उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक़, इस साल प्रयागराज के कुंभ के दौरान हुई भगदड़ में 37 लोगों की मौत हुई.
बीबीसी की गहन पड़ताल में सामने आया कि कुंभ में भगदड़ की घटनाओं में कम-से-कम 82 लोगों की मौत हुई थी.
11 राज्यों के 50 से अधिक ज़िलों में की गई इस पड़ताल में यह भी पता चला कि कई परिवारों को अपने परिजनों का शव लेने के लिए संघर्ष करना पड़ा.
एक ऐसा मामला सामने आया, जहां दो शवों पर एक ही नंबर '10' लिख दिया गया था.
उलझन ऐसी थी कि बिहार की माया देवी के परिवार को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की कमलावती का शव सौंप दिया गया.
कुंभ में अलग-अलग जगहों पर हुई भगदड़ के बाद ज़्यादातर शवों को प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की मॉर्चरी में लाया गया.
वहां शवों पर नंबर लगाए गए, जिसके बाद मृतकों को सरकारी एंबुलेंस से उनके परिजनों के घर भेजा गया.
साथ ही, मृतकों के परिजनों को दाह संस्कार के लिए 15 हज़ार रुपए नकद दिए गए.
कैसे बदला माया देवी का शवबिहार के गोपालगंज ज़िले के सवनहा गांव की रहने वाली माया देवी अपनी बेटी मंजू देवी के साथ कुंभ मेले में गई थीं.
उनके बेटे राजकुमार तिवारी बताते हैं, "पहले मैं मां को गांव से बनारस तक लेकर गया. वहां बहन से मुलाक़ात हुई. फिर हम तीनों प्रयागराज के लिए रवाना हुए और 28 जनवरी की सुबह क़रीब तीन बजे झूंसी स्टेशन पहुंचे."
वो बताते हैं, "मैंने मां को बहन की ज़िम्मेदारी में छोड़कर घर लौटने का फ़ैसला किया, क्योंकि घर पर मवेशियों की देखभाल करने वाला कोई नहीं था."
राजकुमार कहते हैं, "मौनी अमावस्या की रात में क़रीब साढ़े बारह बजे (28 जनवरी, 2025) संगम पर स्नान के बाद जैसे ही वे लौटने लगे, भगदड़ मच गई और वे लोग बिछड़ गए. बहन का फ़ोन आया कि भगदड़ के बाद से मां नहीं मिल रही हैं."
"मैं और मेरे बड़े भाई उनकी तलाश में प्रयागराज पहुंचे. उनका शव हमें अस्पताल में मिला. उनके कानों में रेत भरी हुई थी और कंधों पर खरोंच के निशान थे."
राजकुमार बताते हैं, "बड़ी बहन को किसी ने बाल पकड़कर भीड़ से खींचकर बाहर निकाला, लेकिन मां बाहर नहीं निकल सकीं."
वे कहते हैं, "सबसे बड़ी दिक़्क़्त तब हुई, जब शव लेकर लौटते वक्त प्रयागराज से फ़ोन आया कि आप 'ग़लत शव' लेकर जा रहे हैं."
राजकुमार कहते हैं, "31 जनवरी को सुबह 10 बजे हमने अपनी मां के शव की पहचान कर ली. उनके हाथ और कपड़ों पर 10 नंबर लिखा था. वही शव हमने एंबुलेंस में रखा था, लेकिन हमने कवर हटाकर शव नहीं देखा था."
"हम मऊ (प्रयागराज से क़रीब 250 किलोमीटर) तक पहुंच चुके थे, तभी फ़ोन आया कि आप ग़लत शव ले आए हैं. हालांकि, जो शव हम ले जा रहे थे, उस पर भी 10 नंबर ही लिखा था. इसके बाद हम वापस प्रयागराज लौटे और मां का असली शव लेकर गए."
वो बताते हैं, "मेरी मां की मौत संगम नोज़ पर हुई भगदड़ में हुई थी, लेकिन मृत्यु प्रमाण पत्र में मौत की जगह झूंसी लिखी गई है."
राजकुमार का कहना है, "19 मार्च को पुलिस वाले घर आए और पांच लाख रुपए कैश देकर गए."
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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की रहने वाली कमलावती 28 जनवरी को कुंभ के लिए घर से रवाना हुई थीं.
उनकी बेटी कविता यादव बताती हैं, "कुंभ जाते समय मम्मी फ़ोन नहीं ले गई थीं. वे अकेले गई थीं. हमें 29 तारीख़ को पता चला कि संगम घाट पर भगदड़ हुई है. मम्मी से हमारी बात नहीं हो पा रही थी."
वो कहती हैं, "हमें लगा कि मम्मी वापस आ जाएंगी. एक दिन बीत गया, फिर दूसरा दिन भी गुज़र गया, लेकिन वो नहीं लौटीं. हमने न्यूज़ में 24 अज्ञात शवों की तस्वीरें देखीं. उनमें मेरी मम्मी की भी एक फोटो थी. फोटो पहचान कर मेरे भाई 31 जनवरी को प्रयागराज गए."
कमलावती का शव लेने उनके बड़े बेटे जितेंद्र यादव प्रयागराज पहुंचे थे.
वो बताते हैं, "मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की मॉर्चरी में शव रखा हुआ था. उनकी गर्दन पर चोट के निशान थे. ऐसा लग रहा था कि गर्दन दब गई हो. वहां सभी शवों पर नंबर लगाए गए थे. इस शव पर 10 नंबर लिखा था."
वे कहते हैं, "उत्तर प्रदेश सरकार से हमें 25 लाख रुपए की सहायता राशि मिली. सरकार जो कर सकती थी, उसने किया. हमें शव मिल गया."
कविता बताती हैं, "जब हमारे घर से लोग प्रयागराज शव लेने पहुंचे तो पता चला कि हमारी मां का शव गोपालगंज वाले लोग लेकर काफी दूर तक जा चुके थे. हमें जो शव दिखाया गया था, वह हमारी मां का नहीं था. गोपालगंज की ओर जा रही एंबुलेंस में जो पुलिसकर्मी थे, उन्हें फ़ोन कर शव की पहचान के लिए कहा गया."
"जब गोपालगंज वालों ने शव चेक किया, तब पता चला कि वह शव उनका नहीं है. इसके बाद वे वापस प्रयागराज लौटे."
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11 राज्यों के 50 से अधिक ज़िलों में की गई इस पड़ताल में बीबीसी ने 100 से ज़्यादा ऐसे परिवारों से मुलाक़ात की, जिनका कहना है कि उनके परिजन कुंभ में भगदड़ के दौरान मारे गए.
बीबीसी के पास इस बात के पुख़्ता सबूत हैं कि कम-से-कम 82 लोगों की मौत कुंभ भगदड़ में हुई थी.
जिन परिवारों के पास अपनी बात साबित करने के लिए पर्याप्त दस्तावेज़ या प्रमाण नहीं थे, उन्हें बीबीसी ने इन 82 मृतकों की सूची में शामिल नहीं किया.
बीबीसी ने ज़िला स्तर से लेकर उच्च प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों तक से कई बार संपर्क करने की कोशिश की, ताकि उनका पक्ष रिपोर्ट में शामिल किया जा सके.
फ़ोन, व्हाट्सऐप और ईमेल जैसे माध्यमों से कई बार प्रयास किए गए, लेकिन कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली.
11 जून 2025, बुधवार को लखनऊ में हुए संवाददाता सम्मेलन के दौरान जब उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य से बीबीसी की पड़ताल पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा,
"मुझे लगता है कि... आप कोई समाचार चला दें और मैं इसका जवाब दूँ, वो सही नहीं है."
उन्होंने आगे कहा, "लेकिन अगर कुंभ की दुखद दुर्घटना में किसी परिवार ने अपने सदस्य को खोया है, तो हमने पहले भी दुख ज़ाहिर किया था और आज भी करते हैं. इन परिवारों के प्रति हमारी संवेदना है, सरकार उनके साथ है."
बीबीसी ने कुंभ भगदड़ में हुई 82 मौतों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बाँटा है:
पहली श्रेणी में वे मृतक हैं जिनके परिजनों को 25 लाख रुपए का मुआवज़ा मिला.
दूसरी श्रेणी में वे मृतक हैं जिनके परिजनों को 5 लाख रुपए नकद दिए गए, लेकिन उन्हें आधिकारिक रूप से कुंभ भगदड़ के मृतकों की सूची में शामिल नहीं किया गया.
तीसरी श्रेणी में वे मृतक हैं जिनके परिजनों को अब तक कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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