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इसराइली जासूस एली कोहेन से जुड़े मोसाद के सीक्रेट ऑपरेशन की चर्चा क्यों?

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इसराइल के दिग्गज जासूस एली कोहेन एक बार फिर चर्चा में हैं.

का कहना है कि उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद ने सहयोगी विदेशी खुफ़िया एजेंसी के साथ मिलकर एक कोवर्ट और जटिल ऑपरेशन को अंजाम दिया.

और इस ऑपरेशन में एली कोहेन से जुड़ा सीरिया का आधिकारिक आर्काइव हासिल कर इसराइल लाने में कामयाबी मिली है.

इसराइल के मुताबिक़ इस सीक्रेट ऑपरेशन में एली कोहेन की तस्वीरों और निजी सामान समेत क़रीब ढाई हज़ार दस्तावेज़ सीरिया से इसराइल लाए गए हैं.

मोसाद का कहना है कि ये सभी दस्तावेज़ अब तक सीरियाई सुरक्षाबलों के पास थे, जो उन्होंने अलग-अलग रखे हुए थे.

कोहेन को 18 मई, 1965 को सीरिया में सार्वजनिक फांसी से मौत की सज़ा दी गई थी. एली कोहेन का पूरा नाम एलीआहू बेन शॉल कोहेन था.

इन्हें इसराइल का सबसे बहादुर और साहसी जासूस भी कहा जाता है. वो जासूस जिसने चार साल न केवल दुश्मनों के बीच सीरिया में गुज़ारे, बल्कि वहां सत्ता के गलियारों में ऐसी पैठ बनाई कि शीर्ष स्तर तक पहुंच बनाने में कामयाब रहे.

एली कोहेन से जुड़ा क्या-क्या सामान मिला?

इसराइल के प्रधानमंत्री के आधिकारिक एक्स हैंडल पर फोटो और किए गए हैं, जिनमें वो एली से जुड़ा सामान उनकी पत्नी नादिया कोहेन को दिखा रहे हैं.

जिन दस्तावेज़ों का ज़िक्र किया जा रहा है, उनमें एली कोहेन का आख़िरी वसीयतनामा भी शामिल हैं, जो उनकी फांसी से ठीक पहले लिखा गया था.

मोसाद का कहना है कि इस ऑपरेशन में कोहेन की पूछताछ संबंधी फाइलों से ऑडियो रिकॉर्डिंग और अन्य सामान भी हासिल किया गया है. साथ ही उन लोगों से जुड़ी फ़ाइल भी हैं, जो कोहेन के संपर्क में थे.

इसके अलावा सीरिया में उनके मिशन के दौरान ली गई तस्वीरें मिलने का दावा भी किया गया है जो अब से पहले नहीं देखी गई थीं. कोहेन जो पत्र अपने परिवार को लिखते थे, वो और गिरफ्तारी के बाद उनके निवास से हासिल सामान भी बरामद किए गए दस्तावेज़ों में शामिल हैं.

मोसाद के मुताबिक़ कोहेन के सीरिया के अपार्टमेंट से जो नोटबुक और डायरी बरामद की गई है, उनमें ख़ुफ़िया मिशन से जुड़े वो निर्देश भी थे, जो उन्हें इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसी से मिले थे.

इसके अलावा कोहेन की सीरिया वाले अपार्टमेंट की चाबी, उनका पासपोर्ट और पहचान से जुड़े नकली दस्तावेज भी मिले हैं, जो वो मिशन के दौरान इस्तेमाल कर रहे थे. इनमें से एक दस्तावेज कोहेन की लिखाई में है, जो उन्होंने अपनी फांसी से ठीक पहले लिखा था.

मिस्र में जन्म, सीरिया में मौत image ISRAELI GOVERNMENT PRESS OFFICE सीरिया में एली कोहेन

मोसाद को कोहेन की फांसी का वो आदेश भी मिला है, जिसमें उन्हें दमिश्क में यहूदी समुदाय के प्रमुख रब्बी निसिम इंदिबो से मिलने की इजाज़त दी गई थी.

कोहेन ने मिशन के दौरान अर्जेंटीनियाई नागरिक कामिल का नाम अपनाया था. वो सीरियाई राष्ट्रपति के इतने क़रीब पहुंच गए थे कि एक समय सीरिया के डिप्टी डिफ़ेंस मिनिस्टर बनने से ज़रा फ़ासले पर थे.

ऐसा कहा जाता है कि कोहेन की जुटाई ख़ुफिया जानकारी ने साल 1967 के अरब-इसराइल युद्ध में इसराइल की जीत में अहम भूमिका निभाई.

ये शख़्स ना इसराइल में जन्मे थे, ना सीरिया या अर्जेंटीना में. एली का जन्म साल 1924 में मिस्र के एलेग्ज़ेंड्रिया में एक सीरियाई-यहूदी परिवार में हुआ था.

उनके पिता साल 1914 में सीरिया के एलेप्पो से यहां आकर बसे थे. जब इसराइल बना तो मिस्र के कई यहूदी परिवार वहां से निकलने लगे.

साल 1949 में कोहेन के माता-पिता और तीन भाइयों ने भी यही फ़ैसला किया और इसराइल जाकर बस गए. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई कर रहे कोहेन ने मिस्र में रुककर अपना कोर्स पूरा करने का फ़ैसला किया.

के मुताबिक अरबी, अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषा पर ग़ज़ब की पकड़ की वजह से इसराइली ख़ुफ़िया विभाग ने उनमें दिलचस्पी दिखाई थी.

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अर्जेंटीना कैसे पहुंचे थे एली कोहेन?

साल 1955 में वो जासूसी का छोटा सा कोर्स करने के लिए इसराइल गए भी और अगले साल मिस्र लौट आए. हालांकि, स्वेज़ संकट के बाद दूसरे लोगों के साथ कोहेन को भी मिस्र से बेदख़ल कर दिया गया और साल 1957 में वो इसराइल आ गए.

यहां आने के दो साल बाद उनकी शादी नादिया मजाल्द से हुई, जो इराक़ी-यहूदी थीं और लेखिका सैमी माइकल की बहन भी. साल 1960 में इसराइली ख़ुफ़िया विभाग में भर्ती होने से पहले उन्होंने ट्रांसलेटर के रूप में काम किया.

आगे की ट्रेनिंग पूरी करने के बाद कोहेन 1961 में अर्जेंटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स पहुंचे, जहां उन्होंने सीरियाई मूल के कारोबारी के रूप में अपना काम शुरू किया.

कामिल अमीन थाबेत बनकर कोहेन ने अर्जेंटीना में बसे सीरियाई समुदाय के लोगों के बीच कई संपर्क बनाए और जल्द ही सीरियाई दूतावास में काम करने वाले आला अफ़सरों से दोस्ती गांठकर उनका भरोसा जीत लिया.

इनमें सीरियाई मिलिट्री अटैचे अमीन अल-हफ़ीज़ भी थे, जो आगे चलकर सीरिया के राष्ट्रपति बने. कोहेन ने अपने 'नए दोस्तों' के बीच ये संदेश पहुंचा दिया था कि वो जल्द से जल्द सीरिया 'लौटना' चाहते हैं.

साल 1962 में जब उन्हें राजधानी दमिश्क जाने और बसने का मौका मिला तो अर्जेंटीना में बने उनके संपर्कों ने सीरिया में सत्ता के गलियारों तक उन्हें गज़ब की पहुंच दिलाई.

कदम जमाने के तुरंत बाद कोहेन ने सीरियाई सेना से जुड़ी ख़ुफ़िया जानकारी और योजनाएं इसराइल तक पहुंचाना शुरू कर दिया.

सीरिया में सत्ता बदली और एली ने पैर जमाए image ISRAELI GOVERNMENT PRESS OFFICE ऐसा बताया जाता है कि ये घड़ी एली कोहेन ने पकड़े जाने तक पहनी हुई थी

जासूसी के क्षेत्र में कोहेन की कोशिशें उस वक़्त और अहम हो गईं जब साल 1963 में सीरिया में सत्ता परिवर्तन हुआ. बाथ पार्टी को सत्ता मिली और इनमें ऐसे कई लोग थे जो अर्जेंटीना के ज़माने से कोहेन के दोस्त थे.

तख़्तापलट की अगुवाई की अमीन अल-हफ़ीज़ ने, जो राष्ट्रपति बने. हफ़ीज़ ने कोहेन पर पूरा एतबार किया और ऐसा कहा जाता है कि एक बार तो वो उन्हें सीरिया का डिप्टी रक्षा मंत्री बनाने का फ़ैसला कर चुके थे.

कोहेन को ना केवल ख़ुफ़िया सैन्य ब्रीफ़िंग में मौजूद रहने का मौक़ा मिला बल्कि उन्हें गोलान हाइट्स में सीरियाई सैन्य ठिकानों का दौरा तक कराया गया.

उस समय गोलान हाइट्स इलाके को लेकर सीरिया और इसराइल के बीच काफ़ी तनाव था.

कहा जाता है कि साल 1967 की मिडिल ईस्ट वॉर में इन पेड़ों और गोलान हाइट्स से जुड़ी कोहेन की भेजी दूसरी जानकारी ने इसराइल के हाथों सीरिया की हार की नींव रखी थी.

इन्हीं पेड़ों की वजह से इसराइल को सीरियाई सैनिकों की लोकेशन पता लगाने में काफ़ी मदद मिली.

रेडियो ट्रांसमिशन में लापरवाही पड़ी भारी? image Getty Images गोलान हाइट्स को लेकर इसराइल और सीरिया के बीच लंबा विवाद रहा है

जासूसी पर कोहेन की ज़बरदस्त पकड़ के बावजूद उनमें लापरवाही की एक झलक भी दिखती थी. इसराइल में उनके हैंडलर बार-बार उन्हें रेडियो ट्रांसमिशन के समय चौकन्ना रहने की हिदायत दिया करते थे.

साथ ही उन्हें ये निर्देश भी थे कि एक दिन में दो बार रेडियो ट्रांसमिशन ना करें. लेकिन कोहेन बार-बार इन चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया करते थे और उनके अंत की वजह यही लापरवाही बनी.

जनवरी 1965 में सीरिया के काउंटर-इंटेलीजेंस अफ़सरों को उनके रेडियो सिग्नल की भनक लग गई और उन्हें ट्रांसमिशन भेजते समय रंगे हाथ पकड़ लिया गया. कोहेन से पूछताछ हुई, सैन्य मुक़दमा चला और आख़िरकार उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई गई.

कोहेन को साल 1965 में 18 मई को दमिश्क में एक चौराहे पर फांसी दी गई थी. उनके गले में एक बैनर डाला गया था, जिसका शीर्षक था 'सीरिया में मौजूद अरबी लोगों की तरफ़ से.'

इसराइल ने पहले उनकी फांसी की सज़ा माफ़ करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया लेकिन सीरिया नहीं माना. कोहेन की मौत के बाद इसराइल ने उनका शव और अवशेष लौटाने की कई बार गुहार लगाई लेकिन सीरिया ने हर बार इनकार किया.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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