ब्रेन यानी मस्तिष्क इंसान के शरीर का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है क्योंकि यह पूरे शरीर को नियंत्रित करता है.
शरीर के हर अंग से ब्रेन तक सिग्नल पहुंचता है और फिर ब्रेन ज़रूरत के मुताबिक़ प्रतिक्रिया के लिए उस अंग को संदेश देता है.
लेकिन जब ब्रेन को शरीर के किसी हिस्से से मिलने वाले रक्त (खून) के प्रवाह में कोई रुकावट आ जाती है, तो इसे ब्रेन स्ट्रोक कहते हैं.
ब्रेन स्ट्रोक शरीर के किसी हिस्से से या कई हिस्सों से जुड़ा हो सकता है.
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जब शरीर के किसी अंग या हिस्से से ब्रेन तक सिग्नल नहीं पहुंचता है तो वह हिस्सा पैरालाइज़्ड यानी लकवाग्रस्त हो जाता है.
अगर किसी इंसान को ब्रेन स्ट्रोक का ख़तरा हो, तो उसके संकेतों को कैसे पहचाना जा सकता है और इसे रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए? आइए यही समझने की कोशिश करते हैं.
ब्रेन स्ट्रोक के लक्षण
ब्रेन स्ट्रोक को अचानक होने वाली घटना माना जाता है.
हालांकि, कोई स्वस्थ इंसान भविष्य में ब्रेन स्ट्रोक के ख़तरे में आ सकता है या नहीं, यह कुछ शुरुआती लक्षणों से जाना जा सकता है.
आमतौर पर डॉक्टर इसे बीईएफ़एएसटी (BEFAST) कहते हैं.
- बी – बैलेंस: किसी स्वस्थ दिख रहे इंसान का संतुलन अचानक बिगड़ जाए और फिर कुछ देर बाद ठीक हो जाए.
- ई – आई (आँख): अचानक आंखों के सामने अंधेरा छा जाए, जैसे कोई पर्दा गिर गया हो, और फिर सामान्य दिखने लगे.
- एफ़ – फ़ेस (चेहरा): बोलते समय अचानक किसी का चेहरा टेढ़ा हो जाए और तुरंत ठीक भी हो जाए.
- ए – आर्म्स (बांह): बांह अचानक गिर जाए और फिर ठीक हो जाए.
- एस – स्पीच (ज़ुबान): अचानक ज़ुबान बंद हो जाए यानी इंसान कुछ देर तक बोल न पाए.
- टी – टाइम: ऐसे लक्षण दिखें तो तुरंत अस्पताल पहुँचें.
अगर इनमें से कोई भी लक्षण दिखे और भले ही कुछ समय में ठीक हो जाए, तो भी फ़ौरन डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए. क्योंकि ये संकेत बताते हैं कि ब्रेन तक ब्लड पहुँचने में रुकावट है, जो भविष्य में स्ट्रोक के ख़तरे की तरफ़ इशारा करता है.
दिल्ली के बीएल कपूर मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रतीक किशोर कहते हैं, "ऐसे लक्षणों के पीछे कोई दूसरी बीमारी भी वजह हो सकती है. लेकिन अगर इंसान पूरी तरह स्वस्थ है, तो ये लक्षण बताते हैं कि उसे भविष्य में ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है. और अगर यह तुरंत ठीक न हुआ हो, तो इसका मतलब है कि इंसान को ब्रेन स्ट्रोक हो चुका है."
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अगर किसी इंसान में संतुलन बिगड़ने, अचानक न दिखने, बोलने में दिक़्क़त, हाथ-पांव के काम न करने या चेहरे पर टेढ़ापन आने जैसे लक्षण दिखें और ये तुरंत ठीक न हों, तो यह ब्रेन स्ट्रोक का संकेत हो सकता है
ऐसे में बिना समय गंवाए फ़ौरन डॉक्टर के पास पहुँचना ज़रूरी है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के न्यूरोलॉजी विभाग की डॉक्टर मंजरी त्रिपाठी कहती हैं, "ब्रेन स्ट्रोक होने पर साढ़े चार घंटे के अंदर इलाज शुरू होना काफ़ी अहम होता है. यह आर्टरी में ब्लॉकेज आने पर या इसके फटने से होता है, जिससे मस्तिष्क तक ब्लड नहीं पहुंच पाता."
डॉक्टरों के मुताबिक़, ब्रेन स्ट्रोक होने पर शुरुआती साढ़े चार घंटे को गोल्डन पीरियड कहा जाता है. हालांकि, कुछ मामलों में अगर छह से आठ घंटे के भीतर इलाज शुरू हो जाए तो भी मरीज़ की रिकवरी संभव होती है.
डॉक्टर मंजरी त्रिपाठी कहती हैं, "अगर आर्टरी में ब्लड क्लॉट हो तो ब्लड क्लॉट बस्टर इंजेक्शन देकर उसे घोलने की कोशिश की जाती है. कई बार, अगर ज़रूरी और संभव हो, तो थ्रोम्बेक्टॉमी (एक तरह की सर्जरी) करके खून का थक्का निकाला जाता है."
मेट्रो ग्रुप ऑफ़ हॉस्पिटल्स की सीनियर कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर सोनिया लाल गुप्ता कहती हैं, "सर्जरी के ज़रिए क्लॉट हुआ ब्लड निकाला जा सकता है, लेकिन इसकी सीमाएं हैं. बड़ी आर्टरी में ब्लड क्लॉट हो तो यह संभव है. ब्रेन स्ट्रोक की हालत में सबसे ज़रूरी है कि मरीज़ को जल्दी हॉस्पिटल पहुँचाया जाए."
ब्रेन स्ट्रोक होने पर मरीज़ की रिकवरी यानी फिर से ठीक होना संभव है, लेकिन इसके लिए समय पर इलाज बेहद ज़रूरी है.
सीटी स्कैन और एमआरआई जैसी जाँच के ज़रिए ब्रेन स्ट्रोक की प्रकृति और गंभीरता का पता लगाया जाता है, जिससे बेहतर इलाज किया जा सके.
कई बार लोग ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में लापरवाही कर देते हैं, जिससे मरीज़ का पूरी तरह ठीक हो पाना मुश्किल हो जाता है.
डॉक्टर सोनिया लाल गुप्ता कहती हैं, "ब्रेन स्ट्रोक या पैरालिसिस के शिकार मरीज़ों के ठीक होने के लिए शुरुआती तीन महीने काफ़ी अहम होते हैं. इस दौरान फ़िज़ियोथेरेपी से भी फ़ायदा होता है."
ऐसे मरीज़ों में तीन महीने के बाद भी सुधार देखा जाता है, लेकिन उसकी रफ़्तार काफ़ी धीमी होती है.
ब्रेन स्ट्रोक होने की वजहब्रेन स्ट्रोक यूं तो किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकता है, लेकिन कुछ लोगों में इसका ख़तरा ज़्यादा होता है.
अनियंत्रित और लगातार उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़, कोलेस्ट्रॉल, स्मोकिंग, शराब का सेवन और मोटापा इसकी प्रमुख वजहों में गिने जाते हैं.
कई बार युवाओं में आनुवांशिक कारणों से खून गाढ़ा हो जाता है, जिससे ब्रेन स्ट्रोक का ख़तरा बढ़ जाता है.
एम्स की डॉक्टर मंजरी त्रिपाठी कहती हैं, "यह आमतौर पर बुज़ुर्गों को ज़्यादा होता है, हालांकि ख़राब लाइफ़स्टाइल, जिम में एक्सरसाइज़ के दौरान लगी चोट और गर्दन पर मसाज कराने से भी लोग ब्रेन हेमरेज का शिकार हो सकते हैं."
सर्दियों में ब्रेन स्ट्रोक के मामलों में इज़ाफ़ा देखा जाता है.
इसके पीछे बड़ी वजह भारत जैसे देशों में खानपान की आदतें मानी जाती हैं, क्योंकि सर्दियों में लोग आम तौर पर ज़्यादा वसा (फ़ैट) वाला खाना खाते हैं.
साथ ही, इस मौसम में ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखना भी बेहद ज़रूरी हो जाता है.
दिल्ली के बीएल कपूर मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रतीक किशोर बताते हैं, "आमतौर पर 60-65 साल के बुज़ुर्गों को ब्रेन स्ट्रोक का ख़तरा ज़्यादा होता है, लेकिन हाल के समय में हमने देखा है कि हमारे पास आने वाले 40-45% ब्रेन स्ट्रोक के मरीज़ों की उम्र 50 साल से कम होती है."
वे भी इसके लिए ख़राब लाइफ़स्टाइल और शराब या सिगरेट पीने जैसी आदतों को ज़िम्मेदार मानते हैं.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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