे तक धूप में रखा. जेलर समय-समय पर, हमें और हम लोगों की मां को अपमानित करने आते थे. उन्होंने हमें खाने-पीने और यहाँ तक कि शौचालय जाने से भी रोका."

"वे हमारी आज़ादी से पहले हमसे आज़ाद होने की ख़ुशी छीन लेना चाहते थे."

दुबले-पतले और कमज़ोर शरीर वाले ख़लीफ़ा को उनके क़रीबियों ने बहुत स्नेह दिया, जो रामल्लाह में उनका स्वागत करने आए थे. यहां अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस की बसें ओफर जेल से क़ैदियों को लेकर पहुंची थीं.

हालाँकि लंबे समय से इंतज़ार कर रहे रिहा हुए क़ैदियों के अन्य परिवार इस प्रेम के साथ नहीं मिल पाए.

एक क़ैदी मोहम्मद ओमरान की बहन इब्तिसाम ओमरान ने बीबीसी अरबी सेवा को बताया, "मैंने अंतिम क़ैदी के बस से उतरने का इंतज़ार किया, लेकिन वह मुझे दिखाई नहीं दिया... मैंने लोगों के बीच उसे ढूंढा, और रिहा हुए क़ैदियों में से एक ने मुझे बताया कि उसने उसे देखा था, लेकिन उसे नहीं पता था कि उसे कहां ले जाया गया है."

इब्तिसाम ओमरान ने रोते हुए कहा, "मुझे लगा था कि वह यहां आ जाएगा, जेल के अंदर से उसने मुझसे पिछली बातचीत में यही वादा किया था, लेकिन फिर वह ग़ायब हो गया... मुझे नहीं पता कि वे उसे कहां ले गए."

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क़ैदियों के मन में डर image EPA इसराइल की क़ैद से रिहा हुए फ़लस्तीनी

रिहाई के समझौते में शामिल 250 क़ैदियों में से केवल 88 को ही वेस्ट बैंक पर रिहा किया गया, जहाँ उनके परिवार उनका इंतज़ार कर रहे थे.

इनके अलावा 154 अन्य क़ैदियों को निर्वासित कर दिया गया, और आठ अन्य ग़ज़ा पट्टी लौट गए, जहाँ से वे आए थे.

ग़ज़ा में बंद 1700 लोगों में डॉक्टर, पत्रकार, नाबालिग और बुज़ुर्ग शामिल हैं. इन्हें पिछले दो साल के दौरान पकड़ा गया था और अब तक उन पर मुक़दमा शुरू नहीं हुआ.

रामल्लाह में बीबीसी अरबी सेवा संवाददाता अला दराघमे के मुताबिक़, रिहा किए गए कई क़ैदियों के लिए आज़ादी डर और चिंता लेकर आई, और वे सार्वजनिक रूप से बोलने से कतराने लगे.

उनमें से एक थे समी अल-फ़तेला, जो अपनी उम्रक़ैद की सज़ा के कई साल इसराइली जेल में रहे.

उन्होंने कहा, "जेल के अंदर के हालात बहुत कठोर थे, लेकिन मैं उनके बारे में बात नहीं कर सकता.. शिन बेट (इसराइली घरेलू खुफिया एजेंसी) ने हमें धमकी दी थी कि अगर हमने कुछ बताया तो वे हमें फिर से गिरफ़्तार कर लेंगे."

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'जानबूझकर पैदा की गई भुखमरी' image EPA इसराइल ने पहले भी जेलों में फ़लस्तीनी क़ैदियों के साथ दुर्व्यवहार और यातना की ख़बरों को ग़लत बताया है

क़ैदियों की रिहाई के बाद देखा गया है कि उनमें से कई कमज़ोर हो गए हैं, कुछ को चलने में कठिनाई हो रही है और उन्हें उनके रिश्तेदार गोद में उठाकर चल रहे हैं.

इसराइली जेलों में व्यापक दुर्व्यवहार की ख़बरें सामने आई हैं, जिसमें यातना, मारपीट और भोजन न देने के आरोप शामिल हैं.

बीबीसी इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर पाया है.

हालाँकि, पिछले महीने, इसराइली सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि फ़लस्तीनी क़ैदियों को पर्याप्त भोजन नहीं मिल रहा है.

इससे पहले भी बीबीसी ने ऐसे फ़लस्तीनियों के बारे में रिपोर्ट दी है, जिन्होंने दावा किया था कि उन्हें इसराइली बंदी गृहों में बिजली के झटके देकर, जलाने या यौन दुर्व्यवहार करके प्रताड़ित किया गया.

बीबीसी ने इस पर टिप्पणी के लिए इसराइली प्रीज़न सर्विस (आईपीएस) से संपर्क किया है.

इसराइली सरकार ने पहले भी बंदियों के साथ व्यापक दुर्व्यवहार और यातना के आरोपों को ख़ारिज किया है और इस बात पर ज़ोर दिया है कि वह "अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है."

बंदियों के साथ दुर्व्यवहार की कुछ रिपोर्टों से पता चलता है कि रिहाई से पहले के कुछ दिनों के दौरान यह बढ़ गया था.

फ़लस्तीनी क़ैदियों से जुड़े क्लब की अया श्रीतेह ने बीबीसी के यरूशलम संवाददाता टॉम बेनेट को बताया, "उनके अधिकारों का सबसे गंभीर उल्लंघन किया गया."

उन्होंने कहा, "पिछले एक साल में ज़्यादातर क़ैदियों को जानबूझकर भूखा रखा गया है और बीमारियों के संपर्क में लाया गया है. भूख से उनके शरीर कमज़ोर हो गए हैं."

इसराइल में बढ़ी जेलों की संख्या image Getty Images रिहा हुए एक फ़लस्तीनी क़ैदी को कंधे पर उठाकर जश्न मनाते लोग

सोमवार को हुई यह अदला-बदली दो साल पहले हमास के साथ युद्ध शुरू होने के बाद से इसराइल के लिए फ़लस्तीनी क़ैदियों की तीसरी अदला-बदली है.

नवंबर 2023 में 240 क़ैदियों को अलग-अलग ग्रुप में रिहा किया गया.

फ़लस्तीनी क़ैदी क्लब के मुताबिक़, इस साल जनवरी और फ़रवरी में अलग-अलग चरणों में 1777 क़ैदियों को रिहा किया गया, जिससे तीनों समझौतों के तहत रिहा किए गए क़ैदियों की कुल संख्या 3985 हो गई है.

लेकिन इस अदला-बदली में रिहा किए गए लोगों में से कई ऐसे लोग हैं जिन्हें 'प्रशासनिक बंदी' के रूप में जाना जाता है, जिन पर किसी विशेष अपराध का आरोप नहीं लगाया गया है और उन्हें बिना सुनवाई के हिरासत में रखा गया है.

ये हिरासतें, जो महीनों या कई साल तक चल सकती हैं. इससे इसराइल में फ़लस्तीनी क़ैदियों के लिए जेलों की संख्या बढ़ी है.

अलग-अलग मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक़, 7 अक्तूबर 2023 के हमलों के साथ ही इसराइल-हमास जंग की शुरुआत के बाद से ऐसे जेलों की संख्या दोगुनी हो गई है.

फ़लस्तीनी क़ैदियों और उनके परिवारों को सहायता देने वाले संगठन 'अददमीर' के आंकड़ों के अनुसार, सोमवार की रिहाई से पहले, इसराइली जेलों में क़रीब 11,100 फ़लस्तीनी थे.

एनजीओ 'अददमीर' इसराइली जेलों का प्रबंधन करने वाली इसराइली जेल सेवा, और क़ैदियों के परिवारों से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल करता है.

इनमें से 3,544 फ़लस्तीनी प्रशासनिक हिरासत में थे और 400 नाबालिग थे.

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इसराइल पर आरोप image Getty Images 7 अक्तूबर 2023 के बाद इसराइल ने हमास के ख़िलाफ़ ग़ज़ा पर लगातार हमले किए

7 अक्तूबर 2023 को हमास ने दक्षिणी इसराइल पर हमला किया था, जिसमें क़रीब 1,200 लोग मारे गए थे और 251 का अपहरण कर लिया.

इस हमले के बाद इसराइली सेना ने जवाबी कार्रवाई की थी, जिसमें ग़ज़ा में 67,000 से अधिक लोग मारे गए.

इसराइल ने साल 2021 में 'अददमीर' को पांच अन्य फ़लस्तीनी मानवाधिकार समूहों के साथ एक "आतंकवादी" संगठन के रूप में नामित किया था, जिसे संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने अस्वीकार कर दिया था.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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