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पहलगाम में मारे गए नेपाल के सुदीप के परिवार ने बताया- उस दिन क्या हुआ था

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YUVRAJ KAFLE पहलगाम में हमले में मारे जाने से एक घंटे पहले सुदीप न्यौपाने

"ऐसा नहीं है कि नेपाल में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम की तरह ख़ूबसूरत इलाक़े नहीं हैं."

नेपाल में बुटवल के युवराज काफ़्ले जब यह बात कहते हैं तो उनका गहरा अफ़सोस आँसुओं में झलकने लगता है. युवराज काफ़्ले 22 अप्रैल को पहलगाम में थे. पहलगाम हमले में 26 लोगों की जान गई थी.

उस दिन पहलगाम में 28 साल के युवराज अपने हमउम्र साले सुदीप न्यौपाने के साथ ही चल रहे थे.

उनके समूह में क़रीब 20 लोग थे, जिसमें युवराज काफ़्ले, उनकी पत्नी सुषमा काफ़्ले, उनकी सास रीना पांडे और साले सुदीप न्यौपाने थे.

image YUVRAJ KAFLE पहलगाम हमले से पहले सुदीप (बाएं) के कंधे पर उनकी माँ रीना पांडे ने हाथ रखा है और बगल में उनके जीजा युवराज काफ़्ले के कंधे पर उनकी बहन सुषमा ने हाथ रखा है

ये लोग 21 अप्रैल को ही श्रीनगर पहुँचे थे और 22 अप्रैल को पहलगाम पहुंचे थे.

युवराज बताते हैं, ''फायरिंग की आवाज़ आई तो लोकल लोगों ने कहा कि स्थानीय लोग जंगली जानवरों को भगाने के लिए ऐसा करते हैं. लेकिन फायरिंग की आवाज़ क़रीब आ चुकी थी. तभी एक नकाबपोश हथियारबंद व्यक्ति हमारे सामने था. उसने धमकी भरे अंदाज़ में कहा कि हिन्दू एक तरफ़ हो जाओ और मुसलमान दूसरी तरफ़."

"स्थानीय लोग समझ गए थे कि क्या होने वाला है. उन्होंने हमें धीरे से कहा कि घुटने के बल बैठ जाओ और अल्लाह का नाम लो. मैंने मुसलमानों वाली लाइन में जाकर ऐसा ही किया और मेरी जान बच गई.''

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'सुदीप ने ख़ुद को मुसलमान नहीं बताया' image BBC सुदीप न्यौपाने के साथ उनकी मां रीना पांडे भी थीं

युवराज कहते हैं, ''सुदीप ने झूठ नहीं बोला और वह हिन्दुओं की लाइन में चला गया. सुदीप से पहले तीन लोगों को गोली मारी जा चुकी थी. वह ख़ुद को नेपाली बताता रहा लेकिन हिन्दू होना भारी पड़ा. सुदीप को हिन्दू होने के कारण मारा गया. उसे छुट्टी नहीं मिल रही थी. उसने किसी तरह हम लोगों के कहने पर समय निकाला था. काश हम उसे ना ले गए होते.''

युवराज के मन में कई सारे काश रह गए हैं और अब ये सवाल की शक्ल में सामने आ रहे हैं. युवराज हमसे बात करते हुए फूट-फूट कर रोने लगते हैं.

वह कहते हैं, ''कश्मीर के लिए पाकिस्तान और हिन्दुस्तान आपस में लड़ रहे हैं. यह दो देशों की लड़ाई है. लेकिन हम तो तीसरे देश के पर्यटक थे. हमें क्यों मारा? अगर हमारा हिन्दू होना गुनाह है, तो हमने नेपाल में कभी हिन्दू-मुसलमान नहीं किया. मेरे बुटवल शहर में अच्छी संख्या में मुसलमान भी हैं लेकिन कभी दोनों समुदायों के बीच नफ़रत नहीं रही. मेरे साले की जान हिन्दू होने के कारण गई लेकिन इसके बावजूद मेरे मन में मुसलमानों को लेकर कोई शत्रुता का भाव नहीं है. भारत की सरकार को लेकर ग़ुस्सा ज़रूर है. सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार का काम था.''

युवराज काफ़्ले जब ये सारी बातें कह रहे थे तो उनकी पत्नी सुषमा और सास रीना पांडे रो रही थीं. सुदीप की कल (4 मई को) तेरहवीं थीं और हमलोग 12वें दिन (तीन मई) को पहुँचे थे. तब पंडित अनुष्ठान करवा रहे थे और वहाँ कई पड़ोसी बैठे थे.

सुदीप की माँ के लिए बेटे का जाना दुख के पहाड़ टूटने की तरह है.

सुदीप के जन्म के बाद ही रीना पांडे का पति ध्रुव न्यौपाने से तलाक़ हो गया था. सुदीप इकलौते बेटे थे.

रीना पांडे कहती हैं, ''मैंने आतंकवादियों से कहा कि मुझे भी गोली मार दो. अब मेरे भीतर कुछ भी ज़िंदा नहीं बचा है. अपनी आँखों के सामने मैंने अपने बेटे की हत्या देखी. मेरे भीतर अब जीने की हिम्मत नहीं है. मैंने अपने बच्चे को अकेले इसीलिए नहीं पाला था. मेरा बेटा बोलता रहा कि वह नेपाली है. हाँ उसने झूठ नहीं बोला कि वह मुसलमान है. मेरे बेटे की हत्या हिन्दू होने के कारण गई. क्या भारत सरकार यही हिन्दुओं को सुरक्षा दे रही है? मेरा एक ही बेटा था, अब मेरा कौन ख्याल रखेगा?''

रीना पांडे कहती हैं, ''मेरा बेटा अल्लाह कहकर झुका नहीं और उसे आतंकवादियों ने गोली मार दी.''

बुटवल और भारतीय सेना image YUVRAJ KAFLE सुदीप के कश्मीर ट्रिप का यह पहला दिन था जो उनकी ज़िंदगी का आख़िरी दिन साबित हुआ

सुदीप के घर के बाहर कई पड़ोसी बैठे हैं. सबके मुँह पर एक ही सवाल है कि क्या भारत कुछ भी नहीं करेगा?

एक पड़ोसी ने हमसे पूछा, ''भारत कुछ करेगा या नहीं? भारत का मीडिया तो रोज़ ऐसे बता रहा है कि पाकिस्तान बस मसल दिया जाने वाला है. आप ही बताइए कुछ करेंगे कि नहीं?''

नेपाल का बुटवल शहर भारतीय सेना से रिटायर्ड सैनिकों और अधिकारियों के ठिकाने के रूप में जाना जाता है. यह शहर कई बार इसलिए भी सुर्खियों में रहा क्योंकि यहां के नौजवानों ने भारतीय सेना की तरफ़ से लड़ते हुए सरहद पर जान की बाज़ी तक लगा दी.

इस शहर में भारत की सरहद से शव आए हैं लेकिन भारतीय सेना में सैनिक रहे गोरखाओं के. यह पहली बार है, जब जम्मू-कश्मीर से किसी नेपाली पर्यटक का शव इस शहर में आया.

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कुल बहादुर केसी इसी शहर के हैं और भारतीय सेना में सूबेदार थे. 1999 की करगिल जंग में कुल बहादुर केसी लड़ चुके हैं और 2010 में भारतीय सेना से रिटायर हो गए थे.

उनसे सुदीप न्यौपाने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, ''भारतीय सेना में नेपाली गोरखा जिस बहादुरी के लिए जाने जाते हैं, वही साहस सुदीप ने पहलगाम में दिखाया. उसने अपनी जान बचाने के लिए ख़ुद को मुसलमान नहीं बताया. सुदीप ने फायरिंग की आवाज़ सुन ली थी. लोगों को गोलियां मारते भी देखा था. उसे पता था कि हिन्दू बताना जानलेवा होगा लेकिन उसने झूठ नहीं बोला और जान गंवाना बेहतर समझा. अच्छा होता कि वो हमारे बीच होता लेकिन हम उसके साहस को सलाम करते हैं.''

सुदीप की माँ रीना पांडे का कहना है कि उनके बेटे ने ख़ुद को नेपाली बताया था लेकिन मददगार साबित नहीं हुआ.

'सुदीप को छुट्टी नहीं मिल रही थी' image YUVRAJ KAFLE सुदीप के जन्म के बाद ही उनके पिता और मां की शादी टूट गई थी

कुल बहादुर केसी कहते हैं, ''सुदीप तीसरे देश का था लेकिन पाकिस्तानी आतंकवादियों को पता रहता है कि नेपाली गोरखाओं का भारतीय सेना में क्या योगदान है. नेपाली गोरखा पाकिस्तानियों पर कहर बनकर टूटते हैं. ऐसे में कोई पाकिस्तानी आतंकवादी नेपाली नागरिक को क्यों छोड़ेगा?''

कुल बहादुर केसी कहते हैं, ''बुटवल के मुसलमानों ने सुदीप की हत्या की कड़े शब्दों में निंदा की है. मस्जिद के इमाम ने भी संदेश जारी किया था. लेकिन यह सच है कि सुदीप को हिन्दू होने के कारण मारा गया. ऐसी घटनाओं का असर धीरे-धीरे दोनों समुदायों के संबंधों पर पड़ता है. लॉन्ग टर्म में ऐसी घटनाएं किसी न किसी रूप में परेशान करती हैं.''

सुदीप की बहन सुषमा कहती हैं, ''हमलोग सुदीप के बिना ही कई बार घूमने चले जाते थे लेकिन इस बार हमने तय किया था कि उसे भी साथ में ले जाना है. सुदीप के पास छुट्टियां नहीं थीं लेकिन किसी तरह उसने समय निकाला था. काश हम उसे ना ले गए होते. मेरा भाई बहुत बहादुर था. उसने जान बचाने के लिए झूठ नहीं बोला. किसी की भी मदद के लिए तैयार रहता था. मुझे बहुत प्यार करता था. उसके बिना जीना हर दिन मरने की तरह है.''

सुषमा से पूछा कि भारत में पाकिस्तान को लेकर बहुत बहस हो रही है. सरकार कई फ़ैसले ले रही है और तनाव हर दिन बढ़ रहा है. वह पाकिस्तान को किस रूप में देख रही हैं?

सुषमा कहती हैं, ''भारत और पाकिस्तान के अपने मसले हैं. वे आपस में सुलझाएं. पाकिस्तान में हर कोई तो गुनाहगार नहीं है. सज़ा बेगुनाहों को नहीं मिलनी चाहिए. हम तो अपने पैसे से घूमने गए थे. हमारी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी थी? आप नेपाल में हैं तो आपकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी क्या हमारी सरकार की नहीं है? मेरे भाई को हिन्दू होने के कारण हमलोगों के सामने छाती में गोली मारी गई. मैं भारत सरकार से मांग करती हूँ कि मेरे भाई को शहीद घोषित करे.''

image BBC सुदीप न्यौपाने की बहन सुषमा (बाएं) और उनकी माँ रीना पांडे, सुदीप के साथ ये दोनों भी पहलगाम गई थीं घर का क़र्ज़

सुदीप के घर के बगल से एक नहर बहती है. नहर का पानी बिल्कुल साफ़ है.

वहीं पर एक लोहे की बेंच लगी है. यहीं पर सुदीप हर दिन रात में दस बजे के बाद अपने दोस्त अमृत भुसाल के साथ बैठकर बातें करते थे.

अमृत भुसाल उसी बेंच पर बैठकर सुदीप को याद करते हुए रो पड़े.

पहलगाम जाने से पहले सुदीप से अमृत की बात हुई थी कि नेपाल में डेंटल हेल्थ को लेकर वह साथ में एक नए प्रोजेक्ट पर काम करेंगे.

अमृत का एक डेंटल क्लिनिक है और सुदीप भी साथ में ही ओरल हेल्थ को लेकर काम करते थे.

image BBC जब हमलोग सुदीप के घर पहुँचे तो उनकी हत्या के 12 दिन हुए थे और घर में अंत्येष्टि के बचे अनुष्ठान हो रहे थे

अमृत बताते हैं, ''सुदीप मुझे मामा बोलता था. रात में हर दिन हम इस बेंच पर नेपाल को लेकर कई मुद्दों पर बातें करते थे. नहर है, ये बेंच है, रात भी होगी लेकिन सुदीप नहीं होगा. सुदीप ने यह घर लोन लेकर बनाया था. अभी इसका 80 लाख रुपये लोन भरना है. सुदीप ही कमाकर लोन भर रहा था. अब तो बैंक वाले इस घर को अपने नियंत्रण में ले लेंगे. भारत सरकार की तरफ़ से इस परिवार को आर्थिक मदद मिलनी चाहिए थी.''

पहलगाम में मारे जाने से एक घंटे पहले सुदीप ने कश्मीरी लिबास में परिवार के साथ फ़ोटो खिंचवाई थी. अब इन तस्वीरों को देख सुदीप की माँ फफक कर रो पड़ती हैं.

रीना पांडे पति से अलग हुईं तो उनका बेटा सहारा था. बेटे का साथ तब छूट गया जब उन्हें इस बुढ़ापे में सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी.

अगर सब कुछ ठीक होता तो सुदीप की इस साल शादी होती. सुदीप एक लड़की से प्रेम करते थे और विवाह करने वाले थे. लेकिन प्रेम छूट गया और विवाह का सफ़र अधूरा रह गया.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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