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सरिस्का CTH विवाद पर गरमाई सियासत! वन मंत्री ने टीकाराम जूली को सुनाई दो टूक, बोले - विरोधियों को नहीं है विषय का ज्ञान

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राजस्थान के अलवर जिले में स्थित सरिस्का टाइगर रिजर्व में बाघों के महत्वपूर्ण आवास में बदलाव का लगातार विरोध हो रहा है। सीटीएच के दायरे में बदलाव से टहला क्षेत्र की 50 से अधिक बंद मार्बल खदानें फिर से चालू हो जाएंगी। इसके साथ ही होटलों पर लगी रोक भी खत्म हो सकती है। इस संबंध में जहां एक ओर वन्यजीव प्रेमी इस बदलाव को सरिस्का के लिए घातक बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली इसमें भारी भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं।

क्या है मुख्य विवाद?
सीटीएच के दायरे में बदलाव से टहला क्षेत्र की 50 से अधिक बंद मार्बल खदानें फिर से चालू हो सकती हैं। इसके साथ ही होटलों पर लगी रोक भी हट सकती है। इस संबंध में वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि इससे सरिस्का के वन्यजीवों, विशेषकर बाघों के प्राकृतिक आवास और जीवन को गंभीर खतरा पैदा हो जाएगा।

विरोध करने वालों में अभी भी जानकारी का अभाव- वन मंत्री

राजस्थान सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री संजय शर्मा ने कहा कि सीटीएच का मतलब है बाघ संरक्षण, वन संरक्षण और इसे सुरक्षित रखना। उन्होंने इसका विरोध करने वालों के बारे में कहा कि उनमें अभी भी ज्ञान की कमी है। कई ऐसी बातें हैं जो कहीं जाती नहीं, लेकिन जब उसके नतीजे सामने आएंगे, तभी लोग मानेंगे।

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली: 'बड़ा भ्रष्टाचार, अलवर की पहचान दांव पर'

इस मामले में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी सरकार को घेरा है। उन्होंने सरिस्का के सीटीएच को लेकर बड़े भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि अलवर जिले में सरिस्का ही ऐसा क्षेत्र बचा है, जिसकी देश में पहचान है और अलवर की आर्थिक स्थिति सरिस्का के पर्यटन पर ही चलती है। जूली ने आरोप लगाया कि जिस क्षेत्र में बाघ सुरक्षित हैं, उसे बड़े पैमाने पर हटाया जा रहा है, ताकि खान मालिकों को फायदा पहुंचाया जा सके। उन्होंने इसे 'बड़ा भ्रष्टाचार' और 'बड़ा खेल' बताया।

बाघ और जनता के बीच संघर्ष बढ़ेगा

उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि सीटीएच क्षेत्र का विस्तार किसानों और आम लोगों के रहने वाले क्षेत्र की ओर किया जा रहा है, जिससे बाघ और जनता के बीच संघर्ष बढ़ेगा और दोनों की जान को खतरा होगा। जूली ने मुख्यमंत्री और भारत सरकार से मामले की जांच की मांग की है। उन्होंने याद दिलाया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सरिस्का में कैबिनेट बैठक आयोजित की थी, जिसके बाद सरिस्का को दुनिया में पहचान मिली और पिछली सरकारों ने ही यहां बाघों को वापस लाने का काम किया। उन्होंने सवाल उठाया कि जब यहां की खदानें एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) द्वारा बंद कर दी गई हैं, तो उन्हें फिर से शुरू करने का प्रयास क्यों किया जा रहा है।

'विरोधियों को जानकारी का अभाव'- वन मंत्री संजय शर्मा
राजस्थान सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्री संजय शर्मा ने सीटीएच में बदलाव का बचाव करते हुए कहा कि इसका मतलब बाघों का संरक्षण, जंगल का संरक्षण और उसे सुरक्षित रखना है। उन्होंने विरोध करने वालों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उनमें अभी भी 'ज्ञान की कमी है।' मंत्री शर्मा ने कहा कि कई ऐसी बातें हैं जो सार्वजनिक रूप से नहीं कही जाती हैं, लेकिन जब इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे, तब लोग यकीन करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि 26 जून को राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने वन क्षेत्र बढ़ाने के इस कदम को मंजूरी दी है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जैसे-जैसे बाघों की आबादी बढ़ रही है, वन क्षेत्र भी बढ़ रहा है और सीटीएच का मतलब बाघों को सुरक्षित रखना है, उनके लिए किसी तरह की कमी नहीं होनी चाहिए।

'जंगल का विनाश, खनन माफिया का दबाव'

वहीं, पर्यावरणविद और वन्यजीव प्रेमी राजेश कृष्ण सिद्ध ने इस बदलाव को सरिस्का के जंगल का 'विनाश' और वन्यजीवों को खतरे में डालना बताया है। उन्होंने सीधे तौर पर आरोप लगाया कि सरकार 'खनन माफिया और होटल माफिया के आगे झुक गई है।' सिद्ध ने चिंता जताई कि सरिस्का में इस समय मौजूद 48 बाघों की जान खतरे में है, क्योंकि सीटीएच के जरिए उस क्षेत्र को बदलने की कोशिश की जा रही है, जहां बाघ लगातार देखे जाते हैं। उन्होंने दलील दी कि क्षेत्र तो बढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन जिस क्षेत्र में पहले से ही बाघ हैं और जहां उनके दर्शन नियमित रूप से होते रहते हैं, उसे कम नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि यह बदलाव किस दबाव में किया जा रहा है और क्या इसके लिए किसी तकनीकी विशेषज्ञ से सलाह ली गई है?

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