विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर राजस्थान ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उदयपुर जिले के मेनार गांव और जोधपुर की फलौदी तहसील के खिंचन गांव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित रामसर स्थलों के रूप में मान्यता दी गई है। इस घोषणा के साथ ही राजस्थान में रामसर स्थलों की संख्या बढ़कर चार हो गई है। इससे पहले भरतपुर के केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान और जयपुर की सांभर झील को यह दर्जा प्राप्त था। केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने बुधवार को सोशल मीडिया के जरिए यह जानकारी साझा की।
अब भारत में 91 रामसर स्थल
केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि मेनार और खिंचन को रामसर स्थलों की सूची में शामिल किए जाने के बाद अब भारत में कुल 91 रामसर स्थल हो गए हैं। यह उपलब्धि देश के पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बढ़ते प्रयासों और जनभागीदारी को दर्शाती है। बता दें, 'पक्षी गांव' के नाम से भी मशहूर उदयपुर का मेनार गांव पक्षी प्रेमियों और पर्यावरणविदों के लिए खास महत्व रखता है। यहां के स्थानीय समुदाय द्वारा पक्षियों के संरक्षण में किए गए प्रयासों को अब वैश्विक स्तर पर मान्यता मिल गई है। खिंचन गांव अपनी जैव विविधता और डेमोइसेल क्रेन (कुरजां) जैसे प्रवासी पक्षियों के आगमन के लिए भी प्रसिद्ध है।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने दी बधाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस उपलब्धि को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भारत की प्रगति का प्रतीक बताया। केंद्रीय मंत्री की पोस्ट को शेयर करते हुए उन्होंने लिखा कि यह एक सुखद समाचार है और यह दर्शाता है कि भारत पर्यावरण संरक्षण में तेजी से आगे बढ़ रहा है। उन्होंने जनभागीदारी के महत्व पर भी जोर दिया।
पीएम मोदी का ट्वीट
वहीं, राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इसे राज्य के लिए गौरव का क्षण बताया। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि मेनार और खिंचन का रामसर स्थलों की सूची में शामिल होना राजस्थान के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है। उन्होंने इस उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव के नेतृत्व और पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनके समर्पण की सराहना की।
राजस्थान के चार रामसर स्थल
आपको बता दें कि मेनार और खिंचन के शामिल होने के बाद अब राजस्थान में चार रामसर स्थल हो गए हैं। इससे पहले 1981 में केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान और 1990 में सांभर झील को रामसर साइट घोषित किया गया था। केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान अपनी समृद्ध जैव विविधता और साइबेरियन क्रेन जैसे प्रवासी पक्षियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, जबकि सांभर झील नमक उत्पादन के साथ-साथ पक्षियों की कई प्रजातियों का आश्रय स्थल है।
कैसे बनता है रामसर साइट?
रामसर साइट का दर्जा पाने के लिए हर साल किसी स्थान पर कम से कम 20,000 पक्षियों या किसी भी पक्षी प्रजाति की 1% आबादी का आना जरूरी है। इस प्रक्रिया में वन विभाग और जिला प्रशासन प्रस्ताव तैयार कर राज्य सरकार को भेजते हैं। इसके बाद प्रस्ताव केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और फिर संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को भेजा जाता है। यूएन सभी मापदंडों की जांच के बाद रामसर साइट का दर्जा प्रदान करता है। इन कठिन मापदंडों को पूरा करके मेनार और खींचन ने यह सम्मान हासिल किया है।
रामसर साइट बनने के फायदे
गौरतलब है कि रामसर साइट का दर्जा मिलने से मेनार और खिंचन में इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे। तालाबों और झीलों का संरक्षण सुनिश्चित होगा, जिससे सीवरेज और गंदगी पर रोक लगेगी। साथ ही अवैध अतिक्रमण पर भी लगाम लगेगी। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए होम स्टे और अन्य पर्यटन इकाइयां शुरू की जाएंगी, जिससे देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी होगी। इसके अलावा पर्यटकों के लिए नई सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी।
रामसर साइट क्या है?
रामसर साइट आर्द्रभूमि क्षेत्र हैं, जिन्हें 1971 में ईरान के रामसर शहर में आयोजित सम्मेलन के तहत अंतरराष्ट्रीय महत्व का दर्जा दिया गया है। इस सम्मेलन का उद्देश्य आर्द्रभूमि का संरक्षण करना और उनके पारिस्थितिक, आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व को बनाए रखना है।
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