अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस हफ़्ते एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें उन्होंने खाड़ी देश क़तर की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने का वादा किया है, जिनमें अमेरिकी सेना का इस्तेमाल भी शामिल है.
इस आदेश में कहा गया है कि अमेरिका किसी भी सशस्त्र हमले को क़तर पर नहीं, बल्कि ख़़ुद अमेरिका पर हमला मानेगा, और "कानूनी के साथ-साथ दूसरे ज़रूरी कदम, जिनमें राजनयिक, आर्थिक और आवश्यकता पड़ने पर सैन्य कार्रवाई भी शामिल है, उठाए जाएंगे ताकि अमेरिका और क़तर के हितों की रक्षा की जा सके और शांति, स्थिरता बहाल की जा सके."
यह आदेश अमेरिका और उसके एक प्रमुख अरब सहयोगी के बीच एक असाधारण सुरक्षा समझौते जैसा है, जो लगभग नेटो गठबंधन की तरह दिखता है. इससे क्षेत्र के दूसरे पड़ोसी देशों में ईर्ष्या की भावना पैदा हो सकती है.
यह बात इसलिए और भी अहम है क्योंकि सिर्फ़ कुछ साल पहले तक क़तर अपने पड़ोसी देशों के आर्थिक और कूटनीतिक बहिष्कार का केंद्र था और अब वही देश मध्य पूर्व की कूटनीति का अहम केंद्र बन चुका है. हाल में इसराइल और हमास के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाकर उसने अपनी नई भूमिका मज़बूती से साबित की है.
हमास का राजनीतिक कार्यालय दोहा में है और वह इस समय व्हाइट हाउस में सोमवार को घोषित ट्रंप की 20 सूत्री ग़ज़ा शांति योजना की समीक्षा कर रहा है. दोहा में ही अमेरिका का सबसे बड़ा क्षेत्रीय एयरबेस अल-उदीद भी है.

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क़तर को अमेरिकी सुरक्षा देने का ट्रंप का यह कदम उस नाराज़गी के बाद आया है, जो अल थानी शाही परिवार (क़तर पर शासन करने वाला परिवार) ने पिछले महीने इसराइली हवाई हमलों के बाद जताई थी. उन हमलों में हमास के कई सदस्य और क़तर के एक सुरक्षा अधिकारी मारे गए थे.
इस साल की शुरुआत में क़तर पर ईरान ने भी हमला किया था. यह हमला अमेरिका की ओर से ईरान के परमाणु ठिकानों पर की गई बमबारी के जवाब में किया गया था.
क़तर अब खाड़ी अरब देशों की बढ़ती चिंता का केंद्र बन गया है. इन देशों को लगने लगा है कि अमेरिका के साथ गठजोड़ और उसके सैन्य ठिकानों की मेज़बानी के बावजूद उन्हें वैसी सुरक्षा नहीं मिली, जैसी उम्मीद थी.
क़तर के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के इस आदेश का स्वागत करते हुए कहा कि यह "दोनों देशों की घनिष्ठ रक्षा साझेदारी को मज़बूत करने की दिशा में एक अहम कदम" है.
हालांकि, इस फैसले के समय और इसके मक़सद पर सवाल उठ रहे हैं, और इसे वॉशिंगटन में चुनौती भी मिल सकती है.
यह आदेश ऐसे समय में आया है जब हमास ट्रंप के ग़ज़ा प्रस्ताव पर विचार कर रहा है, और यह पहले से ही नाज़ुक क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकता है.
इसराइल में अमेरिका के पूर्व राजदूत डैन शापिरो का कहना है कि ट्रंप ने दोहा से कोई ठोस आश्वासन मिलने से पहले ही क़तर को एक असाधारण इनाम दे दिया.
उन्होंने कहा, "ट्रंप की क़तर को दी गई सुरक्षा प्रतिबद्धता का कोई मतलब नहीं बनता, जब तक क़तर हमास से 'हाँ' न करवा दे या अगर वे 'ना' कहें तो उन्हें वहाँ से निकाल न दे."
इसराइली अख़बार हारेट्ज़ ने लिखा, "ट्रंप ने क़तर में रह रहे हमास नेताओं को सुरक्षा दी, जबकि नेतन्याहू ने चेतावनी दी थी कि वे कहीं भी सुरक्षित नहीं रहेंगे."
खाड़ी मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप की यह गारंटी एक अस्थिर क्षेत्र को स्थिर करने के लिए अहम है, जिसे इसराइल के बढ़ते हमलों और अमेरिकी सुरक्षा पर घटते भरोसे ने हिला दिया है.
यूरेशिया ग्रुप के फिरास मकसद ने कहा कि यह कदम "कुछ हद तक" क़तर और दूसरे खाड़ी देशों को भरोसा देने वाला है.
उन्होंने कहा, "मुझे उम्मीद है कि सऊदी अरब भी ऐसा ही आश्वासन मांगेगा. मुझे लगता है कि उन्हें अपने साथ बनाए रखना अमेरिका के हित में है."
क़तर को दी गई सुरक्षा गारंटी का दायरा काफ़ी बड़ा है, जिसमें हमले की स्थिति में अमेरिकी सैन्य सहयोग भी शामिल है. यह नेटो के आर्टिकल 5 की तरह है, जिसके अनुसार किसी एक सदस्य पर हमला सभी पर हमला माना जाता है.
लेकिन यह आदेश व्हाइट हाउस से सीधे जारी किया गया है, जिससे यह कांग्रेस को दरकिनार करता है. वॉर पावर्स एक्ट के तहत राष्ट्रपति को सेना की तैनाती से पहले कांग्रेस से अनुमति लेनी होती है.
इसलिए यह आदेश कानूनी रूप से सीमित हो सकता है और भविष्य में कोई और राष्ट्रपति इसे बदल या रद्द कर सकता है. कांग्रेस में डेमोक्रेट सांसद इसकी जांच की मांग कर सकते हैं.
ट्रंप के अपने समर्थक समूह 'एमएजीए' के कुछ लोग भी इस कदम का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि यह "अमेरिका फर्स्ट" नीति के विपरीत है.
ट्रंप समर्थक और दक्षिणपंथी कार्यकर्ता लॉरा लूमर ने कहा कि क़तर अमेरिका का सहयोगी नहीं बल्कि ख़तरा है.
ट्रंप समर्थक रेडियो होस्ट मार्क लेविन ने सवाल किया, "अगर क़तर में हमास नेताओं को इसराइल मार देता है, तो क्या हम इसराइल से युद्ध करने जा रहे हैं?"
ट्रंप परिवार के क़तर से निजी और कारोबारी संबंधों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं. आलोचकों का कहना है कि यह विदेश नीति में हितों के टकराव का मामला है.
ट्रंप ऑर्गनाइजेशन, जिसका संचालन उनके बेटे एरिक और डोनाल्ड जूनियर कर रहे हैं, ने अप्रैल में क़तर में एक लग्ज़री गोल्फ़ रिसॉर्ट बनाने का करार किया है. इसमें "ट्रंप-ब्रांडेड बीच विला" और "18-होल गोल्फ़ कोर्स" शामिल है, जिसे क़तर सरकार की कंपनी बना रही है.
क़तर ने अमेरिका को एक 747 जेटलाइनर भी दिया है, जिसे ट्रंप "एयर फ़ोर्स वन" के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल करना चाहते हैं.
ट्रंप का कहना है कि उनके कार्यकाल के बाद यह विमान सेवा से हटा दिया जाएगा और उनकी बनने वाली राष्ट्रपति लाइब्रेरी में इसे प्रदर्शित किया जाएगा. व्हाइट हाउस और क़तर सरकार ने किसी भी हितों के टकराव से इनकार किया है.
हालाँकि, अकाउंटेबल डॉट यूएस संस्था के टोनी कैरक ने आरोप लगाया, "डोनाल्ड ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिकी टैक्सपेयर्स उनके क़तर स्थित लग्ज़री गोल्फ़ कोर्स की सैन्य सुरक्षा का खर्च उठाएँ, जबकि वह अपने क़तरी कारोबारी साझेदारों को खुश कर रहे हैं."
ट्रंप ने मई में अपने क्षेत्रीय दौरे के दौरान दोहा का दौरा भी किया था, जहाँ उन्होंने क्षेत्र के सबसे अमीर और ताक़तवर नेताओं के साथ व्यापारिक बैठकें कीं.
व्हाइट हाउस ने सभी हितों के टकराव के आरोपों को सख़्ती से ख़ारिज किया है.
डिप्टी प्रेस सेक्रेटरी अन्ना केली ने बीबीसी को बताया, "राष्ट्रपति ट्रंप की संपत्तियाँ एक ट्रस्ट में हैं, जिसे उनके बच्चे संभालते हैं. कोई हितों का टकराव नहीं है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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