राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर संभावनाओं का दौर शुरू हो गया है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की एक हफ्ते में दो दिल्ली यात्राओं ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। क्या यह महज शिष्टाचार भेंट थी या आने वाले दिनों में कुछ बड़ा होने वाला है? सवाल कई हैं, लेकिन जवाब स्पष्ट नहीं हैं। मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब कुछ दिन पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी।
दिल्ली में हुई इन मुलाकातों को लेकर भाजपा के अंदरूनी हलकों में कानाफूसी तेज़ हो गई है। सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और संगठन महामंत्री बी.एल. संतोष से भजनलाल शर्मा की बातचीत कोई साधारण राजनीतिक चर्चा नहीं थी। माना जा रहा है कि इस दौरान राजस्थान मंत्रिमंडल में फेरबदल, राजनीतिक नियुक्तियों और संगठन में पुनर्संतुलन जैसे मुद्दों पर गंभीर चर्चा हुई।
हैरानी की बात यह है कि इन यात्राओं को लेकर पार्टी या सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। यह खामोशी पूरे घटनाक्रम को रहस्यमय बना रही है। क्या वाकई कोई बड़ा बदलाव होने वाला है? क्या मंत्रिमंडल में नए चेहरे शामिल किए जाएँगे? या फिर ये वसुंधरा राजे की सक्रिय राजनीति में वापसी की तैयारी है?
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इन दौरों का समय बेहद अहम है। भजनलाल सरकार ने अपना 18 महीने का कार्यकाल पूरा कर लिया है। यही वो समय है जब सरकार अपने दूसरे कार्यकाल के लिए आंतरिक समीकरण दुरुस्त कर रही है। ऐसे में मंत्रिमंडल में बदलाव की संभावना स्वाभाविक लग रही है। लेकिन इस बार ये बदलाव सिर्फ़ प्रशासनिक नहीं, बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक हैं।
सूत्रों का दावा है कि दिल्ली की बैठकों में मुख्यमंत्री को वसुंधरा राजे समर्थकों को मंत्रिमंडल में जगह देने और राजनीतिक नियुक्तियों के निर्देश मिल सकते हैं। ये इसलिए ख़ास है क्योंकि अब तक वसुंधरा खेमे को दरकिनार किया जाता रहा है। लेकिन अब पार्टी नेतृत्व समझ गया है कि संगठन और सरकार के बीच संतुलन ज़रूरी है, और पुराने अनुभवी नेताओं की अनदेखी महंगी पड़ सकती है।
हाल ही में अरुण चतुर्वेदी को राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने से ये सस्पेंस और गहरा गया है। ये कदम भी अचानक उठाया गया और इसे सरकार और संगठन के बीच तालमेल का पहला संकेत माना जा रहा है। अब चर्चा है कि अशोक परनामी, सतीश पूनिया, रामचरण बोहरा और राजेंद्र राठौड़ जैसे दिग्गजों को भी अहम बोर्ड और आयोगों में जगह मिल सकती है। इन सभी को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर भाजपा सरकार नई राजनीतिक बिसात बिछाने जा रही है।
अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि भजनलाल शर्मा कब अपने पत्ते खोलते हैं। क्या वह वसुंधरा समर्थकों को शामिल करके संतुलन बनाए रखेंगे या कोई नया प्रयोग करेंगे? क्या पार्टी के अंदर चल रही अदृश्य रस्साकशी खुलकर सामने आएगी या सब कुछ 'चुपचाप' तरीके से सुलझ जाएगा?फिलहाल तो सब कुछ पर्दे के पीछे है। लेकिन इतना तय है कि राजस्थान भाजपा में बहुत कुछ पक रहा है और जब पर्दा उठेगा तो सियासी रंगमंच का नजारा पूरी तरह बदल चुका होगा।
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